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Last Modified: मंगलवार, 6 दिसंबर 2022 (12:01 IST)

मार्गशीर्ष पूर्णिमा कब है? देवी लक्ष्मी और श्री हरि नारायण को एक साथ प्रसन्न करेंगे ये 10 शुभ उपाय

Satyanarayan Bhagwan
मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा के दिन का बहुत ही महत्व माना गया है। इस माह में आने वाली पूर्णिमा को मार्गशीर्ष पूर्णिमा कहते हैं। पुराणों में इस दिन स्नान, दान और तप का विशेष महत्व बताया गया है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन हरिद्वार, बनारस, मथुरा और प्रयागराज आदि जगहों पर श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान और तप करते हैं। आओ जानते हैं 10 शुभ उपाय।
 
मार्गशीर्ष पूर्णिमा तिथि:
पूर्णिमा आरम्भ: 7 दिसंबर 2022 को सुबह 08:03:58 से।
पूर्णिमा समाप्त: 8 दिसंबर 2022 को सुबह 09:40:13 पर।
अत: 7 दिसंबर को पूर्णिमा का व्रत रखा जाएगा।
 
1. श्रीविष्णु के नारायण रूप की करें पूजा : इस दिन श्रीहरि के नारायण रूप की पूजा होती है। पूजा आरती के बाद हवन करते हैं।
 
2. लक्ष्मी पूजा : इस दिन श्रीहरि विष्णु जी के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करना चाहिए।
 
3. स्नान : इस दिन तुलसी की जड़ की मिट्टी से पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
 
4. दान : इस दिन दिए गए दान का फल अन्य पूर्णिमा की तुलना में 32 गुना ज्यादा बताया गया है। अत: यथाशक्ति दान दें। मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए चावल, फल, खीर, फूल, नारियल, वस्त्र आदि का दान करें। ऐसा करने से चंद्र दोष भी दूर होगा।
 
5. सत्यनारायण भगवान की कथा : इस दिन भगवान सत्यनारायण कथा सुनना और पूजाना करने का खास महत्व है। यह बहुत फलदायी बताई गई है। 
 
6. पीपल पूजा : पूर्णिमा के दिन पीपल के पेड़ में मां लक्ष्मी का वास होता है। इसलिए इस दिन पीपल के पेड़ में जल अर्पित करें और घी का दीपक जलाएं। इसक साथ ही 11 परिक्रमा लगाएं।
 
7. सूक्त स्तोत्र का पाठ : इस दिन पीली वस्तुएं अर्पित करें और इसके साथ ही श्री सूक्त स्तोत्र का पाठ करें।
 
8. द्वार को सजाएं : पूर्णिमा के दिन घर के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक चिन्ह बनाएं और द्वार को आम के पत्तों की तोरण बनाकर सजाएं। इससे माता लक्ष्मी प्रसन्न होंगी।
 
9. तुलसी पूजा : इस दिन श्रीहरि और मां लक्ष्मी के साथ ही तुलसी पूजा भी करें। तुलसी के पौधे के पास घी का दीपक जलाएं। 
 
10. चंद्र को को दें अर्घ्य : चंद्रोदय होने पर कच्चा दूध में थोड़ी सी चीनी और चावल मिलाकर ॐ ऐं क्लीं सोमाय नम बोलते हुए चंद्रदेव को अर्घ्य अर्पित करें। 
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