• Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. व्रत-त्योहार
  3. अन्य त्योहार
  4. Mahalaxmi vrat 2022 date
Written By

महालक्ष्मी कब विराजेंगी, जानिए शुभ तिथि और पूजा विधि

mahalaxmi vrat 2022 date
mahalaxmi vrat 2022
 
वर्ष 2022 में श्री महालक्ष्मी व्रत शनिवार, 3 सितंबर से मनाया जाएगा। इस व्रत के तहत 16 दिनों तक देवी महालक्ष्मी घर में विराजेंगी। इस व्रत का समापन 17 ‍ सितंबर 2022 को होगा। महाराष्ट्रीयन परिवारों में मनाया जाने वाला यह खास श्री महालक्ष्मी व्रत कई घरों में 3 दिवसीय मनाया जाता है, जिसे तीन दिनी महालक्ष्मी पर्व के नाम से जाना जाता है। भारत के कई जगहों पर यह पर्व 8 दिन तो कई स्थानों पर 16 दिनों तक मनाया जाता है। इस व्रत में गौरी यानी माता पार्वती और देवी माता लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। 
 
शास्त्रों में महालक्ष्मी व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। व्रत संबंधित मान्यतानुसार लक्ष्मी जी की इन मूर्तियों में कोई भी बदलाव तभी किया जा सकता है, जब घर में कोई शादी हो या किसी बच्चे का जन्म हुआ हो। इन माता की प्रतिमाओं के अंदर गेहूं और चावल भरे जाते हैं, जो इस बात का प्रतीक है कि घर धन-धान्य से भरा-पूरा रहे। यहां पढ़ें महालक्ष्मी व्रत की शुभ तिथियां एवं पूजन की सबसे सरल विधि- Mahalaxmi Vrat 2022
 
महालक्ष्मी व्रत की शुभ तिथि : Mahalaxmi vrat dates
महालक्ष्मी व्रत तिथि- भाद्रपद शुक्ल अष्टमी
अष्टमी तिथि का प्रारंभ- 3 सितंबर 2022 को अपराह्न 12.28 से।
महालक्ष्मी व्रत प्रारंभ- शनिवार, 3 सितंबर 2022 को।
चंद्रोदय का समय- 12.35 पी एम
अष्टमी तिथि समाप्त- रविवार, 4 सितंबर 2022 को 10.39 ए एम पर।
महालक्ष्मी व्रत पूर्ण शनिवार, 17 सितंबर 2022 को समापन। 
 
पूजन विधि : Mahalaxmi vrat puja Vidhi 
 
- श्री महालक्ष्मी व्रत में मां लक्ष्मी का विधि-विधान से पूजन किया जाता है। 
 
इस व्रत को करने से पहले भादो शुक्ल अष्टमी को स्नान करके दो दूने से सकोरे में ज्वारे (गेहूं) बोये जाते हैं। प्रतिदिन 16 दिनों तक इन्हें पानी से सींचा जाता है। 
 
- ज्वारे बोने के दिन ही कच्चे सूत (धागे) से 16 तार का एक डोरा बनाएं। डोरे की लंबाई इतनी लें कि आसानी से गले में पहन सकें। इस डोरे में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर 16 गठानें लगाएं तथा हल्दी से पीला करके पूजा के स्थान पर रख दें तथा प्रतिदिन 16 दूब और 16 गेहूं चढ़ाकर पूजन करें।
 
- आश्विन (क्वांर) कृष्ण पक्ष (बिदी) की अष्टमी के दिन उपवास (व्रत) रखें। स्नान के बाद पूर्ण श्रृंगार करें। 18 मुट्ठी गेहूं के आटे से 18 मीठी पूड़ी बनाएं। आटे का एक दीपक बनाकर 16 पु‍ड़ियों के ऊपर रखें तथा दीपक में एक घी-बत्ती रखें, शेष दो पूड़ी महालक्ष्मी जी को चढ़ाने के लिए रखें।
 
- पूजन करते समय इस दीपक को जलाएं तथा कथा पूरी होने तक दीपक जलते रखना चाहिए। अखंड ज्योति का एक और दीपक अलग से जलाकर रखें। 
 
- पूजन के पश्चात इन्हीं 16 पूड़ी को बियें (सिवैंया) की खीर या मीठे दही से खाते हैं। इन 16 पूड़ी को पति-पत्नी या पुत्र ही खाएं, अन्य किसी को नहीं दें।
 
- मिट्टी का एक हाथी बनाएं या कुम्हार से बनवा लें जिस पर महालक्ष्मी जी की मूर्ति बैठी हो। 
 
- सायंकाल में जिस स्थान पर पूजन करना हो, उसे गोबर से लीपकर पवित्र करें। 
 
- रंगोली बनाकर बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर हाथी को रखें। 
 
- तांबे का एक कलश जल से भरकर पटे के सामने रखें। 
 
- एक थाली में पूजन की सामग्री (रोली, गुलाल, अबीर, अक्षत, आंटी (लाल धागा), मेहंदी, हल्दी, टीकी, सुरक्या, दोवड़ा, दोवड़ा, लौंग, इलायची, खारक, बादाम, पान, गोल सुपारी, बिछिया, वस्त्र, फूल, दूब, अगरबत्ती, कपूर, इत्र, मौसम का फल-फूल, पंचामृत, मावे का प्रसाद आदि) रखें।
 
- केल के पत्तों से झांकी बनाएं। संभव हो सके तो कमल के फूल भी चढ़ाएं। पटे पर 16 तार वाला डोरा एवं ज्वारे रखें। 
 
- अब विधिपूर्वक महालक्ष्मी जी का पूजन करें तथा कथा सुनें एवं आरती करें। इसके बाद डोरे को गले में पहनें अथवा भुजा से बांधें।
 
- भोजन के पश्चात रात्र‍ि जागरण तथा भजन-कीर्तन करें। 
 
- दूसरे दिन प्रात: हाथी को जलाशय में विसर्जन करके सुहाग-सामग्री ब्राह्मण को दें तथा व्रत का समापन करें। 
 
- इस व्रत में नमक नहीं खाते हैं। 

ये भी पढ़ें
Ganpati bappa moriya: कहां से आया गणपति बप्पा मोरिया, क्यों लगाते हैं यह जयकारा