भारत की संयुक्त राष्ट्र और दुनिया को लताड़
न्यूयॉर्क। भारत ने सुरक्षा परिषद और अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर आरोप लगाया है कि वे आतंकवादियों व उनके समर्थकों को नजरअंदाज कर रहे हैं जबकि ये ताकतें दुनिया के सबसे बड़े एकजुट सैन्य प्रयास के खिलाफ खड़ी हैं। इस अवसर पर सुरक्षा परिषद में भारतीय प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने भारत का पक्ष रखा।
विदित हो कि सुरक्षा परिषद में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने बुधवार को अफगानिस्तान के हालात पर एक चर्चा के दौरान कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा समस्या को देखने की सामूहिक अक्षमता और अनिच्छा से अफगानिस्तान के लोगों को भारी कीमत चुकानी पड़ी है। यहां तक कि परिषद अफगानिस्तान में हुए कुछ आतंकवादी हमलों की निंदा करने से भी दूर रही है।
सुरक्षा परिषद के अफगानिस्तान के मुद्दे पर केवल तिमाही बैठक करने की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा क्यों है कि हम सुरक्षा परिषद द्वारा अफगानिस्तान के विवाद पर विचारों या कार्रवाई की योजनाओं की चर्चा नहीं सुन रहे जिसमें बहुत सारे अफगान लोगों को हिंसक हमले में जान गंवानी पड़ी है।
भारतीय प्रतिनिधि ने कहा कि आतंकवादियों के हमलों को महज 'सरकार विरोधी तत्वों' का काम या नागरिक व राजनीतिक विवादों का मुद्दा बताकर इनका महत्व कम किया जाता है। अकबरुद्दीन ने सीधे तौर पर पाकिस्तान, चीन का नाम लिए बिना अफगानिस्तान की समस्या के लिए पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद का मुद्दा उठाया।
उन्होंने कहा कि सुरक्षा परिषद और विश्व समुदाय सवाल पूछने से दूर हो रहे हैं, जो सवाल पाकिस्तान की भूमिका की ओर इशारा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ये सरकार विरोधी तत्व कहां से हथियार, विस्फोटक, प्रशिक्षण व रकम प्राप्त कर रहे हैं? वे कहां से सुरक्षित ठिकाना व पनाह प्राप्त कर रहे हैं? कैसे ये तत्व दुनिया के सबसे बड़े एकजुट सैन्य प्रयास (नाटो) के सामने खड़े हैं? कैसे ये तत्व अफगान लोगों की हत्या व क्रूरता में दुनिया के सबसे भयावह आतंकवादियों के साथ सहयोग करते हैं?
अकबरुद्दीन ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय का यह पहला और महत्वपूर्ण कर्तव्य है कि वह सुनिश्चित करे कि आतंकवाद व कट्टरवाद को बढ़ावा देने वाले बलों को किसी भी जगह सुरक्षित पनाह किसी भी स्तर पर नहीं मिले।
उन्होंने कहा कि तालिबान, हक्कानी नेटवर्क, अल कायदा, दाएश (आईएस), लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद व इनके जैसे दूसरे संगठनों से आतंकवादी संगठनों की तरह व्यवहार किया जाना चाहिए, क्योंकि इनकी गतिविधियों का कोई भी औचित्य नहीं है।