'गोंडवानालैंडिंग्स- वॉइसेस ऑफ़ द इमर्जिंग इंडियन डायस्पोरा' कॉन्फ्रेंस
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मेलबर्न में ऑस्ट्रेलिया इंडिया इंस्टिट्यूट के सहयोग से 'उभरते हुए भारतीयों की आवाज़' नाम से दो दिन के लिए एक कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया, जिसमें ऑस्ट्रेलिया के विभिन्न राज्यों से आए बुद्धिजीवियों ने भाग लिया। कार्यक्रम का आयोजन एक टीम ने किया जिसमें वोलोंगोंग विश्वविद्यालय की प्रवक्ता सुखमनी खुराना चेयरपर्सन थीं, टीम की अन्य सदस्य थीं- पोस्ट डॉक्टोरल कर रहीं रोआना गोंसाल्वेस, फिल्म मेकर आना तिवारी और शोध छात्रा देवकी मोनानी।
गोंडवानालैंड नाम इसलिए रखा गया क्योंकि यह उस महाद्वीप को इंगित करता है जो किसी समय में बहुत बड़ा था, जिसमें साउथ अफ्रीका, अमेरिका, अरब, मेडागास्कर, भारत, ऑस्ट्रेलिया और अन्टार्कटिका आते थे। ऑस्ट्रिया के भूविज्ञानी एडवर्ड स्यूस ने इसे गोंडवानालैंड इसलिए कहा क्योंकि एक पौधा जिसका नाम ग्लोसोपटेरिस था, वो इन सभी स्थानों पर उगता था। स्यूस के अनुसार ये सारा क्षेत्र किसी समय में एक साथ जुड़ा रहा होगा और बाद में धीरे-धीरे अलग हिस्सों में बंट गया होगा। तो इस कॉन्फ्रेंस में भी विविध क्षेत्रों के वक्ता सम्मिलित थे, जो किसी न किसी रूप में भारत से जुड़े थे।
कॉन्फ्रेंस के पहले दिन यानी 26 सितम्बर की शाम को ऑस्ट्रेलिया इंडिया इंस्टिट्यूट के निर्देशक अमिताव मट्टू ने सबका स्वागत किया और रात्रिभोज की व्यवस्था भी उन्होंने ही की। पहले दिन इंडियाना यूनिवर्सिटी के सुमित गांगुली ने अपने विचार रखे। गांगुली ने रवीन्द्रनाथ टैगोर के बारे में बताते हुए कहा कि कैसे उनके विचारों ने भारत की छवि को दुनिया में बदल दिया, भारतीय ही नहीं, विदेशियों के विचारों को भी प्रभावित किया। डॉ. किरण बेदी ने भी भ्रष्टाचार विरोधी कार्टूनों के माध्यम से अपनी बात कही।
अगले दिन यानि 27 सितंबर को कार्यक्रम की शुरुआत हुई राघव हांडा के नृत्य से, जिसमें आदिवासी डांस का भी कहीं-कहीं सम्मिश्रण था। उसके बाद देवलीना घोष ने उन्नीसवी सदी में ऑस्ट्रेलिया में भारतीय लोगों की उपस्थिति के बारे में बताते हुए कहा कि इतिहास में 1880 में एक बंगाली में यहां अचार बेचने का ज़िक्र है। उन्होंने 'एमिली क्रेग' और उनके बेटे 'रोनाल्ड क्रेग' की कहानी बताई, जिसने भारतीय महिला कोमला से शादी की थी।
ब्रजलाल ने फीजियन भारतीयों की स्थिति के बारे में बात की। उन्होंने बताया, किस तरह माइग्रेशन ने भारत से फ़ीजी गए लोगों के मन को झकझोर डाला। न्यू साउथ वेल्स की प्रवक्ता 'कामा मक्लीन' ने ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों के प्रवास के बारे में सूचना दी कि कैसे उन्नीसवीं सदी में वे फेरीवाले के रूप में घूमकर सामान बेचा करते थे।
आना तिवारी की ऑस्ट्रेलिया में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों पर बनी फिल्म 'सनशाइन और शेड' दिखाई गई, जिसकी लोगों ने सराहना की। इस कॉन्फ्रेंस के दौरान सिडनी के मेरीटाइम म्यूजियम में लगी प्रदर्शनी 'ईस्ट ऑफ़ इंडिया फॉरगॉटन ट्रेड विद ऑस्ट्रेलिया' और फिल्म मेकर अनुपम शर्मा की डाक्यूमेंट्री पर भी बात हुई। भारतीय ऑस्ट्रेलियन पत्रकार सुनील बदामी और लेखिका मनीषा जोली आमीन, सुभाष जयरथ और मिशेल काहिल ने उद्धरण देते हुए लेखन पर संस्कृति के प्रभाव के बारे में बात की।
'जेंडर और माइग्रेशन' यानी लिंग और प्रवास नाम के सत्र में कुछ भारतीय सामाजिक मुद्दों पर आवाज़ उठाई गई, युवा वकील पल्लवी सिन्हा ने प्रकाश डाला कि क़ानून क्या कहता है, अगर महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा हो, तो वे क्या करें। देवकी मोनानी के पर्चे में कुछ ऐसे मामलों की चर्चा की गई जिसमें भारतीय मूल की महिलाओं को परिवार व पति द्वारा उत्पीड़ित किया गया था।
दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रवक्ता नवजोत लाहिरी ने पांच हजार साल पहले के प्राचीन भारत और सिन्धु घाटी की सभ्यता की जानकारी दी। ऑस्ट्रेलिया में भारतीय प्रवासी साहित्य-कविता और कहानी, भाषा, नाटक, बॉलीवुड फिल्म, कला और संस्कृति से जुड़े लोगों ने अनेक विषयों पर विचार व्यक्त किए। ये भी स्वीकार किया गया कि ऑस्ट्रेलिया बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं के फिल्मों की शूटिंग के लिए लोकप्रिय स्थान बन चुका है।
रचनात्मक कार्यों में लगे लोगों में शेरन रंडल, अमित सरवाल, जसमीत कौर और मिशेल लिंडर, विद्या राजन, रेखा राजवंशी, पलाश लार्सन, ऐश्वर्या निधि, क्रिस राजा और इंदु बालाचंद्रन ने ऑस्ट्रेलिया में अपने रचनात्मक कार्यों के बारे में बताया। रेखा राजवंशी ने अपनी रचना यात्रा और ऑस्ट्रेलिया में 'हिन्दी क्यों' पर विचार व्यक्त किए।
कुल मिलाकर पहली बार आयोजित यह कॉन्फ्रेंस सफल रही और आशा है कि भारतीय समुदाय के बुद्धिजीवी इसी तरह मिलकर अपने ज्ञान और रचनात्मक कार्यों का आदान-प्रदान करते रहेंगे।