Maa ChandraghantaPuja Vidhi In Hindi: चैत्र या शारदीय नवरात्रि यानी नवदुर्गा में तीसरे दिन तृतीया की देवी मां चंद्रघंटा का पूजन किया जाता है। इसके बाद उनकी पौराणिक कथा या कहानी पढ़ी या सुनी जाती है। आओ जानते हैं माता चंद्रघण्टा की पावन कथा, पूजा, आरती, मंत्र सहित सभी कुछ।
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तृतीया देवी चंद्रघण्टा की पूजा विधि और भोग
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तृतीया देवी चंद्रघंटा का बीज मंत्र और आरती
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तृतीया देवी चंद्रघंटा की पौराणिक कथा
5 अक्टूबर 2024 शारदीय नवरात्रि तीसरे दिन की देवी चंद्रघण्टा की पूजा का शुभ मुहूर्त:
प्रात: पूजा का मुहूर्त- प्रात: 04:38 से 06:16 के बीच।
अभिजित मुहूर्त: दोपहर 11:46 से 12:33 के बीच।
शाम की पूजा का मुहूर्त : शाम 06:02 से 07:16।
चंद्रघंटा देवी का स्वरूप : माता चंद्रघंटा का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। माता के तीन नैत्र और दस हाथ हैं। इनके कर-कमल गदा, बाण, धनुष, त्रिशूल, खड्ग, खप्पर, चक्र और अस्त्र-शस्त्र हैं, अग्नि जैसे वर्ण वाली, ज्ञान से जगमगाने वाली दीप्तिमान देवी हैं चंद्रघंटा। ये शेर पर आरूढ़ है तथा युद्ध में लड़ने के लिए उन्मुख है।
मां चंद्रघंटा का भोग- आज के दिन मां सफेद चीज का भोग जैसे दूध या खीर का भोग लगाना चाहिए। इसके अलावा माता चंद्रघंटा को शहद का भोग भी लगाया जाता है।
मां चंद्रघंटा के मंत्र:-
सरल मंत्र : ॐ एं ह्रीं क्लीं
मां चंद्रघंटा का बीज मंत्र है- ऐं श्रीं शक्तयै नम:
माता चंद्रघंटा का उपासना मंत्र-
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।
मां चंद्रघंटा महामंत्र- या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नसस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:'।
मां चंद्रघंटा देवी की पूजा विधि-
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नवरात्रि में तीसरे दिन देवी मां चंद्रघंटा की पूजा का महत्व है।
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देवी चंद्रघंटा को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालुओं को भूरे रंग के कपड़े पहनने चाहिए।
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मां चंद्रघंटा को अपना वाहन सिंह बहुत प्रिय है और इसीलिए गोल्डन रंग के कपड़े पहनना भी शुभ है।
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तृतीया के दिन भगवती की पूजा में दूध की प्रधानता होनी चाहिए।
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पूजन के उपरांत वह दूध ब्राह्मण को देना उचित माना जाता है।
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इस दिन सिंदूर लगाने का भी रिवाज है।
मां चंद्रघंटा माता की आरती:
जय मां चंद्रघंटा सुख धाम
पूर्ण कीजो मेरे काम
चंद्र समान तू शीतल दाती
चंद्र तेज किरणों में समाती
क्रोध को शांत बनाने वाली
मीठे बोल सिखाने वाली
मन की मालक मन भाती हो
चंद्र घंटा तुम वरदाती हो
सुंदर भाव को लाने वाली
हर संकट मे बचाने वाली
हर बुधवार जो तुझे ध्याये
श्रद्धा सहित जो विनय सुनाय
मूर्ति चंद्र आकार बनाएं
सन्मुख घी की ज्योत जलाएं
शीश झुका कहे मन की बाता
पूर्ण आस करो जगदाता
कांची पुर स्थान तुम्हारा
करनाटिका में मान तुम्हारा
नाम तेरा रटू महारानी
'भक्त' की रक्षा करो भवानी
मां चंद्रघंटा की कथा कहानी- Chandraghanta ki katha Story:
पौराणिक कथा के अनुसार जब दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा था। उस काल में महिषासुर का भयंकर युद्ध देवताओं से हो रहा था। महिषासुर देवराज देवलोक को अपने कब्जे में लेना चाहता था।जब देवताओं को उसकी इस इच्छा का पता चला तो वे विचलिता हो गए। सभी देवता भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समक्ष पहुंचे। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने देवताओं की बात सुन क्रोध प्रकट किया। क्रोध आने पर उन तीनों के मुख से ऊर्जा निकली। उस ऊर्जा से एक देवी अवतरित हुईं। उस देवी को भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने अपना चक्र, इंद्र ने अपना घंटा दिया। सूर्य ने अपना तेज और तलवार और सिंह प्रदान किया। इसके बाद मां चंद्रघंटा ने महिषासुर तका वध कर देवताओं की रक्षा की।