श्रीनगर। झज्जर कोटली में हुए आतंकी हमले को चाहे एक और नाकामी के तौर पर देखा जाए, पर सच्चाई यही है कि इस हमले में शामिल आतंकी 40 किमी का सफर तय कर बॉर्डर से पहुंचे थे तो वर्ष 2016 में नगरोटा में सैन्य मुख्यालय पर हमला करने वाले आतंकियों ने भी बॉर्डर से नगरोटा तक का 50 किमी का सफर बिना रोकटोक के किया था।
हालांकि झज्जर कोटली से होते हुए ककरियाल में वैष्णोदेवी यूनिवर्सिटी तक पहुंचने वाले आतंकियों के सफर को सुरक्षा में बड़ी चूक के तौर पर लिया जा रहा है। दरअसल, बड़ी ब्राह्मणा से लोड हुआ यह ट्रक आतंकियों को लेकर 40 किमी दूर झज्जर कोटली तक पहुंच गया। रास्ते में कई पुलिस नाके आए लेकिन कहीं पर ये पकड़ में नहीं आए।
यदि यह ट्रक बाईपास रोड से झज्जर कोटली गया, तब भी रास्ते में बड़ी ब्राह्मणा का बलोल पुलिस नाका, इसके बाद कुंजवानी पुलिस नाका, फिर सिद्धड़ा पुलिस नाका, सिद्धड़ा के आगे पुल का नाका, नगरोटा पुलिस नाका और यहां तक कि बन टोल प्लाजा से भी यह ट्रक आगे से गुजरकर गया। आधा दर्जन पुलिस नाकों की नाक तले ये ट्रक निकलकर झज्जर कोटली पहुंच गया।
सूत्रों का यह भी कहना है कि आतंकियों के भागने के करीब 1 घंटे बाद पुलिस की कार्रवाई शुरू हुई। तब तक सेना और सीआरपीएफ के जवान भी मौके पर पहुंच गए। बार-बार यह बात सामने आई है कि नेशनल हाईवे पर हमेशा आतंकियों के हमला करने का खतरा है। बावजूद इसके, आतंकी हाईवे से कठुआ से झज्जर कोटली तक पहुंच गए तो इसे सुरक्षा में एक बड़ी चूक ही कहा जाएगा। इससे पहले इसी साल सुंजवां में हुआ आतंकी हमला भी सुरक्षा में एक बड़ी चूक था। आतंकी इलाके में पूरी रात बिताने के बाद सैन्य कैंप में घुसे और हमला कर दिया।
इससे पहले जब उधमपुर के नरसो नाले के पास आतंकी हमला हुआ था तब जिंदा पकड़े गए आतंकी नावेद ने बताया था कि वह कितनी देर तक हाईवे पर रुका रहा। ट्रक में बैठा रहा। तब भी वह बड़ी ब्राह्मणा से ही बैठा था। वे उधमपुर तक पहुंच गए थे जबकि नगरोटा स्थित 16वीं कोर मुख्यालय से सटे 166वीं फील्ड रेजीमेंट के ऑफिसर्स मैस और फैमिली क्वार्टर्स में 29 नवंबर 2016 की सुबह फिदायीन हमला करने वाले 3 आतंकियों के प्रति एक कड़वी सच्चाई यह थी कि उन्होंने बॉर्डर से लेकर हमले वाले स्थल तक पहुंचने के लिए 50 किमी का सफर बिना रोकटोक के पूरा किया था। हालांकि तीनों हमलावर आतंकियों को मार गिराया गया था लेकिन वे अपने पीछे अनगिनत अनसुलझे सवालों को छोड़ गए थे, जो अभी भी अनुत्तरित हैं।
प्राथमिक जांच कहती है कि आतंकियों ने 50 किमी का सफर अढ़ाई से 3 घंटों में तय किया था। वे बॉर्डर को पार करने के बाद सीधे नगरोटा आए थे, क्योंकि उन्होंने पहले ही हमले के स्थल को चुना हुआ था। यह उनसे मिले उस पर्चे से भी साबित होता था जिसमें उन्होंने नगरोटा का उल्लेख करते हुए लिखा था कि यह हमला अफजल गुरु की मौत का बदला लेने के लिए था।
सवाल यह नहीं है कि हमले का कारण क्या था जबकि जवाब इस सवाल का अभी भी अनुत्तरित है कि आखिर आतंकी इतनी तेजी से कैसे नगरोटा तक पहुंच गए? और अब एक बार फिर यह सवाल गूंज रहा है कि कैसे आतंकी झज्जर कोटली तक बेरोकटोक पहुंच गए?
नगरोटा हमले में शामिल आतंकियों के प्रति जांच एजेंसियां थ्योरी यह देती रहीं कि आतंकियों ने तवी नदी और नदी-नालों का रास्ता अख्तियार किया होगा। पर उसकी थ्योरी पर शंका इसलिए थी, क्योंकि नदी-नालों के रास्ते को पैदल पार करने में ज्यादा वक्त तथा ज्यादा गाइडों की आवश्यकता थी।
ऐसे में सबका ध्यान उसी थ्योरी पर जा रहा है कि घुसपैठ के बाद आतंकियों को उनके मददगारों ने वाहन की मदद से नगरोटा तक पहुंचाया होगा। याद रहे बॉर्डर से नगरोटा तक का वाहन से किया जाने वाला सफर राजमार्ग के रास्ते हो तो 1 घंटे में हो जाता है और अगर गांवों के रास्ते इसे पूरा किया जाए तो 2 से 2.30 घंटे लग जाते हैं।
ऐसे में यह भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि आखिर आतंकियों को उन तथाकथित नाकों पर क्यों नहीं रोका जा सका जिनके प्रति अक्सर यही दावा किया जाता रहा है कि यहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता जबकि इन नाकों की सच्चाई यह है कि इनमें से अधिकतर का इस्तेमाल कथित तौर पर मासूमों को तंग करने तथा नेशनल हाईवे पर चलने वाले ट्रकों से 'उगाही' करने के लिए किया जाता रहा है।
वैसे यह कोई पहला अवसर नहीं था कि जब आतंकी सीमा पर तारबंदी को काटकर इस ओर घुसे हों और उन्होंने फिदायीन हमलों को अंजाम दिया हो बल्कि इससे पहले भी ऐसी 6 से 7 घटनाएं हो चुकी हैं जिसमें ताजा घुसे आतंकियों ने जम्मू-पठानकोट राजमार्ग पर स्थित सैन्य ठिकानों और पुलिस स्टेशनों व पुलिस चौकियों को निशाना बनाते हुए भयानक तबाही मचाई हो। तब और अब के हमलों में एक जैसी बात यही है कि हमलों से पहले भी सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद होने के दावे किए जाते रहे थे और नगरोटा हमले के बाद भी ऐसे दावे जारी हैं।