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Last Modified: बुधवार, 6 जनवरी 2021 (07:56 IST)

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब प्रकाशित, PM मोदी के बारे में लिखी चौंकाने वाली बात

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब प्रकाशित, PM मोदी के बारे में लिखी चौंकाने वाली बात - pranab mukherjee book the presidential years released and mentions of pm narendra modi and sonia gandhi
नई दिल्ली। लंबे समय से चल रहे विवादों के बीच आखिरकार पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब द प्रेसीडेंशियल ईयर्स प्रकाशित हो गई। किताब में दिवंगत राष्ट्रपति ने सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई नेताओं का जिक्र करते हुए कई चौंकाने वाली बातें लिखी हैं।
मुखर्जी ने अपने संस्मरण ‘द प्रेसिडेंसियल ईयर्स, 2012-2017’ में लिखा है कि नरेंद्र मोदी सरकार अपने पहले कार्यकाल में संसद को सुचारू रूप से चलाने में विफल रही और इसकी वजह उसका अहंकार और अकुशलता है। साथ ही, उन्होंने संसद की कार्यवाही सुचारू से नहीं 
चलने के लिए विपक्ष को भी जिम्मेदार ठहराया। पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत प्रणब मुखर्जी ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि कांग्रेस का अपने करिश्माई नेतृत्व के खत्म होने की पहचान नहीं कर पाना 2014 के लोकसभा में उसकी हार के कारणों में से एक रहा होगा।

उन्होंने यह पुस्तक पिछले साल अपने निधन से पहले लिखी थी। मंगलवार को यह पुस्तक बाजार में आई। उन्होंने इस पुस्तक में यह भी लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा करने से पहले उनके साथ इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं की थी, लेकिन इससे उन्हें हैरानी नहीं हुई क्योंकि ऐसी घोषणा के लिए आकस्मिकता जरूरी है।
पूर्व राष्ट्रपति ने यह उल्लेख किया है कि 2014 के लोकसभा चुनाव की मतगणना वाले दिन उन्होंने अपने सहायक को निर्देश दिया था कि उन्हें हर आधे घंटे पर रुझानों के बारे में सूचित किया जाए। उन्होंने लिखा है कि नतीजों से इस बात की राहत मिली कि निर्णायक जनादेश आया, लेकिन किसी समय मेरी अपनी पार्टी रही कांग्रेस के 
 
प्रदर्शन से निराशा हुई। उन्होंने पुस्तक में लिखा है कि यह यकीन कर पाना मुश्किल था कि कांग्रेस सिर्फ 44 सीट जीत सकी। कांग्रेस एक राष्ट्रीय संस्था है जो लोगों की जिदंगियों से जुड़़ी है। इसका भविष्य हर विचारवान व्यक्ति के लिए हमेशा सोचने का विषय होता है। केंद्र में कांग्रेस की कई सरकारों में मंत्री रहे मुखर्जी ने 2014 की हार के लिए कई कारणों का उल्लेख किया है।

उन्होंने लिखा है कि मुझे लगता है कि पार्टी अपने करिश्माई नेतृत्व के खत्म होने की पहचान करने में विफल रही। पंडित नेहरू जैसे कद्दावर नेताओं ने यह सुनिश्चित किया कि भारत अपने अस्तित्व को कायम रखे और एक मजबूत एवं स्थिर राष्ट्र के तौर पर विकसित हो। दुखद है कि अब ऐसे अद्भुत नेता नहीं हैं, जिससे यह व्यवस्था औसत लोगों की सरकार बन गई।

पुस्तक में उन्होंने राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपने सौहार्दपूर्ण संबंधों का भी उल्लेख किया है। हालांकि मुखर्जी ने इस पुस्तक में नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान संसद को सुचारू से चलाने में विफलता को लेकर राजग सरकार की आलोचना की है।

उन्होंने लिखा है कि मैं सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच कटुतापूर्ण बहस के लिए सरकार के अहंकार और स्थिति को संभालने में उसकी अकुशलता को जिम्मेदार मानता हूं। परंतु विपक्ष भी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता। उसने भी गैरजिम्मेदाराना व्यवहार किया।

मुखर्जी के मुताबिक सिर्फ प्रधानमंत्री के संसद में उपस्थित रहने भर से इस संस्था के कामकाज में बहुत बड़ा फर्क पड़ता है। उन्होंने पुस्तक में कहा है कि चाहे जवाहलाल नेहरू हों, या फिर इंदिरा गांधी, अटलबिहारी वाजपेयी अथवा मनमोहन सिंह हों, इन्होंने सदन में अपनी उपस्थिति का अहसास कराया।
प्रधानमंत्री मोदी को अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों से प्रेरणा लेनी चाहिए और नजर आने वाला नेतृत्व देना चाहिए। मोदी सरकार में विदेश संबंधों का उल्लेख करते हुए मुखर्जी ने कहा है कि भारत-पाकिस्तान संबंधों में हालात को देखते हुए 2015 में प्रधानमंत्री मोदी का लाहौर में रुकना गैरजरूरी था।

किताब में कांग्रेस और सोनिया गांधी पर टिप्पणी को लेकर उठे विवाद के बाद प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी ने किताब पर तब तक रोक लगाने की मांग की थी जब तक कि वे उसे पढ़ नहीं लेते, लेकिन इससे ठीक उलट उनकी बहन और प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने किताब पर रोक लगाने की अपने भाई कि मांग को गलत बताया था। (इनपुट भाषा) (file photo)
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