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Last Modified: नई दिल्ली , शुक्रवार, 8 अगस्त 2025 (13:32 IST)

ट्रंप के ट्रेड वॉर का काउंटडाउन शुरू! क्या झुकेंगे मोदी या करेंगे पलटवार?

Trump trade war
Trump Trade war : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हालिया घोषणा ने भारत की विदेश और व्यापार नीति को एक चौराहे पर ला खड़ा किया है। ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने पर भारत को दंडित करते हुए भारतीय उत्पादों पर अमेरिकी टैरिफ को 25% से बढ़ाकर 50% कर दिया है। यह कदम, जिसे भारत ने अनुचित और अन्यायपूर्ण बताया है, 27 अगस्त से प्रभावी होगा, यानी भारत के पास फैसला लेने के लिए सिर्फ 20 दिन बचे हैं। ALSO READ: क्या अमेरिका की दादागिरी को खत्म करने के लिए एक साथ होंगे भारत, रूस और चीन, पुतिन भारत आएंगे, मोदी चीन जाएंगे
 
क्या है पूरा मामला और क्यों बढ़ा टैरिफ?
ट्रंप का यह कदम यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में रूस पर दबाव बनाने की नवीनतम कोशिश है। अमेरिका चाहता है कि रूस के तेल राजस्व में कटौती हो ताकि पुतिन युद्धविराम के लिए मजबूर हों। हालांकि, भारत का कहना है कि उसका रूस से तेल आयात बाज़ार की परिस्थितियों और अपनी ऊर्जा सुरक्षा की जरूरतों से प्रेरित है।
 
यह नया टैरिफ भारत को एशिया में अमेरिका का सबसे ज्यादा टैरिफ वाला व्यापारिक भागीदार बनाता है, जो ब्राज़ील जैसे देशों के साथ खड़ा है। अगर यह लागू होता है, तो भारत के सालाना 86.5 अरब डॉलर के निर्यात का एक बड़ा हिस्सा व्यावहारिक रूप से असंभव हो जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय निर्यातक मुश्किल से 10-15% की बढ़ोतरी को झेल सकते हैं, ऐसे में 50% का संयुक्त टैरिफ उनकी क्षमता से कहीं ज्यादा है। जापानी ब्रोकरेज फर्म नोमुरा ने इस कदम को "व्यापार प्रतिबंध" जैसा बताया है।
 
भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर?
निर्यात पर मार: अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार है, जहां भारत अपने कुल निर्यात का 18% भेजता है। 50% टैरिफ से निर्यातकों को भारी नुकसान होगा।
 
GDP को झटका: अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इस टैरिफ से भारत की GDP में 0.2-0.4% की कटौती हो सकती है, जिससे इस साल की विकास दर 6% से नीचे खिसकने का जोखिम है।
 
श्रम-प्रधान उद्योगों पर संकट: इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मा जैसे कुछ क्षेत्रों को छूट मिल सकती है, लेकिन कपड़ा, रत्न और आभूषण जैसे श्रम-प्रधान उद्योग इसकी सबसे ज़्यादा मार झेलेंगे। भारतीय कपड़ा उद्योग परिसंघ (CITI) ने इसे बड़ा झटका बताया है।
 
निवेशकों की भावना पर असर: यह टैरिफ भारत की 'चीन-प्लस-वन' डेस्टिनेशन के रूप में उभरती साख को भी कमजोर कर सकता है, क्योंकि वियतनाम जैसे देश कम टैरिफ की पेशकश करते हैं। ALSO READ: ट्रंप का टैरिफ वार : किन सेक्टरों पर पड़ेगी मार, क्या महंगा होगा, भारत पर कितना होगा असर?
 
मोदी सरकार की विदेश नीति पर सवाल
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जयति घोष ने इस मुद्दे पर कहा है कि मोदी सरकार की व्यक्तिगत संबंधों पर आधारित विदेश नीति, जैसे कि मोदी और ट्रंप की दोस्ती, पूरी तरह से विफल साबित हुई है। उनके अनुसार, भारत ने इस स्थिति को गलत तरीके से संभाला है और अमेरिकी दबाव के आगे झुकने के बजाय उसे अपनी घरेलू ताकत पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
 
घोष का तर्क है कि भारत का अमेरिका के प्रति झुकाव चीन के डर से प्रेरित है, जिसने हमारी रणनीतिक स्वायत्तता को प्रभावी ढंग से समाप्त कर दिया है। वह कहती हैं कि रणनीतिक स्वायत्तता का मतलब किसी भी शक्ति गुट से स्वतंत्रता होगा। अगर आप चीन और अमेरिका के बीच किसी एक के संरक्षण में महसूस करते हैं, तो आपकी रणनीतिक स्वायत्तता कहां है?
 
जयति घोष ने यह भी कहा कि भारत को निर्यात-आधारित विकास के जुनून को छोड़कर अपने विशाल घरेलू बाज़ार पर ध्यान देना चाहिए। उनका कहना है कि अगर सरकार देश के निचले तबके की क्रय शक्ति बढ़ाए, तो यही 'बबलिंग-अप' प्रभाव अर्थव्यवस्था को गति देगा और हमें बाहरी दबाव से बचाएगा।
 
क्या हैं भारत के पास विकल्प?
भारत के पूर्व केंद्रीय बैंक गवर्नर उर्जित पटेल ने उम्मीद जताई है कि यह स्थिति अल्पकालिक होगी और आगामी व्यापार वार्ताओं में इसका समाधान निकल जाएगा। वहीं, चैथम हाउस के डॉ. क्षितिज बाजपेयी का मानना है कि भारत रूस पर अपनी निर्भरता कम करने का संकेत देकर कुछ सुलह के संकेत दे सकता है।
 
हालांकि, कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रम्प की कार्रवाई भारत को अपने रणनीतिक संबंधों पर पुनर्विचार करने का अवसर देती है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अजय श्रीवास्तव का कहना है कि अमेरिका की कार्रवाइयां भारत को रूस और चीन के साथ अपने संबंधों को गहरा करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं।
 
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत डेयरी और कृषि जैसे क्षेत्रों में रियायतें देगा, जिसकी अमेरिका मांग कर रहा है, या अपनी घरेलू सुरक्षा के लिए दृढ़ता से खड़ा रहेगा?
 
क्या मोदी सरकार जवाबी कार्रवाई करेगी?
फिलहाल, भारत सरकार ने एक मजबूत मोर्चा बनाया है और कहा है कि वह "अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कार्रवाइयां" करेगी। विपक्ष ने भी इस पर हमला बोला है, जहां कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्रंप के टैरिफ को "आर्थिक ब्लैकमेल" बताया है।
 
बार्कलेज रिसर्च का कहना है कि भारत द्वारा जवाबी कार्रवाई की संभावना कम है, लेकिन असंभव नहीं है। उन्होंने याद दिलाया कि 2019 में भी भारत ने अमेरिकी स्टील और एल्यूमीनियम टैरिफ के जवाब में 28 अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ लगाया था।
 
ट्रंप की यह चाल भारत के लिए एक ऊंचे दांव वाला जुआ साबित हो सकती है। आगामी 20 दिन बेहद महत्वपूर्ण हैं, और इस अवधि में भारत का अगला कदम न केवल उसके अपने भविष्य, बल्कि वैश्विक भू-राजनीतिक संबंधों को भी प्रभावित करेगा। क्या मोदी-ट्रंप की दोस्ती का अंत एक कड़वे व्यापार युद्ध में होगा, या कूटनीति से कोई रास्ता निकलेगा, इसका फैसला जल्द ही होगा।
edited by : Nrapendra Gupta 
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