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Last Updated :नई दिल्ली , सोमवार, 19 दिसंबर 2016 (16:19 IST)

प्रख्यात पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र का निधन

Environmentalist Anupam Mishra passes away
प्रख्यात पर्यावरणविद् और गांधीवादी अनुपम मिश्र का निधन हो गया। उन्होंने सोमवार तडक़े अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में अंतिम सांस ली। वह 68 वर्ष के थे। उनकी जानी-मानी प्रमुख रचनाएं राजस्थान की रजत बूँदें, आज भी खरे हैं तालाब और साफ माथे का समाज काफी चर्चित रही हैं। 
 
मिश्र के परिवार में उनकी पत्नी मंजू मिश्र, एक बेटा, बड़े भाई और दो बहनें हैं।  मिश्र गांधी शांति प्रतिष्ठान के ट्रस्टी एवं राष्ट्रीय गांधी स्मारक निधि के उपाध्यक्ष थे। मिश्र काफी दिनों से कैंसर से पीड़ित थे और पिछले दस दिसंबर को उन्हें दोबारा एम्स में भर्ती कराया गया था।

मिश्र का पार्थिव शरीर 11 बजे गांधी शांति प्रतिष्ठान में लाया जाएगा। उनका अंतिम संस्कार निगम बोध घाट के विद्युत शवदाह गृह में दो बजे किया जाएगा। मिश्र ने जल संरक्षण के क्षेत्र में भी काफी काम किया है। उनके द्वारा लिखी गई  'आज भी खड़े हैं तालाब' और 'राजस्थान की रजत बूंदे' नामक पुस्तक काफी लोकप्रिय है।
 
उल्लेखनीय है कि अनुपम मिश्र का जन्म महाराष्ट्र के वर्धा में सन 1948 में हुआ था। उन्होंने लेखक, संपादक, छायाकार और गांधीवादी पर्यावरणविद् में काफी ख्याती प्राप्त की थी। पर्यावरण-संरक्षण के प्रति जनचेतना जगाने और सरकारों का ध्यानाकर्षित करने की दिशा में वह तब तक काम करते रहे, जब तक देश में पर्यावरण रक्षा का कोई विभाग नहीं खुला था।
 
आरंंभ में बिना सरकारी मदद के अनुपम मिश्र ने देश और दुनिया के पर्यावरण की जिस तल्लीनता और बारीकी से खोज-खबर ली है, वह कई सरकारों, विभागों और परियोजनाओं के लिए भी संभवत: संभव नहीं हो पाया है। उनकी कोशिश से सूखाग्रस्त अलवर में जल संरक्षण का काम शुरू हुआ जिसे दुनिया ने देखा और सराहा। सूख चुकी अरवरी नदी के पुनर्जीवन में उनकी कोशिश काबिले तारीफ रही है। इसी तरह उत्तराखण्ड और राजस्थान के लापोडिय़ा में परंपरागत जल स्रोतों के पुनर्जीवन की दिशा में उन्होंने अहम काम किया है।

अनुपमजी का महत्वपूर्ण इंटरव्यू
 
उन्होंने दिल्ली में उन्होंने पर्यावरण कक्ष की स्थापना की थी। उन्होंने बाढ़ के पानी के प्रबंधन और तालाबों द्वारा उसके संरक्षण की युक्ति के विकास का महत्त्वपूर्ण काम किया है। वह जल-संरक्षक राजेन्द्र सिंह की संस्था तरुण भारत संघ के लंबे समय तक अध्यक्ष रहे। आज भी खरे हैं तालाब के लिए 2011 में उन्हें देश के प्रतिष्ठित जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
 
अनुपम मिश्र ने इस किताब को शुरू से ही कॉपीराइट से मुक्त रखा है। 1996 में उन्हें देश के सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। 2007-2008 में उन्हें मध्य प्रदेश सरकार के चंद्रशेखर आज़ाद राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन्हें एक लाख रुपये के कृष्ण बलदेव वैद पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।