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Last Updated : बुधवार, 15 मई 2024 (18:56 IST)

क्षमा करें, गर्भ में पल रहे बच्चे को भी है जिंदा रहने का हक

सुप्रीम कोर्ट ने 20 वर्षीय अविवाहित युवती की याचिका पर सुनवाई से किया इंकार

क्षमा करें, गर्भ में पल रहे बच्चे को भी है जिंदा रहने का हक - 20 year old unmarried girl did not get permission to abort pregnancy for 7 months
Supreme Court News: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को 20 वर्षीय एक अविवाहित युवती की याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर दिया, जिसमें 27 सप्ताह के गर्भ को नष्ट करने देने की अनुमति मांगी गई थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि गर्भ में पल रहे भ्रूण का भी जीवन का मौलिक अधिकार है। न्यायमूर्ति बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह आदेश महिला की अर्जी की सुनवाई के दौरान पारित किया जिसने तीन मई को दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा गर्भपात कराने की अनुमति देने से इंकार किए जाने के फैसले को चुनौती दी थी। ALSO READ: सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की केजरीवाल को सीएम पद से हटाने वाली याचिका
 
इस बारे में आपको क्या कहेंगे : याचिकाकर्ता के वकील के मुताबिक पीठ ने कहा कि हम कानून के विरोधाभासी आदेश पारित नहीं कर सकते। इस पीठ में न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी और न्यायमूर्ति संदीप मेहता भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि गर्भ में पल रहे बच्चे को भी जिंदा रहने का मौलिक अधिकार प्राप्त है। इस बारे में आपको क्या कहना है? ALSO READ: सुप्रीम कोर्ट ने दिया न्यूजक्लिक के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ को रिहा करने का आदेश
 
महिला का पक्ष रख रहे वकील ने कहा कि गर्भावस्था का चिकित्सीय समापन अधिनियम केवल मां की बात करता है। उन्होंने कहा कि यह (कानून) केवल मां के लिए बनाया गया है। पीठ ने कहा कि गर्भ अब करीब 7 महीने का हो गया है। अदालत ने सवाल किया कि गर्भ में पल रहे बच्चे के जिंदा रहने के अधिकार का क्या? आप उसका जवाब कैसे देंगे? ALSO READ: बाबा रामदेव ने जज अमानुल्लाह को किया प्रणाम, जज ने दिया ये जवाब, सुप्रीम कोर्ट में चल रही थी सुनवाई
 
महिला के वकील के तर्क : वकील ने कहा कि जब तक भ्रूण गर्भ में होता है और बच्चे का जन्म नहीं हो जाता तब तक यह अधिकार मां का होता है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता इस समय अत्यधिक पीड़ा से गुजर रही है। वह बाहर नहीं जा सकती। वह नीट परीक्षा की कक्षाएं ले रही है। वह बहुत ही पीड़ादायक स्थिति से गुजर रही है। वह इस अवस्था में समाज का सामना नहीं कर सकती। वकील ने कहा कि पीड़िता की मानसिक और शारीरिक बेहतरी पर विचार किया जाना चाहिए। इस पर पीठ ने कहा कि क्षमा करें।
 
क्या कहा था हाईकोर्ट ने : उच्च न्यायालय ने तीन मई के आदेश में रेखांकित किया कि 25 अप्रैल को अदालत ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया था ताकि भ्रूण और याचिकाकर्ता की स्थिति का आकलन किया जा सके। उच्च न्यायालय ने कहा था कि रिपोर्ट (मेडिकल बोर्ड की) को देखने से पता चलता है कि भ्रूण में कोई जन्मजात असामान्यता नहीं है और न ही मां को गर्भावस्था जारी रखने से कोई खतरा है, जिसके लिए भ्रूण को समाप्त करना अनिवार्य हो। (भाषा)
Edited by: Vrijendra Singh Jhala