सिख धर्म के प्रथम गुरु गुरुनानक देवी जी अपने चार साथी मरदाना, लहना, बाला और रामदास के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। ये चारों ओर घूमकर उपदेश देने लगे। कहते हैं कि 1500 से 1524 तक इन्होंने 5 यात्रा चक्र पूरे किए, जिनमें भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य मुख्य स्थानों का भ्रमण किया। इन यात्राओं को पंजाबी में "उदासियां" कहा जाता है। इन उदासियों की संक्षिप्त जानकारी।
1.पहली उदासी : गुरुनानक जी की पहली 'उदासी' 1500 ईस्वी से 1506 ईस्वी तक रही। इस दौरान उन्होंने सुल्तानपुर, तुलम्बा (आधुनिक मखदुमपुर, जिला मुल्तान), पानीपत, दिल्ली, बनारस (वाराणसी), नानकमत्ता (जिला नैनीताल, यूपी), टांडा वंजारा (जिला) रामपुर), कामरूप (असम), आसा देश (असम), सैदपुर (आधुनिक अमीनाबाद, पाकिस्तान), पसरूर (पाकिस्तान), सियालकोट (पाकिस्तान) आदि जगहों पर भ्रमण किया। तब उनकी 31-37 की उम्र थी।
2.दूसरी उदासी : गुरुनानक जी की दूसरी 'उदासी' 1506 ईस्वी से 1513 ईस्वी तक रही। इस दौरान उन्होंने धनसारी घाटी, सांगलादीप (सीलोन) आदि जगहों पर भ्रमण किया। कहते हैं तब उनकी 37-44 की उम्र थी।
3.तीसरी उदासी : गुरुनानक जी की तीसरी 'उदासी' 1514 ईस्वी से 1518 ईस्वी तक रही। इस दौरान उन्होंने कश्मीर, सुमेर पर्वत, नेपाल, ताशकंद, हिमाचल, सिक्किम, तिब्बत आदि जगह की यात्रा की। तब गुरु नानक देवजी 45-49 की उम्र के थे।
4.चौथी उदासी : गुरुनानक जी की चौथी 'उदासी' 1519 ईस्वी से 1521 ईस्वी तक रही। इस दौरान उन्होंने बहावलपुर, साधुबेला (सिन्धु), मक्का, मदीना, बगदाद, बल्ख बुखारा, काबुल, कन्धार, ऐमानाबाद आदि स्थानों की यात्रा की। तब गुरुनानक देवजी की 50-52 उम्र थी।
5.पांचवीं उदासी : गुरुनानक जी की पांचवीं 'उदासी' 1523 ईस्वी से 1524 ईस्वी तक रही। इस दौरान उन्होंने पंजाब के भीतर के ही कई स्थानों की यात्रा की। तब गुरुजी की 54-56 की उम्र थी।
बाबजी ने अपनी यात्रा के दौरान हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, काशी, गया, पटना, मणिकर्ण, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर, सोमनाथ, द्वारका, नर्मदातट, बीकानेर, पुष्कर तीर्थ, दिल्ली, कुरुक्षेत्र, मुल्तान, लाहौर आदि जगहों का भी भ्रमण किया था।
अपनी यात्राओं को समाप्त कर वे करतारपुर में बस गए और 1539 ईस्वी तक वहीं रहे। बाबाजी ने 5 उदासियों में लगभग 24 साल बिताए। कहते हैं कि जब गुरुनानक ऐमराबाद की यात्रा पर थे तब बाबर ने भारत पर आक्रमण किया था। गुरु नानक ने स्वयं अपनी आंखों से इसे देखा था। उसे समय उन्होंने कहा था कि मौत का दूत आया है। बाबर द्वारा देश पर हमला करने के बाद गुरु नानकदेवजी ने कुछ शब्द कहे थे तो उन शब्दों में पहली बार हिंदुस्तान शब्द का उच्चारण हुआ था- खुरासान खसमाना कीआ। हिंदुस्तान डराईआ।