प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विरोधियों के हमले झेलने में शीर्ष पर रहे हैं। इस मामले में देश का कोई भी नेता उनकी बराबरी पर नहीं हो सकता। गुजरात के मुख्यमंत्री होने से लेकर आज तक उनके साथ यह सिलसिला जारी है। इसके बावजूद वे विचलित हुए बिना सहज रूप से अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करते रहे। उन पर होने वाले हमले केवल प्रजातांत्रिक या सैद्धांतिक होते तो बात अलग थी लेकिन विरोधियों ने अमर्यादित तंज कसने में भी कभी संकोच नहीं किया। इन सबके बाद भी विडंबना देखिए, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले का आरोप भी उनकी सरकार को झेलना पड़ा। सियासी अंदाज में कुछ साहित्यकारों ने तो इसे लेकर बड़ा अभियान ही चलाया था। उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि मोदी से उनकी निजी नफरत विश्व में भारत की छवि बिगाड़ रही है लेकिन वे लोग मोदी के विरोध में कोई भी हद पार करने को तैयार थे।
किंतु एक बार नरेन्द्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के संदर्भ में 'रेनकोट' शब्द का प्रयोग क्या किया, कांग्रेस तिलमिला गई। मोदी ने कहा था कि रेनकोट पहनकर नहाने की कला मनमोहन सिंह से सीखें। राज्यसभा में दिए गए इस बयान पर कांग्रेस ने हंगामा कर दिया। रेनकोट और स्नान को अमर्यादित बताया गया। कहा कि इससे प्रधानमंत्री पद की गरिमा गिरी है। मोदी को माफी मांगनी चाहिए। कांग्रेस यह भी भूल गई कि उसके राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी तो ढाई वर्षों से मोदी के कपड़ों पर ही तंज कस रहे हैं। अपना फटा कुर्ता सार्वजनिक रूप से दिखा रहे हैं। मोदी ने 'रेनकोट' कहा तो विचलित हो गए।
यहां पहली बात यह कि मोदी का बयान कहीं से भी असंसदीय या अमर्यादित नहीं था। यह एक प्रकार की शालीन उपमा थी। इसको इसी रूप में देखना चाहिए। कांग्रेस ने इसे व्यक्तिगत हमला बताया, क्योंकि इसमें मनमोहन सिंह का नाम लिया गया था किंतु इस बयान में मनमोहन सिंह की निजी ईमानदारी को अपरोक्ष रूप में स्वीकार किया गया था। मोदी ने भी उन्हें ईमानदार माना, लेकिन क्या वे प्रधानमंत्री के रूप में अपनी जिम्मेदारियों का ईमानदारी से निर्वाह कर सके, क्या उनकी सरकार में घोटालों के रिकॉर्ड कायम नहीं हुए, क्या घोटालों की इतनी रकम देश ने कभी सुनी थी, क्या देश के अधिकांश लोग यह नहीं जानते थे कि घोटाले की रकम में कितने शून्य लगेंगे? ये आरोप भी राजनीतिक नहीं थे। संवैधानिक संस्थाओं ने भी इन विषयों को गंभीरता से लिया। नियंत्रक व लेखा महापरीक्षक की रिपोर्ट में अनेक बड़े घोटालों को उजागर किया गया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी जांच पर निगरानी रखना शुरू किया था। आज भी जांच आगे बढ़ रही है, सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में यह कार्य हो रहा है।
क्या ये गलत है कि टू जी स्पेक्ट्रम के मुख्य आरोपी तत्कालीन संचार मंत्री राजा को मनमोहन सिंह ने क्लीनचिट नहीं दी थी? घोटाले का कैग द्वारा खुलासा होने के बाद डेढ़ वर्ष तक मनमोहन ने उनके खिलाफ कार्रवाई से इंकार कर दिया था। एक समय तो ऐसा भी था कि सीबीआई स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच कर रही थी। जांच के दायरों में केंद्रीय संचार मंत्रालय भी था और राजा संचार मंत्री के पद पर विराजमान थे। इसी दौर में राजा के नेता व द्रमुक प्रमुख करुणानिधि नई दिल्ली आए थे। मनमोहन ने कीमती शॉल पहनाकर उनका स्वागत किया और यह आश्वासन दिया कि उनके चहेते राजा को संचार मंत्रालय से हटाया नहीं जाएगा।
करुणानिधि यही वादा लेने नई दिल्ली आए थे फिर खुशी-खुशी चेन्नई लौट गए। देश यह भी जानता है कि मनमोहन ने संचार मंत्री पद से राजा को कब हटाया? सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी नाराजगी में पूछा था कि मुख्य आरोपी राजा अपने पद पर क्यों बने हुए हैं, तब जाकर उन्हें हटाया गया। क्या रेनकोट पहनकर नहाने की उपमा इस पर सटीक नहीं बैठती। करीब पौने दो लाख करोड़ के कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले का प्रकरण ज्यादा रोचक है। करीब 4 वर्षों तक कोयला मंत्रालय की जिम्मेदारी तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास थी। यहां भी आरोप विपक्षी पार्टी पर नहीं था। नियंत्रक व लेखा महापरीक्षक रिपोर्ट में घोटाले की रकम का उल्लेख था। नियमों व ईमानदारी के तथ्यों को नजरअंदाज करते हुए अनेक कोल ब्लॉक उन्हें आवंटित किए गए थे जिन्हें कि कोयला निकालने का कोई अनुभव ही नहीं था। इनमें वे आवंटन भी शामिल थे जिन पर कोयला मंत्रालय के प्रभारी मनमोहन सिंह के हस्ताक्षर थे, फिर भी वे ईमानदार थे।
क्या रेनकोट पहनकर नहाने का उदाहरण गलत है, क्या यह सही नहीं कि तब लोक लेखा समिति की जांच तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यालय तक पहुंच गई थी लेकिन समिति में संप्रग का बहुमत था, इसमें आवाज दबा दी गई। क्या यह सही नहीं कि कोयला घोटाले की जांच रिपोर्ट सरकार के किसी प्रतिनिधि को न दिखाने का निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने दिया था। इसके अनुसार सीबीआई की जांच रिपोर्ट सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंचानी थी फिर भी तत्कालीन कोयला मंत्री अश्वनी कुमार ने उसे देखा। आरोप लगा कि वे किसी को बचाना चाहते थे। खुलासा हुआ तब अश्वनी को त्यागपत्र देना पड़ा था।
इसी प्रकार कॉमनवेल्थ, अगस्टा हेलीकॉप्टर, आदर्श सहित अनेक घोटालों पर मनमोहन सिंह का लगभग यही रुख था। किसी व्यक्ति का ईमानदार होना उसकी निजी विशेषता है लेकिन जब वह जिम्मेदारी के पद पर होता है, मात्र इससे काम नहीं चलता। उसने अपने कार्यक्षेत्र में भ्रष्टाचार घोटाले रोकने का कितना प्रयास किया, इससे उसका आकलन होता है।
मनमोहन सिंह ईमानदार थे, क्या वे सरकार के मुखिया की जिम्मेदारी भी ईमानदारी से निभा सके? उनकी निजी जिम्मेदारी से देश को क्या मिला? ईमानदार प्रधानमंत्री इतने घोटालों के बाद सहज व अविचलित कैसे बने रहे? ये माना कि वे ज्यादा कुछ करने की हैसियत में नहीं थे, लेकिन उनके एक अधिकार पर किसी का जोर नहीं था। उनकी अंतरात्मा घोटालों पर कचोटती तो वे प्रधानमंत्री का पद छोड़ने का अधिकार रखते थे, उन्होंने यह भी नहीं किया। क्यों न माना जाए कि उन्होंने पद पर रहने के लिए रेनकोट पहनकर नहाने का कथन चरितार्थ किया था। इस संदर्भ में सबसे आपत्तिजनक यह था कि मनमोहन सिंह ने घोटाला करने वालों का अंतिम सीमा तक बचाव किया फिर भी वे ईमानदार बने रहे। इस परिप्रेक्ष्य में तो नरेन्द्र मोदी ने रेनकोट के माध्यम से मनमोहन सिंह को निजी तौर पर ईमानदार बताया है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि 'रेनकोट' की उपमा से ही मनमोहन सिंह के संपूर्ण व्यक्तित्व को समझा जा सकता है। यह उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी जिसकी वजह से वे भारत के प्रधानमंत्री बनाए गए। 10 वर्ष तक बिना किसी चुनौती के इस कुर्सी पर काबिज रहे, क्योंकि कांग्रेस हाईकमान का वरदहस्त उनके ऊपर था। दूसरी बात यह कि मनमोहन सिंह को अपने बारे में कोई गलतफहमी नहीं थी। वे केवल अर्थशास्त्र ही नहीं, संविधान की पर्याप्त जानकारी रखते थे। वे जानते थे कि प्रधानमंत्री पद तक पहुंचना कितना मुश्किल होता है। प्राय: लोकप्रिय व सर्वाधिक जनाधार वाले व्यक्ति को ही यह गौरव मिलता है, बहुमत प्राप्त करने वाला दल या गठबंधन जिसे नेता चुनता है, वही प्रधानमंत्री बनता है।
याद कीजिए, जब 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति कलाम से मुलाकात के बाद सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद से अपना नाम हटा लिया था। उन्होंने इसके लिए जब मनमोहन सिंह का नाम पेश किया, तो पहले कांग्रेस की किसी भी सदस्य ने उनका समर्थन नहीं किया, सभी सदस्य सोनिया गांधी के सामने गुहार लगा रहे थे। मतलब साफ है कि सोनिया गांधी की कृपा से वह व्यक्ति प्रधानमंत्री बना जिसने जीवन में ग्राम-प्रधान का चुनाव भी नहीं जीता था। सुनने में अच्छा भले न लगे, लेकिन रेनकोट पहनकर नहाने की कला ने ही मनमोहन सिंह को बुलंदियों पर पहुंचाया था।