शनिवार, 28 दिसंबर 2024
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Written By Author ऋतुपर्ण दवे

अफसरशाहों की भरमार, दौड़ पड़ेगी मोदी सरकार

अफसरशाहों की भरमार, दौड़ पड़ेगी मोदी सरकार - Modi government
परंपरागत तरीकों से आगे की सोच, नए प्रयोग, राजनीतिक दबाव से इतर प्रधानमंत्री के तीसरे मंत्रिमण्डल विस्तार को मिशन मोड कहना ज्यादा ठीक होगा। जात-पांत, राज्य, राजनीतिक पृष्ठभूमि, दबदबा जैसे ढ़र्रों को पीछे छोड़ नरेन्द्र मोदी ने बता दिया कि कहीं पे निगाहें और कहीं पे निशाना है। जाहिर है अब मेक इन इंडिया से न्यू इंडिया का विजन है और मकसद 2019 आमचुनाव में भाजपा के बलबूते रिकॉर्ड सफलता बनाना। शायद इसीलिए घटक दलों जेडीयू, एआईएडीएमके और शिवसेना की परवाह तक नहीं की!
 
आलोचक कुछ भी कहें, इरादे साफ हैं। जोखिम लेने की इसी आदत ने उन्हें सबसे जुदा बनाया। इसी अंदाज में रंगे मोदी ने उन मंत्रियों की छुट्टी में कोई कोताही नहीं बरती जो उनके सपनों को साकार करने में विफल रहे। लेकिन,  सुरेश प्रभु जैसे काबिलों को बख्शा जो चाहकर भी कुछ खास नहीं कर सके।
 
हाँ, तीसरे विस्तार ने इतना संकेत तो दे ही दिया कि उनका भरोसा अफसरशाहों पर कहीं ज्यादा है शायद वक्त की यही नब्ज है। विस्तार का यह सार यह तो नहीं कि अब है तजुर्बेकारों की सरकार? 4 नौकरशाहों, आरके सिंह, डॉ. सत्यपाल सिंह, केजे अल्फोंस और हरदीप सिंह पुरी को कैबिनेट में शामिल किया। जिसमें अल्फोंस और पुरी सांसद नहीं है।
 
गौरतलब है कि अब मौजूदा मंत्री और तबके सांसद आरके सिंह ने 23 जून 2015 को भगोड़े ललित मोदी पर वसुन्धरा राजे और सुषमा स्वराज का नाम लिए बिना कहा कि, मैं एक बार नहीं 10 बार बोलूंगा कि उसकी मदद करना गलत है। वहीं बिहार विधानसभा चुनावों में अपराधियों से पैसे लेकर टिकट बेचने के आरोप भी लगाए थे। जबकि अल्फोंस ने डीडीए में रहकर अवैध निर्माणों पर सख्ती कर सुर्खियां बटोरीं और इनका झुकाव कम्युनिस्ट राजनीति की तरफ रहा। लेकिन काबिलियत के पारखी मोदी को इनमें कुछ और ही नजर आता है। हां धर्मेन्द्र प्रधान, पीयूष गोयल, निर्मला सीतारमण और मुख्तार अब्बास नकवी को उनकी योग्यता ने प्रमोशन दिलाया।
 
कुछ भी हो तीन साल के सफर में हमेशा चौंकाने वाले निर्णय मोदी की पहचान बने। ये बात अलग है कि महत्वपूर्ण फैसलों के नतीजे, इरादों से इतर रहे। मोदी ही थे जिन्होंने राजनीतिक जीवन का कठोर फैसला लेकर निश्चित रूप से देशवासियों को एक बेहतर पैगाम तो दे ही दिया और एक झटके में 8 नवंबर 2016 को 86 फीसदी नकदी को चलन से बाहर कर दुनिया की 7वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के हर बालिग नागरिक को बैंकों की कतार में लगा दिया। कारोबारी तिलमिला गए, शादी ब्याह में अड़चने आ खड़ी हुईं, कई मौतें हुईं लेकिन मोदी तो मोदी ठहरे। काले धन के लगाम पर 99 फीसदी बंद हुई करेंसी बैंकों में लौट आने पर काले और सफेद धन को लेकर प्रतिक्रियाएं चाहे जो आएं लेकिन बड़ी ही खूबसूरती से कही डिजिटल अर्थव्यवस्था की बातों में देशवासियों को उलझाकर फिर विश्वास जीत लिया।
 
नोटबंदी से आतंकवाद और नक्सलवाद के खात्मे का दावा भले ही पूरा नहीं हुआ और ताजा रिपोर्ट में विकास दर पिछली तिमाही की तुलना में 6.1 प्रतिशत से नीचे गिरकर 5.7 पर आ गई हो। लेकिन वो मोदी ही हैं जो अब भी लगातार कड़े फैसले लेने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। 
 
हाँ पिछले कैबिनेट के प्रदर्शन पर बाकयदा कॉर्पोरेटर तरीके अपनाए, एक्सेल सीट तैयार कर सबका खाता-बही बनाया, पॉजिटिव-निगेटिव अंकों से ग्रेडिंग की। स्किल इण्डिया की विफलता से नई नौकरियों के मौके नहीं आने, साफ-सफाई पर दावों और हकीकत में अंतर, कैबिनेट की बैठकों के दौरान मंत्रियों की गैरहाजिरी, गैरजिम्मेदारी, लापरवाही और भ्रष्टाचार के पुख्ता आधारों ने कई मंत्रियों की एक्सल सीट को निगेटिव रंग से रंग दिया तो कइयों के विभाग भी बदले जाने की इबारत लिख दी।
 
इधर एडीआर और नेशनल इलेक्शन वाच की ताजा रिपोर्ट ने भी कइयों की नींद उड़ा रखी होगी। कुल 4986 सांसदों-विधायकों में 4852 के शपथपत्रों के विश्लेषण में पाया कि करीब 33 फीसदी यानी 1581 आपराधिक मामले हैं जिनमें 3 सांसदों और 48 विधायकों पर महिला अत्याचार के आरोप हैं। ये सभी राजनैतिक दलों की कुल स्थिति है जाहिर है कुछ तो सत्ताधारी दल से भी होंगे।
 
मोदी का लक्ष्य अपने बूते 2019 की कामियाबी है। 4 उपचुनाव के हालिया नतीजों ने भी झकझोरा होगा। जहां अगला लक्ष्य 350 सीट हैं वहीं देशवासियों का मिजाज भी समझना जररी है। 21 महीने शेष हैं। समय कम और उपलब्धियों की लंबी जुगत का फेर। जाहिर है कि मोदी और अमित शाह की जोड़ी को इंस्टैंट नतीजों के लिए नौकरशाहों की भी दरकार हो। शायद इसीलिए कुछ अलग, कुछ नया सा प्रयोग है आखिरी विस्तार। देखना है कसौटी पर कितना खरा उतरेगा?