मन्नू भंडारी, पुरानी याद, एक मुलाकात : लेखन ने मुझे बचाए रखा...
लेखन ही एक ऐसी शक्ति है जो हर परिस्थिति में साथ देती है
मन्नू भंडारी नहीं रहीं जैसे ही पढ़ा और सुना.... अपने जीवन में पढ़ा सबसे पहला उपन्यास आपका बंटी पृष्ठ दर पृष्ठ आंखों के सामने से गुजरने लगा.... याद आता है एक बार इंदौर के साहित्यप्रेमियों को सुविख्यात लेखिका मन्नू भंडारी से रूबरू होने का मौका मिला था।
तब एक कार्यक्रम में मन्नू जी ने कहानी-रचना स्वयं के लेखन, स्त्री विमर्श और अपनी आत्मकथा 'यही सच है' के अलावा कई निजी विषयों पर भी चर्चा की।
संवाद के दौरान मन्नू जी ने उत्साह से जवाब दिए। जब उनसे पूछा गया कि आत्मकथा की रचना के दौरान आप घोर पीड़ा के दौर से गुजर रही थीं और यह बात 'एक कहानी यह भी' पढ़ने के दौरान सभी पाठकों ने महसूस की। नकारात्मक माहौल में रहते हुए भी आपका लेखन इतना सहज कैसे रह सका। इसके उत्तर में मन्नू जी ने कहा कि विकट स्थिति में भी मेरा लेखन सहज इसलिए रहा क्योंकि लेखन ही एक ऐसी शक्ति है जो विपरीत परिस्थिति में भी साथ देती है।
लेखन ने मुझे बचाए रखा या इसे यूं कह सकते हैं कि लेखन ने मुझे थामा इसलिए मैं लेखन को थामे रख सकी। लेखन ही नहीं अभिव्यक्ति की ऐसी कोई भी विधा वह शक्ति होती है जो आपको अपने वजूद को बचाए रखने की क्षमता देती है। मेरा मानना है कि विषम परिस्थितियों में या तो आपमें इतना साहस हो कि आप उस परिस्थिति से बाहर निकल सकें या फिर सब कुछ सहें और कुछ न कहें।
मैंने इन्हीं परिस्थितियों में लेखन भी किया और यह निर्णय भी लिया कि मैं और राजेंद्र (लेखक राजेंद्र यादव) अब साथ नहीं रह सकते। लेकिन आज राजेंद्र और मेरे बीच ज्यादा संवाद है। साथ थे तब संवाद बंद था। आज मेरे और राजेंद्र के बीच मित्रता है लेकिन मित्रता में जो अंतरंगता होती है वह अब नहीं है। एक-दूजे के संकट में हम आज भी साथ हैं। राजेन्द्र यादव नहीं हैं, और आज से मन्नू जी भी थीं हो गई हैं....इस पुरानी मुलाकात के साथ उनकी स्मृति को नमन ....