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Written By Author श्रवण गर्ग

मलिक से पूछा जाना चाहिए देश के चार साल क्यों छीने!

मलिक से पूछा जाना चाहिए देश के चार साल क्यों छीने! - Malik should be asked why four years were snatched from the country!
Former governor Satyapal Malik: चौदह फ़रवरी 2019 की दोपहर सवा तीन बजे पुलवामा में हुए दिल दहला देने वाले आतंकी हमले को लेकर भाजपा नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मालिक द्वारा किए गए सनसनीख़ेज़ खुलासे पर देश के नागरिकों को किस प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त करना चाहिए? क्या नागरिकों और हमले में शहादत प्राप्त करने वाले चालीस सीआरपीएफ़ के जवानों के परिजनों को मलिक का इसके लिए आभार मानना और अभिनंदन करना चाहिए या उनकी पार्टी की सरकार के साथ-साथ उन्हें भी कठघरे में खड़ा करके कुछ तीखे सवाल पूछना चाहिए?
 
क्या सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए कि आतंकी हमले की घटना के तुरंत बाद उनके द्वारा प्रधानमंत्री से यह कहने पर कि : 'ये हमारी गलती से हुआ है! अगर हम एयरक्राफ्ट दे देते तो यह नहीं होता’ मोदी द्वारा टका-सा जवाब देने (तुम अभी चुप रहो! यह सब मत बोलो, यह कोई और चीज़ है, हमें बोलने दो) के सिर्फ़ दो महीने बाद ही चुनावों के ज़रिए देश का राजनीतिक भविष्य तय कर सकने की ताक़त वाले एक ‘सत्य’ को उन्होंने चार साल तक किसके दबाव में दबाए रखा? समाजवादी भूमिका से निकालकर राजनीति के मैदान में आए मलिक को क्या पीएम का जवाब सुनने के तत्काल बाद पद से इस्तीफ़ा नहीं दे देना था? स्वाभिमान के साथ ऐसा करने के बजाय मलिक एक राज्य से दूसरे राज्य का राजभवन सुशोभित करते रहे!
 
मलिक का कहना है कि वे जवानों की सड़क मार्ग से यात्रा के पक्ष में नहीं थे। 2500 जवानों को 78 वाहनों के ज़रिए जम्मू से श्रीनगर पहुंचाया जा रहा था। सीआरपीएफ़ द्वारा गृह मंत्रालय से विमानों की मांग की गई थी पर उसे मंज़ूरी नहीं दी गई। मलिक देश को अब जानकारी दे रहे हैं कि विमानों की मांग अगर उनसे की गई होती तो ‘मैं कैसे भी करके देता’! 
 
मलिक न सिर्फ़ पुलवामा हादसे पर ही प्रधानमंत्री के कहे मुताबिक़ चुप्पी साधे रहे, जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने वाले आर्टिकल 370 को भी उन्होंने चुपचाप ख़त्म हो जाने दिया, दुनिया के सबसे लंबे इंटरनेट शटडाउन को भी राज्य में लागू होने दिया, मीडिया के ख़िलाफ़ होने वाली अन्यायपूर्ण करवाई का भी उन्होंने कोई विरोध नहीं किया और महबूबा मुफ़्ती को सरकार बनाने का मौक़ा यह मानते हुए नहीं दिया कि उनके पास पर्याप्त बहुमत नहीं था। घाटी में मीडिया के ख़िलाफ़ की गई कार्रवाई को लेकर लगाए जाने वाले प्रत्येक आरोप से मलिक इंकार करते हैं।
 
पुलवामा हादसा 14 फ़रवरी 2019 को हुआ था। उसके लगभग दो महीने बाद ही लोकसभा के लिए सात चरणों में 11 अप्रैल से 19 मई के बीच मतदान हुआ था। देश को जानकारी है कि हादसे के तत्काल बाद कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने पुलवामा में सरकार के ख़ुफ़िया तंत्र की विफलता सहित कई आरोप मोदी सरकार पर लगाए थे और जवाबों की मांग की थी।
 
विपक्ष के एक भी सवाल का जवाब नहीं दिया गया। भाजपा ने पुलवामा को चुनावी मुद्दा बनाते हुए अपने राष्ट्रवादी आक्रमण का मोर्चा पाकिस्तान की तरफ़ मोड़ दिया था। अंग्रेज़ी दैनिक ‘द टेलिग्राफ’ ने मलिक को यह कहते हुए उद्धृत किया है कि : 'मुझे लग गया था कि अब सारा ओनस पाकिस्तान की तरफ़ जाना है तो चुप रहना चाहिए’! मलिक ने अपनी चुप्पी को बनाए रखा और भाजपा भारी बहुमत से 2019 का चुनाव जीत गई।
 
मलिक ने अपनी चुप्पी तोड़ना तभी शुरू कर दिया था जब उन्हें गोवा से हटाकर मेघालय का राज्यपाल बना दिया गया था और पंजाब, हरियाणा के साथ-साथ उनके इलाक़े पश्चिमी यूपी के किसान भी काले कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे थे। मलिक ने तब भी पुलवामा को लेकर कोई बात सार्वजनिक नहीं की! किसानों के हित में उनका राज्यपाल के पद पर होते हुए भी बोलना ज़रूरी था क्योंकि आगे आने वाले दिनों की राजनीति उन्हें उन्हीं के बीच करनी थी। अब जब पुलवामा पर ज़ुबान खोली तो करण थापर के साथ इंटरव्यू में मलिक ने आत्मविश्वास के साथ यह भी कहा भी : 'ये लोग मुझे मरवा नहीं सकेंगे, मेरे साथ किसान हैं। जिस दिन मुझे छेड़ेंगे, फिर ये कभी रैली नहीं कर पाएंगे!'
 
पूर्व राज्यपाल अब खूब बोल रहे हैं। प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार के प्रति रुख़ (पीएम को भ्रष्टाचार से बहुत नफ़रत नहीं है!), कश्मीर के बारे में पीएम को अपर्याप्त जानकारी, गोवा में जनता के धन की लूट—कोई विषय नहीं बच रहा जिस पर मलिक इस समय नहीं बोल रहे हैं! मलिक कहते हैं वे न तो किसी पार्टी में जाएंगे और न चुनाव लड़ेंगे पर कांग्रेस ने उन्हें अपना अघोषित चुनावी प्रतीक बना लिया है। अदाणी से रिश्तों के साथ-साथ पुलवामा को लेकर भी पार्टी ने पीएम से सवाल पूछना शुरू कर दिए हैं कि : ‘सीआरपीएफ़ के जवानों के लिए विमान क्यों नहीं दिए गए थे?’ तो क्या 2019 की तरह ही पुलवामा 2024 में भी प्रमुख चुनावी मुद्दा बनने वाला है? इस बार विपक्ष की ओर से?
 
सिर्फ़ अनुमान ही लगाए जा सकते हैं कि जिस साहस का प्रदर्शन मलिक साक्षात्कारों में इस समय कर रहे हैं वे 14 फ़रवरी 2019 से 11 अप्रैल 2019 के बीच कर देते तो लोकसभा चुनावों के बाद देश की राजनीति का भविष्य क्या होता! क्या तब भाजपा को इतना बड़ा बहुमत मिल पता? मोदी हार नहीं जाते? लोकतांत्रिक तौर पर देश आज किस स्थिति में होता? क्या जनता की किसी अदालत में सत्यपाल मलिक से पूछा नहीं जाना चाहिए कि उनके इतने लंबे समय तक चुप रहने और अब मुंह खोलने के देश हित में असली कारण क्या हैं? देश की ज़िंदगी से उसके क़ीमती चार साल क्यों छीने गए? क्या मलिक जवाब देंगे? (यह लेखक के अपने विचार हैं। वेबदुनिया का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है।)