शुक्रवार, 20 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. lock down and public services

लॉक डाउन : अपनी होशियारी और समाज सेवा को खूंटी पर टांग दीजिए...

लॉक डाउन : अपनी होशियारी और समाज सेवा को खूंटी पर टांग दीजिए... - lock down and public services
मित्रो, कोरोना का ख़ौफ़ हर जगह है और इसी के चलते आपके क्षेत्र में लॉक डाउन हुआ है... बाज़ार बंद हैं और आप घर पर इसलिए हैं क्योंकि आप स्वयं और प्रशासन भी नहीं जानता कि आप संक्रमित हैं या नही हैं... ऐसी स्थिति में परोपकार की दृष्टि से ही या कृतज्ञता प्रकट करने के लिए ही अपने घर का बना खाना, पोहा, चाय वगैरह फ़ील्ड में ड्यूटी कर रहे कर्मचारियों तक पहुंचाना कहां तक उचित है? 
 
क्या यह उन पुलिसकर्मियों अथवा कर्मचारियों के लिए जोखिमभरा नहीं है जो आपके आग्रह पर आपके यहां का बना खाना खा रहे हैं? जहां यह कहा जा रहा है कि पड़ोसी से भी दूर रहना है, हर व्यक्ति से 3 फ़ीट की दूरी बनाए रखना है तो ऐसे में आपके घर बना खाना खाने का यह आग्रह क्यों?? फिर कैसे हुई सोशल डिस्टेंसिंग??? और फिर इस पुण्य का प्रचार होने पर ‘हर घर से खाना निकलेगा’ क्योंकि सेवा भाव तो हम सभी में कूट-कूट के भरा है! हम सभी खाना पकाकर, फोटो खिंचवाकर फ़ील्ड में मौजूद अधिकारियों और कर्मचारियों को देंगे और उनकी और खुद की जान जोखिम में डालेंगे। मुझे नहीं लगता कि हम लॉक डाउन या इस बीमारी  के संक्रमण के जोखिम को पूरी तरह से समझ पाए हैं! अभी तो वायरस के हम तक पहुंचने का समय ही हुआ है, उस खतरनाक स्टेज पर हम पहुंचें, उसके पहले ही हमने लापरवाही करना शुरू कर दी है।
 
प्रशासन को भी चाहिए कि ड्यूटी पर मौजूद कर्मचारियों को निर्देश दिए जाएं कि किसी भी अन्य के यहां बना भोजन जो उनके लिये 'ज़हर' हो सकता है, जिससे संक्रमण हो सकता है उसे ग्रहण ना करें। 
 
नीमच कलेक्टर ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा कि मैं अपनी पानी की बॉटल खुद लेकर चलता हूं। ऐसे में फ़ील्ड पर मौजूद ऑन ड्यूटी अधिकारी-कर्मचारी जो लॉक डाउन को सफल बनाने के लिये सड़कों पर ड्यूटी दे रहे हैं, वे सिर्फ़ अपने घर या आधिकारिक रूप से प्रशासन द्वारा उपलब्ध 'सेफ़' भोजन पर ही निर्भर रहेंगे तो ही इस संक्रमण की चेन ब्रेक होगी जो उनकी सेहत के लिए अच्छा है। 
 
आपको मेरी यह बात मानवीयता के विरुद्ध लग सकती है मगर फिलहाल यही बुद्धिमानी है। एक और बात, वह यह कि यह बीमारी आयातित है, जो हवाई जहाज़ों में यात्रा करने वाले, विदेशियों और तथाकथित उच्च वर्ग के माध्यम से भारत आई है। ऐसे में निम्न वर्ग के झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले इससे अब तक बचे हुए हैं। संभव है कि उन तक खाना पहुंचाने की होड़ और झुंड में हम इस संक्रमण को भी वहां पहुंचा दें जहां यह अब तक पहुंचा नहीं है। इसलिए आसपास के ज़रूरतमंदों की सूचना प्रशासन तक पहुँचाएं ताकि वे उनके लिए प्रबंध करें। कहा जाता है ना कि कानून हाथ में ना लें, वैसे ही इस वक्त इस आपदा में 'व्यवस्था' अपने हाथ में ना लें। 
 
उचित तो यही है कि हम सभी समाजसेवी अपनी होशियारी और समाज-सेवा को कुछ दिनों के लिए घर के किसी कोने पर ठुकी खूंटी पर टांग दें और सिर्फ़ प्रशासन के आदेशों का पालन करें।