ऑफिस की पार्टी का उत्साह चंद लम्हे ही रहा होगा कि एक चिखती हुई, लहूलुहान खबर ने मन को विचलित कर दिया। अत्यंत दुख के साथ ऑटो में बैठी ही थी कि ऑटो वाले भैया ने कुछ कहा पर मैं अपने ही उधेड़बुन में लगी थी.. क्या लिखूंगी, क्या लिखना चाहिए, क्या अब भी कुछ बाकी रहा है... तभी दूसरी बार ऑटो वाले भैया ने फिर कहा, दीदी... कैसा हुआ ना अपने इंदौर में... मैं परेशान होकर बोली, हां भैया अब तो इन विषयों पर बात करते
हुए भी शर्म आती है और .... मेरे वाक्य के पूरा होने से पहले ऑटो वाले विकास भैया बोले ... दीदी, मैं 6 साल से ऑटो में स्कूल के बच्चे ले जाता हूं... इतनी प्यारी-प्यारी बच्चियां मेरे ऑटो में जाती है, आप विश्वास नहीं करेंगे कि उन्हें उतारने या चढ़ाने में जब पकड़ना पड़ता है तो मेरे हाथ कांपते हैं कि ये कितनी कोमल हैं इन्हें मेरे खुरदुरे कठोर हाथों से कहीं कोई खरोंच ना आ जाए...भगवान ने मुझे बेटी नहीं दी पर मैं उन्हें ले जाते वक्त सोचता
हूं कभी देता तो शायद ऐसी होती, या शायद वैसी होती...मैं अपनी जान से ज्यादा हिफाजत से उन्हें लेकर जाता हूं..अपने बच्चों से ज्यादा, क्योंकि माता-पिता अपने कलेजे का टुकड़ा हमें सौंपते हैं। कैसे ... कैसे कोई इतना गंदा काम इतनी छोटी बच्ची से.... कसम से विकास भैया(ऑटो वाले) कंठ भर्राया हुआ था...
बहुत देर तक खामोशी रही .... मैं सोच रही थी सामान्य से व्यक्ति में भी इतनी समझ है कि नन्ही बच्चियां चाहे वह धूल-धुसरित फटेहाल फुटपाथ पर सोती हुई हो या चमकदार यूनिफॉर्म पहने स्कूल जाती.. वे सिर्फ कोमलता से सहेजने के लिए होती है, स्नेहवश दुलारने के लिए होती है... जबकि बढ़ती विकृतियां निरंतर इन्हीं नन्ही कलियों को कुचलने में लगी है...
माता-पिता की सघन छांव से अधिक सुरक्षित जगह क्या होगी.. ? सुरक्षा की उस कड़ी पहरेदारी में भी अगर सेंध लग जाए तो सोचना होगा कि फिर आखिर कहां महफूज है हमारी बेटियां? माता-पिता इतने बेसुध कैसे हो सकते हैं कि उनके बीच से बच्ची उठाकर कोई ले जाए और भनक तक न लगे?
क्या उन्होंने भी नाइट्रावेट ले रखी थी? माता-पिता चाहे करोड़पति तलवार दंपत्ति हो या रोड़ पर सोते इंदौर के माता-पिता. ... समान रूप से जिम्मेदार हैं... अगर किसी नन्हे जीव को आप धरा पर लाते हैं तो उसके प्रति हर पल चौकन्ना रहना आपकी ही जिम्मेदारी है... अपनी समस्त सहानुभूति के बावजूद प्रश्न रह-रह कर अटक जाते हैं कैसे कोई इतना बेखबर, इतना बेपरवाह हो सकता है... गहरी तंद्रा में भी मां के हाथ अपनी संतान को टटोलते
हैं... यहां तो आरोपी बच्ची को ले भी गया और जो उसके साथ किया उसने फिर समूचे देश को शर्मसार किया...
मैं दुनिया भर की हर उस सुकोमल, सुस्निग्ध, सलोनी और सुहानी बच्चियों से ना सिर्फ इंदौर बल्कि पूरे देश की तरफ से क्षमा चाहती हूं...हम सक्षम और समर्थ नहीं हैं कि तुम्हारी नज़ाकत को सहेज सकें, हमारी बगिया की कोई क्यारी इतनी सुरक्षित नहीं, जहां तुम जैसी गुलाबी कलियां खिल सके...हम सब सामुहिक रूप से अपराधी हैं तुम्हारे. .. हम तुम्हारे शव के समक्ष सुबकने के काबिल भी नहीं हैं... क्योंकि जिम्मेदार हम सब हैं जो तुम्हें चुटकी भर धूप, मुट्ठी भर हवा, हाथ भर धरा नहीं दे सकते हैं जो तुम्हारे हिस्से की है.. हम अपराधी हैं कि हम तुम्हारा सारा हिस्सा हड़प गए हैं... अब हम उस देश में नहीं रहते जहां रंगीन तितलियों की तरह, सुरीली चिड़ियों की तरह और महकती कलियों की तरह बच्चियां अपने हिस्से का आकाश जीती थीं...हम उस देश में रह रहे हैं जो जहां बच्चियों को उनके मां-पिता की गोद से उठाकर रौंद दिया जाता है, फेंक दिया जाता है.. बर्बाद कर दिया जाता है, मार डाला जाता है, क्या लिखूं....तुम तो अपने लिए कोई शब्द बोल नहीं सकती और हम हैं कि अपराधी बने खड़े तुम्हारी आवाज बन नहीं सकते...हो सके तो क्षमा करना कोमल कलियों...वैसे यही चाहूंगी कि ना करो हमें क्षमा.... हम इस काबिल नहीं....