# माय हैशटैग
फेसबुक को साढ़े चार हजार नए कर्मचारियों की आवश्यकता है। दिनभर फेसबुक खोलकर बैठे रहना, वेतन लाखों डॉलर प्रतिवर्ष, कार्य के घंटे सुविधानुसार, कंपनी की सुविधाएं ए क्लास, वर्क फ्रॉम होम संभव, ड्रेस कोड के नाम पर कोई दबाव नहीं; इतना सब होने के बाद भी फेसबुक को ये कर्मचारी नहीं मिल रहे है। इसका कारण यह है कि अमेरिका में स्थानीय लोग तो यह कार्य करना ही नहीं चाहते।
फेसबुक में अभी तीन हजार लोग इस तरह का कार्य कर रहे है। इन्हें कंटेंट मॉडरेटर्स पद दिया गया है। जो साढ़े चार हजार लोग भर्ती होंगे, उन्हें भी यही पद दिया जाएगा। काम होगा, दिनभर फेसबुक देखते रहना और इस तरह की पोस्ट को डी-एक्टिवेट करना, जिनसे नफरत फैले, पोर्नोग्राफिक मटेरियल हो, हिंसा को बढ़ाने वाली जानकारी हो, बच्चों के शोषण से जुड़ी पोस्ट हो या कोई भी ऐसा कंटेंट हो, जो किसी भी व्यक्ति के मन को विचलित कर दें और गलत काम करने के लिए प्रेरित करें।
लाइव स्ट्रीमिंग शुरू करने के बाद फेसबुक के सामने एक से बढ़कर एक चुनौतियां आ रही हैं। लोग हिंसा की गतिविधियों को लाइव स्ट्रीमिंग में डाल रहे है। कहीं मार-पीट के दृश्य है, तो कहीं हत्या के, तो कहीं आत्महत्या के। थाईलैंड में एक निर्दयी बाप ने 11 महीने की अपनी बेटी को फांसी पर लटकाकर मार डाला और खुद भी आत्महत्या कर ली। चौबीस घंटे तक वह फुटेज डिलीट नहीं हो पाया, इससे न केवल सरकारें, बल्कि फेसबुक संचालक भी परेशान हैं। फेसबुक के सीईओ मार्क जकरबर्ग का कहना है कि यह हमारे लिए बहुत जरूरी है। पिछले हफ्ते ही हमें पता चला कि कोई व्यक्ति लाइव स्ट्रीमिंग के जरिए अपनी आत्महत्या का फुटेज फेसबुक पर डालना चाहता है। हमारी टीम तत्काल सक्रिय हुई और स्थानीय अधिकारियों की मदद से उस व्यक्ति को अपने आप को नुकसान पहुंचाने से रोक दिया गया। हर बार हम इतने खुशकिस्मत नहीं होते और हर बार हम इस तरह की वारदातों को नहीं रोक पाते, जबकि हमारा इरादा ऐसी गतिविधियों को रोकने का होता है।
वक्त की इसी जरूरत को देखते हुए फेसबुक साढ़े चार हजार लोगों की नियुक्ति करने जा रही है, लेकिन लोग मिल नहीं रहे। जब इस काम के बारे में लोगों को बताया जाता है, तब वे कहते है कि हमें फेसबुक पर सक्रिय रहना अच्छा लगता है, लेकिन दिनभर बैठकर इस तरह के गलीज वीडियो देखना हमारे बस में नहीं है। अगर हम लगातार यहीं कार्य करते रहेंगे, तो हमारे दिमाग में ऐसी ही बातें घर कर जाएंगी और हमारी संवेदनाएं नष्ट हो जाएंगी। यह किसी भी नौकरी की सबसे बुरी दशा हो सकती है।
एक सॉफ्टवेयर कंपनी के दो पूर्व अधिकारी, जो इसी तरह का कार्य करते हैं, इस नई नौकरी की चुनौती के बारे में बताते है। उनका कहना है कि इस तरह के कंटेंट लगातार देखते रहने से जो नकारात्मकता का भाव आता है, वह रोकने के लिए बहुत सारे प्रयास किए गए है, लेकिन फिर भी ये प्रयास नाकाफी है। आप एक ऐसे कर्मचारियों के लिए कितने भी वेलनेस प्रोग्राम चला लें, उनकी हालात में सुधार आना संभव नहीं है। इस तरह का काम करने वाले कर्मचारी उस स्थिति से गुजरते है, जिसके खराब रहने की कोई सीमा ही नहीं है। अमानवीय घटनाक्रम और हताशा से भरे फोटो और वीडियो देखते रहने से जो नुकसान होता है, वह इंसान की गरिमा को ही नष्ट कर देता है। ऐसे काम करने के लिए साहस नहीं, दुस्साहस की जरूरत होती है। एक कर्मचारी ने लाइव स्ट्रीमिंग में एक लड़की के अपहरण और हत्या का फुटेज देखा, नतीजा यह हुआ कि वह मेडिकल लीव पर चला गया और डेढ़ साल बाद भी काम पर नहीं लौटा। उस व्यक्ति का कहना है कि छुट्टी में भी वह अपने परिवार और बच्चों से खुलकर बात नहीं कर पाता।
लाइव स्ट्रीमिंग के कारण फेसबुक पर दुनियाभर में केस चल रहे हैं। इसकी कीमत कंपनी को करोड़ों डॉलर खर्च करके चुकानी पड़ रही है। कंटेंट मॉडरेटर्स के रूप में कार्य करने वाले इन कर्मचारियों की देखरेख और कल्याण के लिए फेसबुक क्या कर रही है, इस बारे में कंपनी ने अभी कोई बात उजागर नहीं की, लेकिन फेसबुक यह बात स्वीकारती है कि कंटेंट मॉडरेटर्स का काम परंपरा से हटकर और चुनौती भरा है।