घरेलू कामकाजी महिला कार्ड: कितनी होंगी वास्तविक घरेलू कामकाजी महिलाएं?
एक बात तो मानना पड़ेगी कि मप्र के भाजपाकाल में हर भाजपाई (थोड़ी बहुत पब्लिक रुपए में दो आने) का लब्बेलुआब शानदार था। मोहल्ला स्तर के नेताओं तक ने सरकारी योजनाओं के गुलाब जामुन खाए और अपनों को खिलाए। फिर बात चाहे आवास योजना की हो, शिक्षा की हो या फिर बीपीएल कार्ड या कामकाजी महिला कार्ड की।
बीपीएल कार्ड की बदौलत कई दो-दो फ्लैट वाले इतना नीचे गिर गए कि सरकारी कार्यवाही में अपना आवास टूटा-फूटा झोपड़ा लिखा दिया। ये सब हुआ हुआ होगा मिलीभगत से। बीपीएल कार्ड के लिए कई महानुभाव तो गरीबी रेखा से भी नीचे आ गए शेयर मार्केट सरीखे। अगर कमलनाथ की सरकार नहीं आती तो जितने शेष भाजपाई बचे थे उनके भी वारे-न्यारे हो जाते। पर क्या करें। बीपीएल में फर्जीवाड़ा, पैसे वालों के बीपीएल कार्ड बने... आदि इत्यादि ने ऊपर तक बात पहुंचा दी और कार्यवाही की शुरूआत।
जब बीपीएल कार्ड पर गाज पड़ी है तो कामकाजी विशेषकर घरेलू कामकाजी महिलाओं के कार्ड नजर से कैसे बचे गए। जबकि बीपीएल कार्ड से ज्यादा फर्जी कार्ड घरेलू कामकाजी महिलाओं के बनाए गए हैं। जो वास्तविक घरेलू महिला कामकाजी हैं उनके कार्ड बने भी होंगे तो उनकी संख्या लगभग 10 से 15 प्रतिशत होगी। भाजपा से जुड़ी अनेक नारी शक्ति से जुड़े संगठनों ने कामकाजी विशेषकर घरेलू कामकाजी महिलाओं के कार्ड बनाने में सक्रियता दिखाई होगी उन महिलाओं को मेम्बर बनाने में जिनका घरेलू कामकाज यानी खाना बनाना, बर्तन मांजना, झाड़ू-पोछा आदि-इत्यादि से दूर-दूर का वास्ता नहीं होगा।
जो प्रायवेट संस्थानों में 15 से 20 हजार रुपए मासिक पाती होंगी। कुछ तो ऐसी घरेलू कामकाजी महिलाओं के भी कार्ड बने होंगे जिनके मकान किराये से चल रहे हैं। (बीपीएल कार्ड मामले में भी ऐसे उदाहरण हो सकते हैं।) कुछ के कार्ड उन भाजपाई समर्थकों ने बनवा दिए होंगे जो सरकारी या निकायों के कामगार होंगे। कहने का मतलब यह कि वास्तविक घरेलू कामकाजी महिला संभवत: 10 में से 2 ही होंगी जिनके कार्ड ईमानदारी से या कहा जाए कि उन पर अहसान लादने की परंपरा के चलते, बनाए होंगे।
योजना बनकर जब सामने आती है तो अखबारों में लाखों-करोड़ों हितग्राहियों के आंकड़े पेश हो जाते हैं कि फलां योजना से इतने या उतने हजारों हितग्राहियों ने फायदा उठाया। जबकि फायदा उठाने वाले कुछ ही होते हैं वो भी वे लोग जिनके बारे में आप भी जानते होंगे।
घरेलू कामकाजी महिलाओं का पहली बात तो शिक्षा का स्तर 5वीं या 8वीं तक माना जा सकता है वो भी लगभग 2 से 3 प्रतिशत घरेलू कामकाजी महिला का, जबकि अंगूठा छाप या पहली या दूसरी तक पढ़ी लिखी घरेलू कामकाजी महिला का प्रतिशत लगभग 60 से 65 प्रतिशत होगा। सवाल यह कि घरेलू कामकाजी वो महिलाएं जिनका शिक्षा का स्तर बहुत कम है, सरकारी मिशनरियों ने और संबंधित संस्थाओं ने ऐसी महिलाओं के ईमानदारी से घरेलू कामकाजी महिला होने का कार्ड बनाकर दिया होगा। अगर दिया भी होगा तो बहुत कम का। अगर वास्तविक रूप से पूरे प्रदेश में इस बात की जांच की जाए तो लगभग 70 प्रतिशत घरेलू कामकाजी महिलाओं के कार्ड फर्जी निकल सकने की संभावना हो सकती है।
नारी शक्ति के लिए देशभर में योजनाएं तो कई कार्यरत हैं, लेकिन इनका फायदा महज कुछ ही लोग उठा पाते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है अशिक्षा। ये बात नहीं है कि घरेलू कामकाजी महिलाओं के हित में चलाई गई योजनाओं का प्रचार प्रसार नहीं किया गया होगा। गली-गली, मोहल्ले-मोहल्ले ऐसा हुआ होगा, लेकिन सवाल यह कि इस माध्यम से कितनी घरेलू कामकाजी महिलाओं को जानकारी मिली होगी। आपसी वार्तालाप से कि काकी, भाभी घरेलू कामकाजी महिला के कार्ड बन रहे हैं बनवा लो। ...कहां ...फलां जगह पर बन रहे हैं। तो हो सकता है कुछ महिलाओं ने लाभ उठाया हो। वास्तविक जरूरतमंद कामकाजी महिलाओं के कार्ड भी कोई आसानी से नहीं बने होंगे।
कुछ तो भेंट चढ़ाना पड़ी होगी। अब सुना जा रहा है कि घरेलू कामकाजी महिला कार्ड के फर्जीवाड़े पर भी कार्यवाही होना है तो इस कार्यवाही में ही कहीं फर्जीवाड़ा नहीं हो जाए। ये बात भी सच है कि नारी वर्ग जज्बाती होता है। मगर सवाल यह उठता है कि जब महिलाओं के लिए योजना सामने आती है तो मौके का फायदा उठाने से यही नारी वर्ग के जज्बात कहां काफूर हो जाते हैं, योजनाओं का फायदा उन जरूरतमंद विशेष रूप से वास्तविक जरूरतमंद महिलाओं को क्यों नहीं उठाने दिया जाता। या योजनाओं का फायदा उठाने की उन्हें जानकारी या सहायता दी जाती।