भाजपा की हार के विश्लेषकों ने अनेक कारण गिनाए हैं, साथ ही नई सरकार के सामने आने वाली चुनौतियों का भी लेखा-जोखा रखा है। पिछली भाजपा सरकार के समय शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में मध्यप्रदेश पर 5 गुना कर्जा बढ़ गया है। अब मप्र का हर नागरिक 15,500 रुपए का कर्जदार है। स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि पिछले 3 महीने में सरकार 9,000 करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है और मौजूदा वित्तीय वर्ष में कर्ज का आंकड़ा 12,700 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है।
पिछले 3 माहों में मप्र सरकार ने विकास कार्यों के नाम पर 6 किस्तों में 9,000 करोड़ रुपए का लोन लिया। प्रदेश सरकार ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से गवर्नमेंट सिक्यूरिटी के आधार पर यह कर्ज लिया है। मार्च 2003 तक मध्यप्रदेश पर 20,147 करोड़ रुपए का कर्ज था लेकिन मौजूदा स्थिति में ये आंकड़ा 1 लाख 13 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गया है।
भाजपा ने टिकट बांटने में अव्वल तो कहीं-कहीं ऐसी गलती की जिसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ा। आरएसएस संगठन भाजपा का अपना माना जाता है, लेकिन आरएसएस के अनेक लोगों को टिकट नहीं मिलने का कारण भी यह वोटरों में परिवर्तन का एक बायस कहा जा सकता है। किसानों की कर्जमाफी, नोटबंदी, एससी-एसटी एक्ट आदि इत्यादि जहां प्रमुख कारण रहे वहीं भाजपा ने छोटे-छोटे मुद्दों के कारण और ज्यादा नुकसान सहा है। शिवराजसिंह या नरेन्द्र मोदी ने गरीब जनता के लिए अनेक योजनाएं बनाईं जिनका फायदा भाजपाई नेताओं और उनके करीबियों को ज्यादा मिला और मात्र 10-15 प्रतिशत के लगभग वास्तविक हितग्राही इसका फायदा उठा सके।
सबसे छोटी बात यह कि चुनाव के समय वोटरों को जनता में आम चर्चा के मुताबिक (जो दबे-छुपे सरकार और प्रशासन की नजर से बचकर किया जाता है) को दिया जाने वाला प्रलोभन अनेक विधानसभा इलाकों में वहां के भाजपाई पदाधिकारी या तो पूरा हजम कर गए या फिर कहीं-कहीं जहां 1,000-1,000 रुपए बंटने थे, वहां मात्र 200-500 रुपए बांटे गए। वैसे सभी दूर ऐसा नहीं होने की चर्चा है। किसानों के लिए मप्र और केंद्र सरकार ने अनेक योजनाएं बनाईं और उनका स्तुतिगान उन समाचार पत्रों, टीवी चैनलों आदि ने खूब किया जिन्हें भाजपा ने अपने विज्ञापनों से खरीद रखा था।
विकास के नाम पर भाजपा ने काम जरूर किए, मगर इसमें भी भाजपाइयों का कमीशन आदि की भी जनता चर्चा करती है। विधायकों और सांसदों आदि ने कहीं सड़क बनवाई या तालाब बनवाए या लाड़लियों के लिए साइकलें बंटवाईं तो अपने स्वयं के धन से नहीं, बल्कि उनको मिलने वाली निधि से, लेकिन जनता ने उनकी जय-जयकार की।
किसानों की स्थिति को लेकर भाजपा ने कभी गंभीरता नहीं जगाई। हमारे सत्ता-प्रतिष्ठानों ने जिस तरह बीते कुछ दशकों से खेती-किसानी से मुंह मोड़ लिया है, उस कारण कृषि पर निर्भर परिवारों की हालत लगातार बिगड़ती गई है। हाल के नोटबंदी जैसे कदमों ने भी किसानों की कमर तोड़ दी। खेती में जब फायदा कम होने लगा था, तो किसान परिवारों का कोई-न-कोई सदस्य शहर में काम करने जाया करता था। वह वहां निर्माण कार्यों में जुट जाता या फिर मजदूरी आदि करता। मगर नोटबंदी की वजह से अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती से ऐसी संभावनाएं भी खत्म हो गईं। इसीलिए ये बातें मतदाताओं में भरोसा नहीं जगा पाईं कि सूबे में कितनी सड़कें बन गई हैं या फिर कितने घरों को उज्ज्वला योजना का लाभ मिला है? मतदान रोजी-रोटी के सवालों पर आकर ठहर गया।
मुस्लिम मतदाता
इस बात में दोराय नहीं कि कांग्रेस सदियों से मुस्लिम वर्ग के साथ रही है। कहा जाता है कि अगर कोई मुस्लिम भी भाजपा नेता है तो उसके परिवार के लोग कांग्रेस को समर्थन देंगे। इसका सबसे बड़ा कारण है भाजपा द्वारा मुस्लिम वर्ग को अपना बनाने की कोशिश नहीं करना।
बेरोजगारी बढ़ाई, आशियाने तोड़े
मप्र की भाजपा सरकार ने रोजगार देने की बजाय बेरोजगारी बढ़ाने में ज्यादा दिलचस्पी ली। वह भी छोटे-मोटे दुकानदारों, सड़क पर या ठेले पर सब्जी बेचने या छोटा-मोटा धंधा करने वालों को विकास के नाम पर उनके ठेले, दुकानें हटाकर। विकास के नाम पर ही कई लोगों को बेघर कर दिया गया।
कांग्रेस की सत्ता व कर्ज
15 सालों से सत्ता से दूर रही कांग्रेस को वसीयत में खाली खजाना मिला है यानी पहले से ही मप्र अधमर्ण है और मरणासन्न स्थिति तक भी जा सकता है। लेकिन जनता को इससे कुछ लेना-देना नहीं, क्योंकि मप्र की लगभग 85 प्रतिशत जनता अशिक्षित कही जा सकती है, क्योंकि उसे इस बात से कुछ लेना-देना नहीं कि मप्र पर कर्ज है। वह केवल यह जानती है कि उसे 'दो टेम का खाना' और 'रोजी-रोटी' मिल रही है कि नहीं? भाजपा सरकार ने यह जो विकास आदि मुद्दों के लिए जो कर्ज लिया, उसका सदुपयोग तो बहुत कम ही किया होगा, सिवाय अपना और अपनों का भला करने के। ऐसे में कांग्रेस किस तरह इस कर्ज का निपटारा करेगी? साथ ही जनता से किए वादे भी उसे पूरे करने हैं।
जननेता बने राजनेता, कांग्रेस संभल जाए
जनता ने ये मौका कांग्रेस को भाजपा की छोटी-छोटी गलतियों के कारण भी दिया है। बड़ी गलतियां तो खैर अलग बात है। अब कांग्रेस को यह सोचना है कि उसे भविष्य का निर्माण किस प्रकार करना है? 50 साल के कांग्रेसी शासन में कांग्रेस के नेता जननेता होने की बजाय राजनेता हो गए थे। जमीनी स्तर पर उनका काम नहीं के बराबर रह गया था जिससे आक्रोशित जनता ने भाजपा को मौका दे दिया और भाजपा के नेता भी राजनेता की छवि में आ गए थे। (भाजपा की जीत में उन भाजपा नेताओं का जरूर योगदान है, जो जमीन से जुड़े होकर जननेता के रूप में रहे)।
अब कांग्रेस के हर नेता को चाहे वो विधायक हो, पार्षद हो, सांसद, मंत्री या कार्यकर्ता हो, जनता में अगर उसने मिलनसारिता नहीं बढ़ाई और जनता के विशेषकर उन वोटरों के, जिनका प्रतिशत ज्यादा है, काम नहीं किए और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया तो भविष्य में कांग्रेस का फिर कोई नामलेवा नहीं रहेगा।
कांग्रेसी गुटबाजी
वैसे कांग्रेस के लिए यह अच्छा हुआ कि उसने अनेक स्थानों पर गुटबाजी भूलकर काम किया गया। और ये गुटबाजी का ही ठीकरा है, जो कांग्रेस को ले डूबता है। कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी दिक्कत है इस गुटबाजी से निपटना। जब तक कांग्रेस गुटबाजी से निपटकर पारदर्शिता नहीं अपनाएगी, जनता में उसकी छवि फिर से नहीं बन पाएगी।