मातृ दिवस पर कविता : 'क्या है मां'
- अथर्व पंवार
अपने उजाले से जो पूरा संसार प्रकाशमय कर दे
वह भुंवर की पहली किरण है मां
गर्मी के थपेड़ों से भरी राह में
पेड़ की शीतल छांव है मां
जिस भू पर महकते फूल हैं
उस धरा की मृदा है मां
किसी मरते वृक्ष को जीवित कर दे
वह फूटती कोपल है मां
अन्धकार में जो राह बताए
वह पूर्णिमा की चांदनी है मां
पतझड़ जीवन में जो वसंत लाए
ऐसा एक व्यक्तित्व है मां
समुद्र के तूफान की उत्तुंग लहरों में
दृढ़ से डटी नाव है मां
जीवन के इस महासंग्राम में
लक्ष्यपूर्ति की विजयपताका है मां।