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Last Updated : गुरुवार, 9 फ़रवरी 2023 (19:09 IST)

अमलनेर में 16 वर्षों बाद मंगल ग्रह देव की मूर्ति पर किया वज्र लेप

Amalner: अमलनेर में 16 वर्षों बाद मंगल ग्रह देव की मूर्ति पर किया वज्र लेप - Mangal dev ki murti par kiya vajralep
Mangal dev mandir amalner: महाराष्ट्र के जलगांव जिले में अमलनेर में स्थित मंगलदेव ग्रह मंदिर में मंगल दोष शांति के लिए पूजा और अभिषेक किया जाता है। यहां पर पंचमुखी हनुमान और भूमाता के साथ विराजमान मंगलदेव की मूर्ति बहुत ही प्राचीन और जागृत बताई जाती है। माघी पूर्णिमा के अवतार पर इस दुर्लभ मूर्ति पर वज्र लेप किया गया।
 
अमलनेर स्थित मंगल ग्रह मंदिर में दुनिया की एकमात्र अति प्राचीन और दुर्लभ मूर्ति है। यह स्थान लाखों भक्तों का पूजनीय स्थल है। यहां पर भगवान मंगलदेव की मूर्ति को एक नया रंग भी दिया गया है, जिससे मूर्ति अब पहले से कहीं अधिक दिव्य और कांतिवान नजर आ रही है। चूंकि मंगल भगवान की मूर्ति प्राचीन है, इसलिए मूर्ति के संरक्षण के लिए समय-समय पर जहां आवश्यकतानुसार मूर्ति पर वज्र लेप किया जाता है।
 
अभी तक कहां-कहां हुआ है वज्र लेप : वेरुल में विश्व प्रसिद्ध नक्काशीदार गुफाएं, श्री घृष्णेश्वर मंदिर, इक्कीसवां गणेशपीठ श्री लक्षविनायक गणपति, दिगंबर जैन मंदिर, शादावल मलिक दरगाह, मालोजीराजे भोसले के पाटिलकी का गांव। इस तरह की आठ सौ से अधिक वर्षों से पुरानी मूर्तियां जीर्ण-शीर्ण हो रही थी। इन सभी मूर्तियों को राजाभाऊ सोमवंशी ने तराशा है। यह सोमवंशी का पुश्तैनी पेशा है।
राजाभाऊ सोमवंशी के बेटे हर्षल सोमवंशी ने पंद्रह साल पहले अपने पिता से वज्र लेप की कला सीखी थी। कौशल के साथ अपने पूर्वजों की विरासत को आगे बढ़ाते हुए हर्षल ने अब तक भवानी शंकर, राजदुर्ग, केदारनाथ, शिरकाई देवी, नागनाथ महाराज और महाराष्ट्र सहित विभिन्न राज्यों में भी मूर्तियां का व्रज लेपन किया है।
 
इस तरह किया जाता है वज्र लेप : मूर्ति शीर्ण न हो और मूर्ति को नया जीवन देने के लिए वज्र लेप किया जता है। वज्र लेपन एक प्राचीन भारतीय कला है। वज्र लेप प्राकृतिक रसायनों के प्रयोग से अथक परिश्रम से किया जाता है। वज्र लेप की कला दिन-ब-दिन दुर्लभ होती जा रही है। सोमवंशी परिवार की दूसरी पीढ़ी वज लेप का कारोबार गांव-गांव कर रही है। अब तक महाराष्ट्र में राष्ट्रकूट, यादव, चालुक्य काल के देवी-देवताओं की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं।
 
खानदेश में 11वीं से 12वीं सदी की मूर्तियां : अंबाडे, परोला, साटेगांव, भुसावल, अमलनेर, नंदुरबार, संभाजीनगर, जलगांव और नासिक जिलों में आवश्यकतानुसार मूर्ति पर वज्र लेप किया जा चुका है। हर्षल ने दावा किया है कि इनमें से ज्यादातर मूर्तियां 11वीं और 12वीं सदी की हैं। यहां हर्षल की मदद उनके सहयोगी प्रशांत चव्हाण, दुष्यंत चव्हाण और मंदिर के पुजारी जयेंद्र वैद्य और गणेश जोशी ने की।
 
अमलनेर के प्रमुख पुरोहित केशव पुराणिक कहते हैं कि हमारे धर्म शास्त्र के अनुसार खंडित मूर्तियों की पूजा नहीं की जा सकती है। इस पृष्ठभूमि में प्राचीन काल से भारतीय कारीगरों को ज्ञात वज्र लेप मूर्ति पर करना सबसे अच्छा विकल्प है।