आजादी के पुरोधा व पथ-प्रदर्शक, महान व्यक्तित्व के धनी, सरलता, सौजन्यता और उदारता की मूर्ति व अहिंसा के कटु पक्षधर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने की उस समय थे। भले ही 30 जनवरी, 1948 को शाम की प्रार्थना के दौरान बिरला हाऊस में 78 वर्ष की उम्र में नाथूराम गोड़से की गोली ने गांधी के शरीर की हत्या कर दी हो लेकिन उनकी अजर अमर देवतुल्य आत्मा अब भी भारत और भारतीयों को गांधी दर्शन के रूप में अपने आत्मीय अहसास का अनुभव करा रही है। गांधी के द्वारा आजादी के यज्ञ में दिए गए अपने निष्कामों की आहुति से अच्छाई और सच्चाई की ज्योति आज भी जगमगा रही है।
महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है। उन्होंने अपने सपनों के भारत में गांव के विकास को प्रमुखता प्रदान करके उससे देश की उन्नति निर्धारित होने की बात कही थी। गांधी ने अपने सपनों के भारत में अपनी व्यापक दृष्टि का परिचय देते हुए ग्रामीण विकास की तमाम आवश्यकताओं की पूर्ति करके ग्राम स्वराज्य, पंचायतराज, ग्रामोद्योग, महिलाओं की शिक्षा, गांव की सफाई व गांव का आरोग्य व समग्र विकास के माध्यम से एक स्वावलंबी व सशक्त देश के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया था।
गांवों में ग्रामोद्योग की दयनीय स्थिति से चिंतित गांधी ने 'स्वदेशी अपनाओ, विदेशी भगाओ' के जरिए गांवों को खादी निर्माण से जोड़कर अनेक बेरोजगार लोगों को रोजगार देकर स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका को रेखांकित किया। वे स्वतंत्रता के पश्चात एक ऐसे भारत का निर्माण करना चाहते थे जहां ऊंच-नीच और महिला-पुरुष का भेद पूर्णतः समाप्त हो और सभी अपने मताधिकार का विवेकपूर्ण प्रयोग करके अपने प्रतिनिधि का चयन कर लोकतंत्र की नींव को मजबूत करें।
उन्होंने स्वराज्य की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहा था कि स्वराज्य का मतलब अधिकाधिक हिन्दुओं का प्रभुत्व न होकर धर्म-जाति के भेदभावों से अछूते रहकर एक समतामूलक समाज का लोक सम्मति से शासन करना है। इसको लेकर उन्होंने समय-समय पर यंग इंडिया, हरिजन, हरिजन सेवक जैसी पत्र-पत्रिकाओं में अपने विचारों को उजागर भी किया। उन्होंने स्वराज्य को पवित्र व वैदिक शब्द के रूप में इंगित करते हुए उसे आत्म-शासन व आत्म-संयम से परिभाषित किया। जबकि इससे इतर अंग्रेजी भाषा के 'इंडिपेंडेस' शब्द को वे निरंकुश शासन का द्योतक मानकर उससे स्वराज्य को सर्वथा भिन्न मानते थे।
गांधी भारतीय महिलाओं के पुनरुत्थान व उनको सामाजिक कुरीतियों व रूढ़ियों से मुक्त कराने के लिए प्रतिबद्ध थे। वे महिलाओं के सम्मान के लिए उनके समान अधिकार व देश के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक विकास में उनकी महत्वपूर्ण सहभागिता के पुरजोर समर्थक थे। उन्होंने महिला शिक्षा, विधवाओं के पुनर्विवाह व महिलाओं के लिए दहेज मुक्त समाज का निर्माण करके उन पर जबरदस्ती लादे जाने वाले वैरूप्य के विष से उन्हें स्वतंत्र कराना चाहते थे। निजी महत्वाकांक्षा से मुक्त उनका समूचा जीवन प्रदर्शन नहीं बल्कि दर्शन के रूप में साबित हुआ। गांधी दर्शन के चार आधारभूत सिद्धांत सत्य, अहिंसा, प्रेम व सद्भाव एक सशक्त समाज व राष्ट्र निर्माण के घटक ही नहीं बल्कि एक सच्चे व नेक दिल इंसान की व्यक्तिगत एवं चारित्रिक विशेषताएं भी हैं।
बचपन में सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की जीवन कथा से प्रभावित होकर गांधी ने सत्य को ही अपना परमेश्वर मानने का निश्चय किया और ताउम्र सत्य की बुनियाद पर हर असंभव कार्य को संभव करने का साहस कर दिखाया। उनके अनुसार अहिंसा का अभिप्राय किसी को भी मन, कर्म, वचन और वाणी से तकलीफ नहीं पहुंचाना है। ईर्ष्या, घृणा, राग-द्वेष व परनिंदा से परहेज कर झूठ, अपशब्द, निष्प्रयोजन वाद-विवाद व वाचक हिंसा से तटस्थ रहना है। उनका मानना था कि अहिंसा के बिना सत्य की खोज करना संभव नहीं है।
सत्य साध्य है तो अहिंसा साधन। प्रेम और सद्भाव से ही किसी भी पत्थर दिल को मोम की तरह पिघला जा सकता है। विभिन्न धर्म, जाति, पंथ-संप्रदाय के रूप में तिल की तरह बिखरे समाज को एकता के सूत्र में बांधने का कार्य प्रेम और सद्भाव से ही संभव है। आपसी सौहार्द की भावना से ही कोई देश स्वर्ग का प्रतिरूप धारण कर विकास की बुलंदियों को स्पर्श कर सकता है। स्वच्छता गांधी के जीवन का अनिवार्य अंग थी। वे किसी भी तरह की लोक-लज्जा की परवाह कई बगैर अपना शौचालय स्वयं साफ करते थे। स्वच्छता को लेकर गांधी का मानना था कि यदि कोई व्यक्ति स्वच्छ नहीं है तो वह स्वस्थ नहीं रह सकता है।
निःसंदेह, आजादी के इतने वर्षों के बाद आज ग्रामीण विकास की छवि काफी सुधरी है। गांवों में स्कूलें, अस्पताल, शुद्ध पेयजल का प्रबंधन, पुलिस चौकी की स्थापना आदि इसके प्रमाण हैं। महिलाओं के प्रति भेदभाव में कमी आई है और वे चारदीवारी से निकलकर देश के राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक क्षेत्र में अपना योगदान देने लगी। लेकिन, अभी गांधी के सपनों के भारत को साकार करने के लिए हमें लंबा सफर तय करना बाकी है। गांधी के देश में शराब व मादक द्रव्यों के नशे में डूबती युवा तरुणाई को इस दलदल से सुरक्षित बाहर निकालकर दिशा देने की चुनौती हमारे समक्ष है। भीड़तंत्र के रूप में अराजक व देश की वर्तमान व्यवस्थाओं से आहत होते लोगों में अहिंसा और शांति की स्थापना करने की अविलंब दरकार है।
एक ऐसा माहौल कायम करनी की आवश्यकता है जहां लोगों में गांधीवाद और गांधी मूल्यों के प्रति आस्था व विश्वास बना रहे। बेशक, गांधी का मतलब दूसरों पर अंगुली उठाने की बजाय बाकी की अंगुलियों को अपनी ओर देखकर अपने मन में झांककर अपनी गलतियों से सबक लेना है। गांधी का मतलब देश की विसंगतियों को कोसने की बजाय देश निर्माण में अपने योगदान को उल्लिखित करना है। लोकतंत्र के मंदिर संसद में गांधी मूल्यों की धज्जियां उड़ाने वाले हमारे देश के नेताओं को गांधी टोपी और खद्दरधारी कुर्ते-पजामे के साथ अपना आचरण भी गांधी की भांति बनाना होगा, तभी हम कई जाकर गांधी के सपनों को सच कर पाएंगे। चलते-चलते, गांधी तेरी सत्य-अहिंसा से इनका इतना नाता है, दीवारों पर लिख देते हैं, दीवाली पर पुत जाता है।