शुक्रवार, 20 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. ज्योतिष
  3. ज्योतिष सीखें
Written By भारती पंडित

कुंडली के नवम भाव से जानें पितृदोष

निवारण और अन्य उपाय

कुंडली के नवम भाव से जानें पितृदोष -
WD
जन्म कुंडली का नवम भाव बेहद महत्वपूर्ण भाव होता है। यह भाव पिता के सुख, आयु व समृद्धि का कारक है, वहीं यह जातक के स्वयं के भाग्य, तरक्की, धर्म संबंधी रुझान को बताता है।

सूर्य पिता का कारक होता है, वहीं सूर्य जातक को मिलने वाली तरक्की, उसके प्रभाव क्षेत्र का कारक होता है। ऐसे में सूर्य के साथ यदि राहु जैसा पाप ग्रह आ जाए तो यह ग्रहण योग बन जाता है अर्थात सूर्य की दीप्ति पर राहु की छाया पड़ जाती है। ऐसे में जातक के पिता को मृत्युतुल्य कष्ट होता है, जातक के भी भाग्योदय में बाधा आती है, उसे कार्यक्षेत्र में विविध संकटों का सामना करना पड़ता है। जब सूर्य और राहु का योग नवम भाव में होता है, तो इसे पितृदोष कहा जाता है।

ND
सूर्य और राहु की युति जिस भाव में भी हो, उस भाव के फलों को नष्ट ही करती है और जातक की उन्नाति में सतत बाधा डालती है। विशेषकर यदि चौथे, पाँचवें, दसवें, पहले भाव में हो तो जातक का सारा जीवन संघर्षमय रहता है। सूर्य प्रगति, प्रसिद्धि का कारक है और राहु-केतु की छाया प्रगति को रोक देती है। अतः यह युति किसी भी भाव में हो, मुश्किलें ही पैदा करती है।

निवारण : पितृदोष के बारे में मनीषियों का मत है कि पूर्व जन्म के पापों के कारण या पितरों के शाप के कारण यह दोष कुंडली में प्रकट होता है अतः इसका निवारण पितृ पक्ष में शास्त्रोक्त विधि से किया जाता है।
अन्य उपाय :

* प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा-वस्त्र भेंट करने से पितृदोष कम होता है।

* प्रत्येक अमावस्या को कंडे की धूनी लगाकर उसमें खीर का भोग लगाकर दक्षिण दिशा में पितरों का आह्वान करने व उनसे अपने कर्मों के लिए क्षमायाचना करने से भी लाभ मिलता है।

* पिता का आदर करने, उनके चरण स्पर्श करने, पितातुल्य सभी मनुष्यों को आदर देने से सूर्य मजबूत होता है।

* सूर्योदय के समय किसी आसन पर खड़े होकर सूर्य को निहारने, उससे शक्ति देने की प्रार्थना करने और गायत्री मंत्र का जाप करने से भी सूर्य मजबूत होता है।

* सूर्य को मजबूत करने के लिए माणिक भी पहना जाता है, मगर यह कुंडली में सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है।

यह तय है कि पितृदोष होने से जातक को श्रम अधिक करना पड़ता है, फल कम व देर से मिलता है अतः इस हेतु मानसिक तैयारी करना व परिश्रम की आदत डालना श्रेयस्कर रहता है।