मरने का डर छोड़ साहित्य रचतीं महिलाएं
जहां जिंदगी का भरोसा नहीं है, वहां का साहित्य बहुत भरोसेमंद होता है। यह साबित होता है इस बार जयपुर साहित्य सम्मलेन में। और इस की कमान संभाली महिला साहित्यकारों ने। मन से डर के परदे हटा दिए जाएं और खुले दरीचों से बाहर झांका जाए तो कलम कई बार कैसा कमाल कर डालती है, यह दिखाया हजारों पुस्तक प्रेमियों को देश-विदेश की कुछ महिला साहित्यकारों ने।
नसरीन का गुस्सा : साहित्यकार तस्लीमा नसरीन ने धर्म के ठेकेदारों की जमकर खिंचाई की। उनका कहना था कि इस्लामी देशों में धर्मनिरपेक्षता की स्थापना इस्लाम की आलोचना से ही की जा सकती है। उनका कहना था कि मैं हिदुत्व अथवा बौद्ध धर्म के विरुद्ध कुछ भी कह डालूं, कुछ नहीं होता और जैसे ही मैं अपने धर्म के खिलाफ कुछ कहती हूं, हर तरफ विरोध शुरू हो जाता है।
सम्मलेन स्थल के बाहर विरोध दर्ज कर रहे मुस्लिम धर्मावलंबियों को उन्होंने कुछ यूं ललकारा कि यदि मेरी बात का विरोध करना है तो उपयुक्त जवाब लाओ, यह बार-बार मारने का फतवा क्यों जारी करते हो।
भारत की महिलाओं की सुरक्षा के लिए उन्होंने तत्काल 'सामान नागरिक कानून' लागू करने की मांग भी की। उन्होंने मुस्लिम महिलाओं को भी पुरुषों के सामान अधिकार दिए जाने की भी वकालत की। वर्ष 1994 से अपनी विवादास्पद पुस्तक "लज्जा" के कारण निर्वासित जीवन बिताने को मजबूर तस्लीमा नसरीन ने अपनी नयी किताब "एक्जाइल" में अपने निर्वासन का वर्णन किया है। उन्होंने कहा कि वे राष्ट्रवाद में नहीं वरन एक दुनिया में विश्वास करती हैं।
महिलाएं है कश्मीर घाटी में सबसे ज्यादा प्रभावित : कश्मीरी भाषा का पहला साहित्य अकादमी पुरुस्कार जीतने वालीं कवयित्री नसीम शाफई को घाटी में आतंकवाद देखते हुए 27 साल हो चुके हैं। वह कहती हैं कि आतंक ने सबसे ज्यादा नुकसान महिलाओं का किया है। नसीम ने आतंक का खौफ तब सबसे ज्यादा सहा जब उनके पत्रकार पति पर पांच गोलियां दाग दी गईं। शाफई कहती हैं कि उनके पूर्वजों का कश्मीर बहुत सुन्दर था और वह चाहती हैं कि वैसा ही कश्मीर उन्हें फिर मिल जाए। कश्मीर की बेपनाह खूबसूरती का जिक्र करते हुए वह कहती हैं कि घाटी में आए दिन होने वाली घटनाएं इसे बदसूरत बना रही हैं।
बांग्लादेश में तीस लेखकों का कत्ल : शाजिया उमर मूलतः रहने वाली हैं बांग्लादेश की लेकिन पली-बढ़ी कनाडा में हैं। अपनी नयी किताब "डार्क डायमंड" में मुस्लिम धर्म की परम्पराओं का उन्होंने बखूबी चित्रण किया है। हालांकि लेखन के समय वह धर्म को लेकर डरी जरूर रहती थी पर उन्होंने इस डर को कभी अपनी किताब पर नहीं छाने दिया। अशांत क्षेत्रों में साहित्य सृजन को बहुत बड़ी चुनौती बताते हुए वह कहती हैं कि पिछले दो सालों में बांगला देश में तीस लेखकोँ का कत्ल होना इस बात का सबूत है कि ऐसे क्षेत्रों में लिखना कितनी बड़ी चुनौती है। शाजिया अगली किताब बांग्लादेश में नशीली दवाओं के बढ़ते प्रकोप पर लिखना चाहती हैं लेकिन विरोध की संभावनाओं के चलते मन नहीं बना पा रही हैं।
सयुंक्त राष्ट्र का है विशेष संकल्प : शांति प्रक्रिया में सतत योगदान और महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सयुंक्त राष्ट्र काफी संवेदनशील है। अपने संकल्प संख्या 1325 द्वारा सयुंक्त राष्ट्र महिलाओं की सुरक्षा के लिए वचनबद्ध है। इस संकल्प को सयुंक्त राष्ट्र संघ में पारित कराने वाली एक्टिविस्ट रुचिरा गुप्ता कहती हैं कि युद्ध और आतंक का सबसे बड़ा कहर महिलाओं पर टूटता है। गुप्ता कहती हैं कि शांति बहाली में महिलाओं की बराबर की भागीदारी होनी चाहिए। कोसोवो में युद्ध विराम के बाद जब वहां सैनिकों के मनोरंजन के लिए बड़ी संख्या में वेश्यालय खुल गए तो रुचिरा ने इस का पुरजोर विरोध करते हुए इन्हें बंद करने में सक्रिय भूमिका अदा की थी।
जयपुर साहित्य कुम्भ का आखिरी सत्र भी महिलाओं को ही समर्पित रहा। इस बार सम्मलेन में कई महिला आधारित विषय प्रमुखता से लिए गए। और तो और, इस का समापन भी अशांत क्षेत्रो में रहने वाली महिलाओं को राहत पहुंचाने वाले विषय के साथ ही किया गया।
रिपोर्ट:- जसविंदर सहगल