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Written By DW
Last Updated : रविवार, 18 जून 2023 (09:00 IST)

भारतः अंगदान करने वालों की कमी क्यों?

Organ donation
-मुरली कृष्णन
दुनिया में सबसे कम अंगदान करने वाले देशों की सूची में भारत का नाम भी है। जानकार मानते हैं कि भारत में डोनर रेट बढ़ाने के लिए उल्लेखनीय और अहम बदलावों की जरूरत है।
 
अंगदान की मांग, भारत में अंगों की आपूर्ति से ज्यादा है। और मृतक अंगदान दाताओं की उसकी दर प्रति दस लाख आबादी में एक डोनर से भी नीचे हैं। ये संख्या बहुत ही कम है खासतौर पर अमेरिका और स्पेन जैसे देशों की तुलना में जहां डोनरों की दर दुनिया में सबसे ऊंची है- प्रति दस लाख लोगों में 40 डोनर।
 
भारत में, ट्रांसप्लांट (प्रत्यारोपण) की जरूरत वाले मरीज और ट्रांसप्लांट के लिए उपलब्ध अंगों की वास्तविक संख्या के बीच अभी भी एक बड़ी खाई है। नतीजतन जीवित रहने के लिए दान के अंगों की जरूरत वाले कई मरीजों की मौत हो जाती है।
 
अंगों की मांग ज्यादा है, अंगदान करने वाले कम
डॉक्टर और प्रत्यारोपण के विशेषज्ञों ने अंगों के डोनरों की कमी के लिए कुछ वजहों की शिनाख्त की है। उनमें अंगदान के बारे में जागरूकता की कमी, प्रैक्टिस से जुड़ी गलत मान्यताएं और बुनियादी ढांचे से जुड़े मुद्दे भी शामिल हैं।
 
भारत में अंग प्रत्यारोपण, जीवित डोनरों के जरिए संभव हो पाता है जो कि अपने जीवित रहते ही अपना अंग दान करने पर राजी हो जाते हैं- जैसे कि किडनी।
 
अमेरिका के बाद भारत दुनिया में लिविंग डोनर ट्रांसप्लांट वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है- लेकिन मृत दानदाताओं के अंग प्रत्यारोपण के मामले देश में बहुत ही कम हैं।
 
स्वंयसेवी संगठन मोहन फाउंडेशन के सुनील श्रॉफ ने डीडब्लू को बताया, "2019 में 9751 गुर्दा प्रत्यारोपण के 88 फीसदी मामले और 2590 लीवर ट्रांसप्लाट के 77 फीसदी मामले, लिविंग डोनरो यानी जीवित दाताओं से थे।" उनका यह भी कहना है,"इसकी तुलना में, वैश्विक स्तर पर सिर्फ 36 फीसदी किडनी और 19 फीसदी लीवर ट्रांसप्लांट लिविंड डोनरो से मिलते हैं।"
 
भारत में सड़क पर मौतों के बढ़ते मामलों से डोनर दरें बढ़ेगीं?
सड़क परिवहन के आंकडों के मुताबिक भारत में हर साल, करीब 150,000 लोग सड़कों पर मारे जाते हैं। इसका मतलब औसतन हर रोज सड़कों पर 1000 से ज्यादा दुर्घटनाएं होती हैं और 400 से ज्यादा लोग दम तोड़ देते हैं।
 
अंग दान में मृत डोनर के अंगों- जैसे हृदय, यकृत (लिवर), गुर्दे (किडनी), आंतें, आंखें, फेफड़े और अग्न्याशय (पैनक्रियाज) को निकाल कर दूसरे व्यक्ति के शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है, जिसे जीवित रहने के लिए उनकी जरूरत है। एक मृत डोनर, जिसे कैडेवर भी कहा जाता है, इस तरह नौ लोगों की जान बचा सकता है।
 
हालांकि हेल्थ प्रोफेश्नल आमतौर पर अंगदान के विषय पर मृतक के परिजनों से बात करने में अटपटा महसूस करते हैं। नई दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ समीरन नंदी ने डीडब्लू को बताया, "डॉक्टर मृतक के अंगों को दान देने के बारे में पूछने से कतराते हैं। कोई इस बारे में प्रोत्साहन भी नहीं है और बदले की कार्रवाई का डर भी रहता है।"
 
भारत में बुनियादी ढांचे के मुद्दे
अंगदान करने के इच्छुक लोग बढ़ भी जाएं तो सभी अस्पतालों में अंग प्रत्यारोपण से जुड़ी तमाम प्रक्रियाओं के लिए जरूरी साजोसामान या उपकरण  मौजूद नहीं हैं।
 
भारत में सिर्फ 250 अस्पताल ही नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन (नोटो) से पंजीकृत हैं। ये संगठन देश के अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम का समन्वय करता है।
 
यानी देश में प्रत्येक 43 लाख नागरिकों के लिए, तमाम सुविधाओं और उपकरणों वाला सिर्फ एक अस्पताल है। भारत के देहाती इलाकों में तो ट्रांसप्लांट सेंटर कमोबेश हैं भी नहीं।
 
इंडियन ट्रांसप्लांट न्यूजलेटर में "भारत में मृतक के अंगदान से जुड़ी प्रगति" नाम से प्रकाशित एक आलेख के मुताबिक टर्शियरी केयर (किसी खास बीमारी के उपचार से जुड़े) कॉरपोरेट अस्पतालों में सबसे ज्यादा अंग दान किए जाते हैं जबकि सरकारी अस्पतालों में 15 फीसदी से भी कम होते हैं।
 
अध्ययन के मुताबिक, "भारत में अंगदान की सच्ची संभावना पब्लिक सेक्टर के अस्पतालों में निहित है। जहां मेडिको-लीगल कारणों के चलते बड़ी संख्या में हेड ट्रॉमा के मामले आते हैं।"
 
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है,"अगर हर राज्य के पास मृतक अंगदान पर केंद्रित एक नोडल अस्पताल हो, तो वे अंग दान की दर में सुधार कर सकते हैं और गरीब तबके के मरीजों के लिए ज्यादा सस्ते ट्रांसप्लांट विकल्प मुहैया करा सकता है।"
 
सुनील श्रॉफ भी इस ओर रेखांकित करते हैं कि मौजूदा हेल्थ सिस्टम, पैसों के लिहाज से भारतीयों और विदेशियों के लिए दान वाले अंगों के स्वास्थ्य लाभों को सीमित कर देता है और सिस्टम में नगण्य योगदान करन वाले निजी अस्पताओं को मुनाफा कमाने की छूट देता है।
 
वो कहते हैं, "ज्यादा संख्या में अंगदान करने की क्षमता रखने वाले गरीब भारतीयों को जीवन बचाने वाला ट्रांसप्लांट मुहैया हो पाएगा इसकी बहुत ही कम या कतई भी उम्मीद नहीं होती। जरूरी बुनियादी ढांचा विकसित करने और सरकारी अस्पतालों में मृतक अंगदान को मदद पहुंचाने की विशेषज्ञता अर्जित करने में बहुत कम निवेश कम किया जाता है।"
 
आगे का रास्ता
2020 में वैश्विक स्तर पर 130,000 अंगदान हुए थे। अमेरिका और यूरोप में किडनी के सबसे ज्यादा ट्रांसप्लांट हुए जबकि अफ्रीका में ऐसे प्रत्यारोपणों का अनुपात सबसे कम था।
 
भारत सरकार यूं तो अंगदान पर जोर देने लगी है लेकिन अभी उसकी मंजिल दूर है। कई जानकार ध्यान दिलाते हैं कि नागरिकों और चिकित्सा पेशेवरों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए कोई टिकाऊ या सतत विज्ञापन अभियान नहीं चलाए जा रहे हैं।
 
मार्च में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मासिक रेडियो प्रसारण में जनता से अंगदान का विकल्प चुनने की अपील की थी। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार एक नीति पर काम कर रही है जो अंगदान की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करेगी और उसे सरल बनाएगी।
 
ताजा राष्ट्रीय स्वास्थ्य रूपरेखा के मुताबिक भारत उन देशों में शामिल है जहां सार्वजनिक स्वास्थ्य पर सबसे कम पैसा खर्च किया जाता है। भारत सरकार को उम्मीद है कि 2025 तक वो देश की जीडीपी की ढाई फीसदी राशि स्वास्थ्य कल्याण में खर्च करेगी। लेकिन करीब 6 फीसदी की वैश्विक औसत से यह फिर भी कम है।
 
डॉ नंदी कहते हैं, "भारत में अंगदान की स्थिति तभी बेहतर हो पाएगी जब ज्यादा से ज्यादा जनता और डॉक्टर बिरादरी जागरूक बनेगी और दाता परिवारों की सराहना कर हौसलाअफजाई की जाएगी।"
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