पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस को जबरदस्त झटका दिया है। राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 18 पर बीजेपी जीत दर्ज की है। तृणमूल को केवल 21 सीटें मिलीं।
इन लोकसभा चुनावों में देश के जिन राज्यों में सबसे दिलचस्प मुकाबले की संभावना थी उनमें पश्चिम बंगाल भी शामिल था। अटकलों के मुताबिक यहां लोकसभा चुनावों के नतीजे भी चौंकाने वाले रहे हैं। एक्जिट पोल के नतीजों को सही और तमाम राजनीतिक पंडितों के पूर्वानुमानों को गलत साबित करते हुए बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में 18 सीटें जीती हैं। इस बार सीपीएम औऱ कांग्रेस के बीच तालमेल नहीं हो पाने की वजह से वोटरों का धुव्रीकरण देखने को मिला। इसके अलावा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी), सीपीएम के वोटर भी थोक में बीजेपी के पाले में चले गए। खासकर जंगलमहल के आदिवासी इलाकों में राज्य में सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ वोटरों की नाराजगी ने बीजेपी के प्रदर्शन में जबरदस्त सहायता की है।
बीजेपी को मिलने वाले वोट भी अबकी पिछले चुनावों के 17 फीसदी के मुकाबले दोगुने से ज्यादा बढ़कर 40 फीसदी का आंकड़ा छूने लगे हैं। बीजेपी के इस प्रदर्शन ने दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में उसे तृणमूल कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा खतरा बना दिया है। पूर्वोत्तर राज्यों में बीजेपी और उसके सहयोगी दल पिछली बार के आंकड़ों के आस-पास ही नजर आ रहे हैं। पिछली बार आठ राज्यों की 25 में से 14 सीटें एनडीए को मिली थीं।
सीपीएम और उसकी अगुवाई वाले वाममोर्चा का सूपड़ा साफ हो गया है। सीपीएम को एक भी सीट नहीं मिली। अबकी सीपीएम के ज्यादातर वोटरों ने तृणमूल के विकल्प के तौर पर बीजेपी पर ही भरोसा जताया है। वैसे, हाल में पूर्व मुख्यमंत्री और सीपीएम के वरिष्ठ नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य ने भी यह अंदेशा जताया था। नतीजों से साफ है कि उनका अंदेशा सच साबित हुआ है।
इसके अलावा नागरिकता (संशोधन) विधेयक और नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस (एनआरसी) जैसे मुद्दे भी असरदार साबित हुए हैं। बीजेपी ने उम्मीद के मुताबिक झारखंड से सटे बांकुड़ा, पुरुलिया और झाड़ग्राम इलाकों में काफी बेहतर प्रदर्शन किया है। उत्तर बंगाल में दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी और अलीपुरदुआर जैसी सीटों पर जीत हासिल कर पार्टी ने साफ कर दिया है कि बंगाल के लोग तृणमूल कांग्रेस के विकल्प के तौर पर उसे ही देख रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने बंगाल में कुल 34 रैलियां की थीं। उनका असर भी नतीजों पर नजर आया है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि कुछ सीटों पर तृणमूल कांग्रेस-विरोधी लहर ने भी बीजेपी के पक्ष में हवा बनाई थी। इसके अलावा मोदी व ममता के बीच चुनाव प्रचार के दौरान बड़े पैमाने पर लगे आरोप-प्रत्यारोपों ने भी नतीजों पर असर डाला है। राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, "कांग्रेस और सीपीएम के हाशिए पर सिमटने की वजह से उसके वोट बैंक पर बीजेपी ने कब्जा कर लिया। कांग्रेस और सीपीएम के बीच तालमेल नहीं होने की वजह से वोटरों का जबरदस्त धुव्रीकरण हुआ और इसका नुकसान तृणमूल को उठाना पड़ा। इसके अलावा कुछ इलाकों में बीजेपी ने तृणमूल के अल्पसंख्यक वोट बैंक में भी सेंध लगाई है।”
राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर मईदुल इस्लाम कहते हैं, "बीजेपी इस बार उसी स्थिति में थी जिस स्थिति में वर्ष 2001 में तृणमूल कांग्रेस थी। तृणमूल कांग्रेस के कुछ सांसदों के रवैए की वजह से स्थानीय लोगों में बढ़ती नाराजगी का भी फायदा बीजेपी को मिला है। खासकर जंगलमहल इलाके के नतीजों से यह बात समझी जा सकती है।”
इसी तरह दार्जिलिंग सीट पर गोरखा मोर्चे के विभाजन और राज्य सरकार की फूट डालो, राज करो की नीति से भी स्थानीय लोगों में नाराजगी थी। इसलिए लोगों ने मोर्चा के विमल गुरुंग वाले गुट का ही समर्थन किया। इसके साथ ही वहां गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) के समर्थन ने भी बीजेपी की राह आसान कर दी। इसी तरह जलपाईगुड़ी और अलीपुरदुआर संसदीय सीटों पर आदिवासी वोटरों ने अबकी बीजेपी पर भरोसा जताया है। किसी दौर में इलाके के चाय बागानों में वामपंथी ट्रेड यूनियनें काफी मजबूत थीं। बाद में उन पर तृणमूल कांग्रेस ने कब्जा कर लिया था। लेकिन हाल के वर्षों में इलाके में संघ और विहिप जैसे संगठनों की बढ़ती गतिविधियों और आदिवासियों के बीच बढ़ती पैठ ने इलाके में बीजेपी का आधार मजबूत बना दिया।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों और मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी पर जबरदस्त हमलों ने भी आम वोटरों की राय बदलने में अहम भूमिका निभाई है। कोलकाता के एक कालेज में राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष उदयन बनर्जी कहते हैं, "बंगाल में कांग्रेस तो पहले से ही हाशिए पर थी जबकि सीपीएम के नेतृत्व वाले वाममोर्चा के पैरों तले की जमीन भी लगातार खिसक रही थी। ऐसे में तृणमूल कांग्रेस-विरोधी वोटरों को बीजेपी में ही बेहतर विकल्प नजर आया और लोगों ने उसके पक्ष में खुल कर वोट डाले।”
वह कहते हैं कि जंगलमहल के नाम से मशहूर रहे झारखंड के सीमावर्ती इलाकों के अलावा उत्तर बंगाल के आदिवासी बहुल इलाकों में पार्टी के बेहतर प्रदर्शन से साफ है कि बीजेपी आदिवासियों का भरोसा जीतने में कामयाब रही है। इन तमाम इलाकों में प्रधानमंत्री मोदी के अलावा बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रैलियों का भी वोटरों पर असर पड़ा।
बीजेपी ने अबकी नागरिकता (संशोधन) विधेयक और एनआरसी के अलावा ममता बनर्जी सरकार के कथित भ्रष्टाचार और सिंडीकेट राज को यहां प्रमुख मुद्दा बनाया था। वोटरों पर इनका भी असर नजर आ रहा है। इसी वजह से बीजेपी के वोट बैंक में जबरदस्त वृद्धि हुई और इसने तमाम पूर्वानुमानों को फेल कर दिया।
अब बीजेपी के इस प्रदर्शन ने दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में उसे तृणमूल कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा खतरा बना दिया है। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह समेत तमाम नेता पहले ही कह चुके हैं कि लोकसभा चुनाव तो उनके लिए सेमीफाइनल है। फाइनल तो विधानसभा चुनाव ही होंगे। विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, "बीजेपी ने सेमीफाइनल में बेहतर प्रदर्शन के जरिए दो साल बाद होने वाले फाइनल से पहले सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी तो बजा ही दी है।”
रिपोर्ट प्रभाकर, कोलकाता