हम सब तारों की धूल हैं
ब्रह्मांड और पृथ्वी में जहां कहीं भी जीवन है, वो सब तारों की धूल से है। वैज्ञानिकों के मुताबिक यही धूल ब्रह्मांड में जीवन को फैलाती है।
ब्रह्मांड में फैले धूल के गुबार के साथ जैविक कण भी पृथ्वी पर आए होंगे और इन्हीं की बदौलत धरती पर जिंदगी ने जन्म लिया होगा। यूके की एडिनबरा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की टीम इसी नतीजे पर पहुंच रही है। वैज्ञानिकों के मुताबिक ब्रह्मांड में मौजूद धूल लगातार पृथ्वी के वायुमंडल में घुसने की कोशिश करती है। वैज्ञानिक इसे लगातार होने वाली बमबारी कहते हैं। रिसर्चरों को लगता है कि धूल के इसी प्रसार के चलते दूसरे ग्रहों तक भी जीवन पहुंच सकता है।
शोध टीम में शामिल एक भारतीय वैज्ञानिक प्रोफेसर अर्जुन बेरेरा कहते हैं, "जिस मात्रा में ब्रह्मांड की धूल टकराती है उससे ऑर्गेनिज्म्स बहुत ही लंबी दूरी तक दूसरे ग्रहों तक यात्रा करने लग सकते हैं। इससे जीवन और ग्रहों के वायुमंडल के जन्म के बारे में दिलचस्प नजरिया पैदा होता है।"
प्रोफेसर बेरेरा के मुताबिक ब्रह्मांड में मौजूद सभी तारा मंडलों में धूल मौजूद है और शायद जीवन के पीछे एक साझा कारण भी है। रिसर्च एस्ट्रोबॉयोलॉजिकल पत्रिका में छपी है। अब तक समझा जाता था कि जीवन की उत्पत्ति किसी बड़ी टक्कर से हुई होगी। लेकिन एडिनबरा यूनिवर्सिटी का शोध दूसरा नजरिया पेश कर रहा है।
वैज्ञानिकों की गणना के मुताबिक ब्रह्मांड में मौजूद धूल 70 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से पृथ्वी के वायुमंडल के कणों से टकराती है। धरती से 150 किलोमीटर ऊपर वायुमंडल में मौजूद पार्टिकल गुरुत्व बल के असर से बाहर निकल जाते हैं। लेकिन उल्टी तरफ से होने वाली धूल की बमबारी की वजह से वह वापस धरती की तरफ धकेल दिये जाते हैं।
यह बात साफ हो चुकी है कि कुछ बैक्टीरिया, पौधे और छोटे जीव अंतरिक्ष में भी जीवित रह सकते हैं। वैज्ञानिकों का दावा है कि ऐसे जीवन के पीछे मौजूद ऑर्गेनिज्म अगर वायुमंडल के बाहरी हिस्से में होगा तो वो ब्रह्मांड की धूल के साथ अनंत की यात्रा पर निकल सकता है।
रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी