भारत में सोशल मीडिया के प्रति बढ़ता क्रेज अब पारंपरिक सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों को बदल रहा है। फेसबुक, व्हाट्स ऐप, ट्विटर और इंस्टाग्राम समेत ऐसी साइटों का इस्तेमाल करने वाले लोगों की तादाद लगातार बढ़ रही है।
सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों में किशोरों से बुजुर्गों तक हर उम्र के लोग शामिल हैं। खासकर कोई 13-14 महीने पहले रिलायंस जियो के लांच होने और देश के दूर-दराज के इलाकों में भी 4जी तकनीक पहुंचने के बाद सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों की तादाद में तेजी से इजाफा हुआ है। विशेषज्ञ सोशल मीडिया की लत से बचने की अपील कर रहे हैं। उनके अनुसार हर चीज की तरह इसके भी सकारात्मक और नकारात्मक पहलू हैं। देश की खासकर शहरी आबादी में तो सोशल मीडिया अब समाज और संस्कृति का अनिवार्य हिस्सा बनता जा रहा है।
आधुनिक जीवन का हिस्सा
तकनीकी खबरों वाली वेबसाइट द नेक्स्ट वेब ने बीते साल जुलाई में अपनी एक रिपार्ट में दावा किया था कि फेसबुक का इस्तेमाल करने वालों की तादाद के मामले में भारत ने अमेरिका को भी पीछे छोड़ दिया है। उसका कहना था कि भारत में 24.1 करोड़ लोग इसका इस्तेमाल करते हैं जबकि अमेरिका में यह तादाद 24 करोड़ है। हालांकि फेसबुक ने बाद में इसका खंडन करते हुए कहा था कि भारत में फिलहाल 20.1 करोड़ लोग ऐसे हैं जो हर महीने कम से कम एक बार फेसबुक पर लॉगिन करते हैं।
आंकड़ा चाहे कुछ भी हो, एक बात तो साफ है कि देश में सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों की तादाद रोजाना बढ़ रही है। खासकर फेसबुक और व्हाट्सऐप तो आधुनिक जीवन का अनिवार्य हिस्सा हो गए हैं। महानगरों के अलावा छोटे शहरों में भी इसके बिना रोजमर्रा के जीवन की कल्पना करना कठिन है।
सकारात्मक असर
सोशल मीडिया ने कई मायनों में जीवन काफी आसान कर दिया है। मिसाल के तौर पर अब पढ़ाई या रोजगार के सिलसिले में सात संमदर पार रहने वाली संतान वीडियो कालिंग सुविधा के चलते अपने माता-पिता व परिजनों से आमने-सामने बैठ कर बात कर सकती है। कोलकाता के साल्टलेक में रहने वाले सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी मनोरंजन अधिकारी के बेटे-बहू विदेश में रहते हैं। लेकिन वहां से वह लोग हर शनिवार और रविवार को वीडियो के जरिए माता-पिता का हाल लेते रहते हैं। मनोरंजन ने भी अब स्मार्ट फोन पर वीडियो कालिंग सीख ली है।
वह कहते हैं, "हमारे जमाने में पत्र ही घर वालों से संपर्क का इकलौता साधन था। लेकिन अब सोशल मीडिया ने जिंदगी काफी आसान कर दी है। इसके साथ ही सूचनाओं का बहाव भी काफी तेज हो गया है।" अब तो शादी और पार्टियों के कार्ड वगैरह भी सोशल मीडिया के जरिए भेजे जाने लगे हैं। खासकर व्हाट्सऐप पर ग्रुप बना कर किसी मुद्दे पर जागरुकता फैलाने का काम भी हो रहा है।
इसके अलावा किसी दफ्तर में काम करने वाले तमाम कर्मचारी और बॉस अपने व्हाट्सऐप ग्रुप पर ही मीटिंग और जरूरी चर्चा निपटा रहे हैं। इससे जहां समय की बचत होती है वहीं कामकाजी दक्षता भी बढ़ रही है। समाजशास्त्री डी.के.सुरेश कहते हैं, "देश में बढ़ते एकल परिवारों के मौजूदा दौर में सोशल मीडिया रिश्तों को मजबूत करने में अहम भूमिका निभा रहा है।"
लिंक्डइन जैसी साइटें रोजगार के मुख्य स्रोत के तौर पर उभर रही हैं। एक सर्वेक्षण के मुताबिक अब 89 फीसदी नियुक्तियां लिंक्डइन या कंपनी की वेबसाइट के जरिए हो रही हैं। महज 140 शब्दों का ट्वीट भी देश-विदेश की प्रमुख घटनाओं के तेजी से प्रसार का अहम जरिया बन गया है। वेबसाइट पर पोस्ट किसी कहानी की उम्र जहां 2.6 दिन है वहीं सोशल मीडिया पर उसी की उम्र 23 फीसदी बढ़ कर 3.2 दिन हो जाती है।
नकारात्मक असर
हर चीज की तरह सोशल मीडिया के भी दो पहलू हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह लोगों पर निर्भर है कि वह इसका इस्तेमाल कैसे, किसलिए और कितनी देर करते हैं। किसी भी चीज की लत अच्छी नहीं है। मिसाल के तौर पर कोलकाता में एक व्यक्ति ने महज इस आधार पर पत्नी की हत्या कर दी कि वह सोशल नेटवर्किंग साइटों पर ज्यादा वक्त गुजारती थी और इस वजह से पति की ओर समुचित ध्यान नहीं दे पाती थी।
दिल्ली हाईकोर्ट की जज हिमा कोहली ने हाल में कहा था कि सोशल मीडिया के जमाने में निजी डाटा की कोई गोपनीयता नहीं रहने की वजह से शादी नाम की खूबसूरत संस्था खतरे में पड़ रही है। उनका कहना था कि सोशल मीडिया की व्यस्तता की वजह से जीवनसाथी के लिए परंपरागत सांस्कृतिक मूल्यों और सम्मान में लगातार कमी आ रही है। कोलकाता समेत कई महानगरों में तो अब शादी के ऐसे दिलचस्प विज्ञापन भी सामने आ रहे हैं जिनमें लिखा जा रहा है कि भावी वधू को फेसबुक या सोशल मीडिया का नशा नहीं हो तो बेहतर है।
मैरेज काउंसलर पूर्णिमा दत्त कहती हैं, "सोशल मीडिया के बढ़ते असर की वजह से हमारी संस्कृति तो बदली ही है, परिवार व विवाह के अर्थ भी बदल गए हैं। लोग बिना-सोचे समझे किसी भी मैसेज को फॉरवर्ड कर देते हैं। इसका नतीजा कई बार घातक हो सकता है।" मुंबई की दो स्कूली छात्राओं के अलावा एअर इंडिया के चालक दल के दो सदस्यों मयंक मोहन शर्मा और केवीजे राव को फेसबुक पर अपमानजनक टिप्पणी के आरोप में जेल की हवा खानी पड़ी थी। कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर का मामला भी ऐसा ही था।
रिश्तों की नई परिभाषा
मनोवैज्ञानिक अश्विनी कुमार मोहंती कहते हैं, "सोशल मीडिया के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल से एकाग्रता प्रभावित होती है और कामकाजी समय का भी नुकसान होता है।" वह कहते हैं कि इसकी वजह से पहचान चुराने, साइबर फ्रॉड, साइबर बुलिंग, हैकिंग और वाइरस हमले की घटनाएं भी बढ़ गई हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि शहरी परिवारों में तो सोशल मीडिया रिश्तों की संस्कृति को नए सिरे से परिभाषित कर रहा है। लेकिन फिलहाल शहरों और गांवों के बीच बंटे परिवार (यानी जो रोजगार के सिलसिले में शहर में हो, लेकिन उसके संयुक्त परिवार के लोग गांव में रहते हों) इस मामले में संक्रमण काल से गुजर रहे हैं। समाजशास्त्र के प्रोफेसर मनोज कुमार सरकार कहते हैं, "लोगों को यह समझना होगा कि इंटरनेट का मतलब सिर्फ सोशल मीडिया ही नहीं है। यह सूचनाओं का भंडार है। ऐसे में सोच-समझ कर परंपरागत रिश्तों के साथ तालमेल बिठा कर इसका इस्तेमाल करना ही बेहतर है।"
रिपोर्ट प्रभाकर, कोलकाता