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Written By DW
Last Updated : बुधवार, 11 अगस्त 2021 (08:56 IST)

इलेक्टोरल बॉन्ड: सत्ताधारी बीजेपी को चंदे के तौर पर मोटी रकम

इलेक्टोरल बॉन्ड: सत्ताधारी बीजेपी को चंदे के तौर पर मोटी रकम - ruling BJP got huge amount in electoral bonds
रिपोर्ट : आमिर अंसारी
 
भारतीय जनता पार्टी को 2019-20 में इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले करीब 2,555 करोड़ रुपए, वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को मात्र 9 फीसदी हिस्सा ही मिला है। भारतीय जनता पार्टी ने वित्त वर्ष 2019-20 में बेचे गए इलेक्टोरल बॉन्ड के तीन-चौथाई हिस्से पर कब्जा किया है। वित्त वर्ष 2019-20 में बेचे गए कुल 3,435 के बॉन्ड में से कांग्रेस को मात्र नौ फीसदी ही मिला है। कांग्रेस के खाते में 318 करोड़ रुपए गए। बीजेपी को बॉन्ड के जरिए इस अवधि में सबसे ज्यादा 75 फीसदी चंदा मिला।
 
साल 2018-19 में बीजेपी को बॉन्ड के जरिए 1450 करोड़ रुपए मिले थे और कांग्रेस को 383 करोड़ रुपए मिले थे। इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए बीजेपी की हिस्सेदारी 2017-18 वित्त वर्ष में 21 फीसदी से बढ़कर 2019-20 में 75 फीसदी हो गई है। बीजेपी को 2017-18 में कुल 989 करोड़ रुपए में से 210 करोड़ रुपए और 2019-20 में 3,427 करोड़ रुपए में से 2,555 करोड़ रुपए प्राप्त हुए हैं।
 
बाकी दलों का हाल
 
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने बॉन्ड्स के जरिए 29.25 करोड़ रुपए जुटाए। टीएमसी ने 100.46 करोड़ रुपए, डीएमके 45 करोड़, शिवसेना 41 करोड़, आरजेडी 2।5 करोड़ और आम आदमी पार्टी ने 18 करोड़ रुपए बॉन्ड्स के जरिए जुटाए। केवल तीन साल के भीतर इलेक्टोरल बॉन्ड्स ने दानदाताओं को गुमनामी के साथ लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दलों धन देने का प्रमुख विकल्प दिया है।
 
इलेक्टोरल बॉन्ड्स से दानदाताओं को जो गुमनामी मिलती है, उसका मतलब है कि मतदाता यह नहीं जान पाएंगे कि किस व्यक्ति, कंपनी या संगठन ने किस पार्टी को और किस हद तक धन दिया है।
 
इलेक्टोरल बॉन्ड्स लाए जाने से पहले राजनीतिक दलों को उन लोगों के विवरण का खुलासा करना पड़ता जिन्होंने 20,000 रुपए से अधिक का दान दिया। पारदर्शिता कार्यकर्ताओं के मुताबिक बॉन्ड्स 'जानने के अधिकार' का उल्लंघन करता है और राजनीतिक वर्ग को और भी अधिक जवाबदेही से बचाता है।
 
चुनावी चंदा का इलेक्टोरल बॉन्ड एक प्रॉमेसरी नोट की तरह होता है। इसे भारत का कोई भी नागरिक खरीद सकता है लेकिन ये बॉन्ड केवल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनिंदा शाखाओं में ही उपलब्ध होते हैं। बॉन्ड खरीदने वाले को अपनी पूरी जानकारी बैंक को देनी पड़ती है जिसे केवाईसी भी कहा जाता है। इसे भुनाने के लिए राजनीतिक दल के पास 15 दिन का ही समय होता है। एक और रोचक बात ये है कि यह बॉन्ड उन्हीं दल को दिए जा सकते हैं जिनको पिछले में कुल वोटों का एक कम से कम फीसदी हिस्सा मिला हो।
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