दिल्ली मेट्रो के किराये जिस तरह बढ़े, वह दुनिया का दूसरी सबसे महंगी सार्वजनिक परिवहन सेवा हो गई। जब दुनिया पर्यावरण की रक्षा के लिए सार्वजनिक यातायात को मुफ्त करने की सोच रही है, भारत उसे प्रतिष्ठा का प्रतीक मानता है।
वियतनाम के हनोई शहर की मेट्रो के बाद, दिल्ली मेट्रो दुनिया की दूसरी सबसे ज़्यादा महंगी रेल सेवा है। सेंटर फॉर साइंस ऐंड एन्वायरन्मेंट, सीएसई की ताजा रिपोर्ट में ये चौंकाने वाला दावा किया गया है। इस अध्ययन में दुनिया के नौ महानगरों की मेट्रो सेवाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया गया था। हालांकि दिल्ली मेट्रो, रिपोर्ट से इत्तफाक नहीं रखती। उसका कहना है कि ये सीमित और सेलेक्टड अध्ययन था।
सीएसई की रिपोर्ट के मुताबिक, मझौली आय वाला मेट्रो पैसेंजर अपनी आय का 14 फीसदी दिल्ली मेट्रो में आवाजाही के लिए खर्च कर देता है। प्रतिदिन 534 रुपये की कमाई कर पाने वाला अकुशल दिहाड़ी मजदूर मेट्रो से आने जाने में 22 फीसदी रकम फूंक देता है। और मेट्रो बदलने, दोबारा चढ़ने की स्थिति में तो ये दर और बढ़ जाती है।
सीएसई की रिपोर्ट की खास बात ये है कि इसने मेट्रो किराये को मानव संसाधन विकास और देश के स्वास्थ्य सूचकांक से भी जोड़ा है। उसके मुताबिक सिंगापुर की तर्ज पर ये कुल कमाई का तीन से चार फीसदी किराया होता तो व्यक्ति हर रोज 60 रुपए बचा सकता था। इसका अर्थ ये हुआ कि हर रोज डेढ़ या दो लीटर दूध परिवार को रोज मुहैया हो पाता। महीने भर की बचत में प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना के तहत चार सदस्यों वाले परिवार के लिए प्रति साल दो लाख रुपये का बीमा भी हो जाता।
पिछले साल बढ़े किराए की वजह से दिल्ली मेट्रो में पैसेंजरों की आमद में भी करीब 32 प्रतिशत की गिरावट बताई गई है। आर्थिक बोझ का चौतरफा नुकसान दिख रहा है। दिल्ली जैसे अतिसंवेदनशील क्षेत्र में तो प्रदूषण की स्थिति बेहद चिंताजनक मानी जाती है। सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण ने मीडिया को बताया, 'शहरों में आवाजाही के लिए निजी वाहनों पर बढ़ती निर्भरता नुकसानदायक है। यातायात से होने वाले ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में अत्यधिक तेजी आई है। प्रदूषण से जहरीले पदार्थ स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहे हैं।'
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी महंगे होते मेट्रो सफर पर अफसोस जताया कि परिवहन का इतना महत्त्वपूर्ण साधन आम आदमी की पहुंच से दूर हो गया है। दिल्ली मेट्रो सेवा का संचालन करने वाली डीएमआरसी ने रिपोर्ट को अपर्याप्त और सेलेक्टड बताते हुए कहा कि इसकी तुलनाएं छोटे नेटवर्कों से की गई हैं।
लेकिन किराये में बढ़ोत्तरी को लेकर उसके पास कोई संतोषजनक जवाब नहीं है। बेशक तमाम किस्म के रखरखाव और मरम्मत और नये साजोसामान आदि का हवाला दिया जा रहा है लेकिन इसके लिए आम आदमी पर बोझ डालने के बजाय क्या ही अच्छा होता कि राजस्व वृद्धि के अन्य उपाय किए जाते। मेट्रो योजना लागू करते हुए जिस कल्पनाशीलता और प्रौद्योगिकीय समझ का परिचय दिया गया, उनका इस्तेमाल आमदनी बढ़ाने के स्रोत तलाशने में भी किया जा सकता है। वरना तो यह वास्तव में असाधारण वसूली की तरह है। फिर इस मेट्रो का जनपरिवहन से जुड़ा मानवीय उद्देश्य ही कहां पूरा हो रहा है। सीएसई की रिपोर्ट इन चिंताओं को भी रेखांकित करती है।
इसी बीच ये खबर भी आई है कि दिल्ली मेट्रो के किराए में अगले साल तक कोई बढ़ोतरी नहीं की जाएगी। केंद्रीय आवासीय और शहरी मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी के मुताबिक दिल्ली मेट्रो का राजस्व तेजी से बढ़ रहा है लिहाजा 2020 में किराया बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। बताया गया है कि 2014 से मेट्रो का प्रति किलोमीटर लाभ 74 प्रतिशत तक पहुंच गया है। सरकार का कहना है कि 12 साल के अंतराल पर 2017 में मेट्रो का किराया दोगुना किया गया था। सरकार का दावा है कि मेट्रो लाइनों में विस्तार, नई लाइनों की शुरुआत और किराये में बढ़ोतरी के बावजूद मेट्रो यात्रियों की इस समय 28 लाख की रोजाना की संख्या के बढ़कर 40 से 45 लाख तक हो जाएगी।
एनसीआर के इर्दगिर्द और पूरे देश में मेट्रो का विस्तार भी किया जा रहा है। इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि सार्वजनिक परिवहन लोगों की सुविधा के लिए होता है, गौरव के प्रतीक के रूप में नहीं। अगर उसके खर्च इतने हों कि लोग किराया न चुका सकें तो अर्थव्यवस्था में कुछ गड़बड़ है या कुछ लोग ये साबित करने को तुले हैं कि भारत को पब्लिक ट्रांसपोर्ट की जरूरत नहीं है।
रिपोर्ट शिवप्रसाद जोशी