रिपोर्ट : हारून जंजुआ (इस्लामाबाद से)
भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान में पत्रकार कठोर मीडिया कानूनों और एक ऐसी संस्कृति का सामना कर रहे हैं, जिसमें अपराधियों को सजा पाने का डर नहीं है। इसने सोशल मीडिया पर डराने-धमकाने और धमकियों का रास्ता खोल दिया है।
मीडिया पर नजर रखने वाली पाकिस्तानी और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के मुताबिक, पाकिस्तान में पत्रकार एक ऐसे माहौल में काम कर रहे हैं जहां उन्हें हर रोज सेंसरशिप, हिंसा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र के पत्रकारों के खिलाफ अपराधों के लिए सजाहीनता के खात्मे के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के मौके पर जारी पाकिस्तान प्रेस फाउंडेशन, पीपीएफ की एक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान में पत्रकारों को दमनकारी वातावरण का सामना करना पड़ रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑनलाइन काम करने वाले पत्रकार अक्सर नफरत, धमकियों और दुर्व्यवहार के शिकार होते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक कि पिछले एक साल में पत्रकारों को ऑनलाइन डराने-धमकाने का चलन जारी रहा है। न सिर्फ सरकारी लोग बल्कि निजी व्यक्ति भी कुछ मीडिया पेशेवरों और संगठनों के खिलाफ डराने और धमकाने की कार्रवाई करते रहे हैं। वहीं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए नियम बनाने पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है।
जून महीने में, पाकिस्तानी मीडिया विकास प्राधिकरण यानी पीएमडीए नामक एक सरकारी संस्था के लिए कानून के एक मसौदे का प्रस्ताव पेश किया गया था। इसके पास पाकिस्तान में मीडिया नियमन का एकमात्र अधिकार होगा। पत्रकारों के लिए काम करने वाली संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स, आरएसएफ का कहना है कि पीएमडीए को मनमाना निर्णय लेने का अधिकार मिल जाएगा जिसके खिलाफ अपील की संभावना भी नहीं रहेगी। संस्था ने इसकी तुलना 'सबसे खराब सत्तावादी शासन के विशिष्ट केंद्रीकृत सेंसरशिप कार्यालय' से की है।
पाकिस्तान के सूचना प्रौद्योगिकी और दूरसंचार मंत्रालय ने अक्टूबर में एक अन्य प्रस्ताव दिया है जिसे 'गैरकानूनी ऑनलाइन सामग्री को हटाना और अवरुद्ध करना' कहा जाता है। आरएसएफ ने आशंका जताई है कि यह प्रस्ताव अधिकारियों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट किए गए किसी भी प्रकार के संदेश को नियंत्रित करने और उसे सेंसर करने का अधिकार देगा। आरएसएफ के वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में पाकिस्तान 180 देशों में से 145वें स्थान पर है।
'असहमति को अपराध जैसा माना जाता है'
एमनेस्टी इंटरनेशनल की दक्षिण एशिया प्रचारक रिम्मेल मोहिदिन ने डीडब्ल्यू को बताया कि पाकिस्तान में मीडिया सरकारी अफसरों के 'संरचनात्मक हमले' का सामना कर रहा है। इसमें स्वतंत्र मीडिया घरानों, उनके विज्ञापनदाताओं, उनके मालिकों और एकल पत्रकारों पर दबाव डालना शामिल है।
मोहिदीन कहती हैं कि असहमति को लगातार अपराध की तरह माना जा रहा है। पत्रकारों को शारीरिक हिंसा और सेंसरशिप का सामना करना पड़ा है और अब पीएमडीए के वास्तव में अमल में आने की संभावना का सामना करना पड़ रहा है, जो पत्रकारिता की स्वतंत्रता को और कम करेगा।
प्रेस की आजादी पर इमरान खान सरकार का हमला?
आलोचकों का कहना है कि पाकिस्तान के सेंसरशिप अभियान और प्रेस की स्वतंत्रता पर हमलों में प्रधान मंत्री इमरान खान के कार्यकाल में तेजी आई है जिन्होंने ताकतवर रूढ़िवादी और धार्मिक तबकों को शांत करने की कोशिश की है। जुलाई में इमरान खान को आरएसएफ की 'रेड लिस्ट' में कई दूसरे राष्ट्राध्यक्षों के साथ चित्रित किया गया था, जिन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता पर शिकंजा कसा है।
वॉशिंगटन स्थित वुडरो विल्सन सेंटर फॉर स्कॉलर्स के दक्षिण एशिया विशेषज्ञ माइकल कुगेलमन कहते हैं कि पाकिस्तान निश्चित रूप से प्रेस की आजादी के लिए अच्छी जगह नहीं है। कुगेलमन कहते हैं कि पाकिस्तान में प्रेस पर कार्रवाई अक्सर गुप्त रूप से होती है। उनके मुताबिक कि पत्रकारों को धमकियां और चेतावनियां मिलती हैं, मीडिया घरानों को उनके विज्ञापनदाताओं को हटाकर दंडित किया जाता है और मीडिया कर्मियों को आत्म-सेंसर के लिए मजबूर किया जाता है।
इस्लामाबाद स्थित पत्रकार और प्रेस की आजादी के लिए काम करने वाली इस्मत जबीन ने डीडब्ल्यू को बताया कि पाकिस्तान जबरदस्त सेंसरशिप के अपने सबसे खराब दौर का सामना कर रहा है जो कि खुला और गुप्त दोनों है। जबीन कहती हैं कि यह सुरक्षा अनिवार्यता वाले राज्य की बढ़ती असहिष्णुता के अनुपात में है, जो किसी प्रकार की जांच नहीं चाहता। उनका कहना है कि मीडिया में असहमति को जगह देना सरकार के हित में नहीं है।
महिला पत्रकारों का ऑनलाइन उत्पीड़न
न्यूयॉर्क स्थित मीडिया वॉचडॉग कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान में महिला पत्रकारों का कहना है कि उन्हें लगातार ऑनलाइन धमकियां दी जा रही हैं, यहां तक कि बलात्कार तक की धमकी दी जाती है। एमनेस्टी इंटरनेशनल की मोहिदीन कहती हैं कि कई महिला पत्रकार उत्पीड़न से बचने के लिए खुद ही सेंसर कर रही हैं, या लेखों को ऑनलाइन पोस्ट करना पूरी तरह से बंद कर देती हैं।
मोहिदीन कहती हैं कि इनमें से कई पत्रकारों ने एमनेस्टी इंटरनेशनल को बताया है कि उन्हें अपने निजी सोशल मीडिया अकाउंट को निष्क्रिय करना पड़ा है। कुछ हमले अधिकारियों की ओर से भी होते हैं। अगर अधिकारी किसी पत्रकार के काम पर आपत्ति करते हैं तो उन्हें जवाब पाने का हक है, लेकिन उन्हें कभी भी किसी को उनके लिंग के आधार पर निशाना नहीं बनाना चाहिए या अभद्र भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
मोहिदीन आगे कहती हैं कि महिलाओं को लैंगिक भेदभाव से बचाने के लिए अधिकारियों की एक विशेष जिम्मेदारी है और उन्हें ऐसा करते हुए एक नजीर पेश करनी चाहिए। अपने खुद के व्यवहार से प्रदर्शित करना चाहिए कि पत्रकारों का सम्मान और संरक्षण क्यों किया जाना चाहिए और उनके समर्थकों या ट्रोल द्वारा शुरू किए गए हमलों को हतोत्साहित करना चाहिए।
ऑनलाइन मीडिया बोलने की आजादी की आखिरी जगह
पाकिस्तान में मुख्यधारा के मीडिया आउटलेट्स के नियंत्रण और अधिकारियों की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों के कारण, ऑनलाइन मीडिया अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए अपेक्षाकृत बेहतर विकल्प प्रदान करते हैं। विश्लेषक कुगेलमन कहते हैं, पाकिस्तान में सोशल मीडिया और व्यापक ऑनलाइन माध्यम वास्तव में उदार और प्रगतिशील विचारों के लिए एकमात्र जगह हैं और इसमें राज्य और विशेष रूप से सेना की आलोचना भी शामिल है।
कुगेलमन कहते हैं कि यह स्वाभाविक है कि राज्य ऑनलाइन असहमति पर नकेल कसना चाहेगा और एक अत्यधिक पितृसत्तात्मक और लैंगिक भेदभाव वाले देश में यह आश्चर्यजनक नहीं है कि महिला पत्रकारों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
पत्रकारों पर हमले के लिए सजा नहीं मिलती
पिछले छह महीनों में अकेले इस्लामाबाद में पत्रकारों के खिलाफ हिंसा की लगभग 30 घटनाएं हुईं लेकिन एक भी अपराधी को गिरफ्तार नहीं किया गया। जबीन कहती हैं कि पाकिस्तान में पत्रकारों और मीडियाकर्मियों के समुदाय को लगता है कि उनके लिए सुरक्षा पर विशेष कानूनों के बिना हमलावरों को सजा न मिलने के मामलों को कम नहीं किया जा सकता है। हमले होते रहते हैं क्योंकि हमलावरों को सजा नहीं मिलती है।
मोहिदिन की राय भी कुछ इसी तरह की है। उनके मुताबिक, समस्या में योगदान के लिए पत्रकारों के साथ जो होता है, उसके प्रति पाकिस्तानी समाज की सामान्य उदासीनता भी जिम्मेदार है। वो कहती हैं कि सार्थक कानून और उस पर अमल की कमी, पत्रकारों के साथ होने वाली घटनाओं पर उदासीनता, उनकी विश्वसनीयता पर संदेह पैदा करने वाले ऑनलाइन अभियान और एक गलत धारणा कि प्रेस देश के लिए एक खतरा पैदा करता है, यह सब मिलकर हमलावरों पर कार्रवाई को दुर्लभ बनाती है।