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Last Updated : सोमवार, 4 फ़रवरी 2019 (11:33 IST)

प्रकृति को खतरे में डाल रही है जड़ी बूटियों की बढ़ती मांग

प्रकृति को खतरे में डाल रही है जड़ी बूटियों की बढ़ती मांग | Herbs
दुनिया भर में वैकल्पिक उपचारों और परंपरागत दवाओं की मांग बढ़ रही है। अब ये चाहे आयुर्वेदिक हों या चीनी दवाएं। दक्षिण अफ्रीका में भी परंपरागत दवाओं की बढ़ती मांग प्रकृति को खतरे में डाल रही है।
 
 
दक्षिण अफ्रीकी चिकित्सा परंपरा में प्रकृति में पाई जाने वाली जड़ी बूटियों की बड़ी भूमिका है। आबादी बढ़ने के साथ उनकी मांग भी बढ़ रही है। दक्षिण अफ्रीका में जगह जगह इस तरह के परंपरागत बाजार है। सांगोमा कहे जाने वाले अफ्रीकी हकीम यहीं से अपनी जरूरत की चीजें खरीदते हैं। यहां पेड़ों की छाल, जड़ें, पत्ते या फिर पशु पक्षियों के अंग भी मिलते हैं। हकीमों का मानना है कि इन चीजों में औषधीय गुण हैं। हकीम मसला एत्सेनी का कुमालो बताते हैं, "हम इन जड़ी बूटियों का इस्तेमाल कई चीजों के लिए करते हैं, मसलन भूत भगाने के लिए या अच्छे भाग्य के लिए।"
 
 
लेकिन हकीमों को ये नहीं पता होता कि ये जड़ी बूटियां कहां से आती हैं और उन्हें कैसे और कहां उगाया जाता है। जानकारी की इस कमी के पीछे कई बुरे नतीजे छुपे हैं। शहरों और गांवों की मांग पूरी करने के लिए जड़ी बूटियों की अंधाधुंध तरीके से कटाई हो रही है। पेपरबार्क कही जाने वाली काली मिर्च के पेड़ ने इसकी कीमत चुकाई है। यह प्रजाति लुप्त होने के कगार पर है। सांगोमा पेपरबार्क की छाल खूब इस्तेमाल करते हैं। माना जाता है कि इससे जुकाम, निमोनिया समेत कुछ और बीमारियों का इलाज होता है। लेकिन छाल निकालने से पेड़ मर जाता है।
 
 
अब दक्षिण अफ्रीका के क्रूगर नेशनल पार्क में ही इस प्रजाति के कुछ पेड़ बचे हैं। उसके बाहर ये पेपरबार्क के पेड़ खत्म हो चुके हैं। रेंजर सिमोन चौके कहते हैं, "पेपरबार्क पेड़ को हमें बचाना होगा। तस्कर क्रूगर नेशनल पार्क में घुसते हैं और छाल उतारते हैं। वे टहनियां तोड़ते हैं और जड़ भी खोदते हैं। इससे वे काफी पैसा कमाते हैं।" क्रूगर नेशनल पार्क के भीतर स्कुकुजा नर्सरी में बड़ी मेहनत से पेपरबार्क ट्री की नई पौध तैयार की जा रही है।
 
मॉयरेल बालोयी और कारीन हानवेग कई बरसों से इस प्रोजेक्ट को मैनेज कर रहे हैं। प्राकृतिक रूप से इस पेड़ के बीज अब नहीं मिलते। फिलहाल यह एक रहस्य है कि ये पेड़ बीज क्यों नहीं पैदा कर पा रहे हैं। एग्रीकल्चर रिसर्च सेंटर की कारीन हानवेग बताती हैं, "पेपरबार्क ट्री जंगल में फल या बीज पैदा नहीं करता है। हम 700 किलोमीटर दूर से स्कुकुजा नर्सरी तक बीज लाने में सफल हुए है।" नर्सरी में पैदा किए जा रहे पौधों को स्थानीय समुदायों में बांटा जा रहा है। नर्सरी में तैयार 13 हजार नन्हें पौधे पार्क के आस पास के इलाके में रोपे जाएंगे।
 
 
लुइजे स्वेमर और रोजी माखुबेला पौधे को गांवों में ले जा रही हैं। वे वहां पेड़ों को लगाने और बचाने के तरीके पर वर्कशॉप भी आयोजित करती हैं ताकि स्थानीय समुदाय के लोग उनका इस्तेमाल कर सकें। पार्क की चौहद्दी पर करीब 10 लाख लोग रहते हैं। दवाओं के लिए वे परंपरागत हकीमों पर निर्भर हैं। तस्करी करने वाले इस आबादी में घुसे हुए हैं। रोजी खुद हकीम हैं, लेकिन वे लुइजे के साथ पेपरबार्क पेड़ों को बचाने के लिे नेशनल पार्क के साथ काम कर रही हैं ताकि भविष्य में जो चाहे उसे जड़ी बूटियां मिल सकें।
 
 
रिपोर्ट: हेनर फ्रांकेनफेल्ड
 
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