बेनामी संपत्ति पर कार्रवाई अच्छा कदम होगा, बशर्ते...
बेनामी संपत्ति के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जंग छेड़ने का ऐलान सबको छत देने का सपना पूरा कर सकता है। लेकिन सिर्फ भावना अच्छी होने से काम नहीं चलेगा, लागू भी सलीके से करना होगा।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेनामी संपत्तियों के खिलाफ जंग छेड़ने की बात कही है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम बदनाम प्रॉपर्टी सेक्टर में पारदर्शिता लाने में और बेतहाशा बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने में कारगर साबित हो सकता है, बशर्ते नए कानून को ठीक ढंग से लागू किया जाए।
भारत में बेनामी संपत्ति एक बहुत बड़ा घालमेल है। लोग अपने काले धन को ठिकाने लगाने के लिए किसी और के नाम से प्रॉपर्टी खरीद लेते हैं। इस तरह उनका काला धन भी छिप जाता है और वे प्रॉपर्टी टैक्स देने से भी बच जाते हैं। विशेषज्ञों का अनुमान है कि भारत में अरबों डॉलर की बेनामी संपत्तियां मौजूद हैं। बहुत सी संपत्तियां तो काल्पनिक नामों से खरीदी गई हैं। इस कारण सरकार को अरबों रुपये का नुकसान होता है। इस बारे में 1988 का एक कानून है जिसमें इसी साल संशोधन करके उसे सख्त बनाया गया। सजा भी बढ़ाई गई। अब बेनामी संपत्ति को जब्त किया जा सकता है। उसके बाजार भाव का एक चौथाई जुर्माना लग सकता है और दोषी पाए जाने पर जेल भी हो सकती है।
अपने "मन की बात" कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेनामी संपत्तियों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही थी। उन्होंने कहा, "हम दूसरों के नाम पर खरीदी गईं संपत्तियों पर कार्रवाई करने जा रहे हैं। यह देश की संपत्ति है। इस कानून का इस्तेमाल आने वाले दिनों में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में किया जाएगा।"
1988 के कानून के तहत जिन चीजों को संपत्ति में शामिल किया गया है उनमें जमीन और घर ही नहीं, सोना, शेयर और बैंक खाते भी हैं। मुंबई में प्रॉपर्टी मामलों के वकील विनोद संपत कहते हैं, "अगर कानून को सलीके से लागू किया जाता है तो रीयल एस्टेट सेक्टर में ज्यादा पारदर्शिता होगी। भ्रष्टाचार कम होगा। और कीमतों में भी सुधार हो सकता है।" लेकिन वह कहते हैं कि बेनामी संपत्तियों की निगरानी आसान काम नहीं है और कानून लागू करने में भारत सरकार का रिकॉर्ड भी कोई अच्छा नहीं है। संपत कहते हैं, "भावना तो अच्छी है लेकिन देखना ये है कि कानून लागू कैसे किया जाता है।"
भारत में लोगों को आज भी रहने को ठीक ढंग की जगह मुहैया नहीं है। दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में लोग झुग्गी-झोपड़ियों में नारकीय हालात में रहते हैं। वहां से उन्हें लगातार खदेड़ा जाता है। देश की सवा अरब आबादी का एक तिहाई हिस्सा शहरों में रहता है। और शहरी आबादी लगातार और बहुत तेजी से बढ़ रही है क्योंकि बेहतर जिंदगी की तलाश में लाखों के हिसाब से लोग रोजाना गांव छोड़ रहे हैं।
भारत सरकार ने 2022 तक सभी को छत देने का वादा किया है। इसके तहत शहरों में दो करोड़ और गांवों में 3 करोड़ नए घर बनाए जाने हैं। लेकिन इसकी रफ्तार बेहद धीमी है जिस कारण लोगों को संदेह है कि यह योजना समय से पूरी हो पाएगी। ऐसे में बेनामी संपत्तियों पर कार्रवाई हालात को सुधार सकती है। रीयल एस्टेट फर्म जोन्स लैंग लासेल इंडिया के चेयरमैन अनुज पुरी कहते हैं कि इससे सबको छत दिलाने का वादा पूरा करने की रफ्तार बढ़ सकती है। वह कहते हैं, "जब संपत्ति का मालिकाना हक स्पष्ट होगा और लेन-देन पारदर्शी होगा तो लोगों का भरोसा बढ़ेगा। इससे खरीदारी में भी बढ़ोतरी होगी और घरों की सप्लाई भी बढ़ेगी।"
- वीके/एके (रॉयटर्स)