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Written By नृपेंद्र गुप्ता

अलविदा 2015 : सोणा नहीं रहा सोना, चांदी की चमक भी फीकी

अलविदा 2015 : सोणा नहीं रहा सोना, चांदी की चमक भी फीकी - Gold-Silver in 2015
2014 की तरह ही 2015 में भी सोने-चांदी की चमक फीकी रही। इस बार न तो सोना निवेशकों की पहली पसंद रहा और न महिलाओं ने इसे गहनों के रूप में ज्यादा पसंद किया। देखते ही देखते यह 5 साल के निम्नतम स्तर पर पहुंच गया। चांदी का हाल और बेहाल ही रहा और यह धातु भी पूरे साल अपनी चमक बरकरार रखने में विफल रही।
 
रुपए की विनिमय दर में उतार-चढ़ाव और अमेरिका में ब्याज दरों में वृद्धि को लेकर अनिश्चितता की वजह से सोना पूरे साल ऊपर-नीचे होता रहा है। चीन की अर्थव्यवस्था में सुस्ती ने भी सोने-चांदी पर असर डाला। साथ ही कमजोर घरेलू मांग और वैश्विक खपत में कमी से भी सोने को लेकर धारणा प्रभावित हुई। 
 
अब भारतीय भी नहीं मानते सोने को सुरक्षित निवेश : सोने और चांदी में उतार-चढ़ाव कोई नई बात नहीं है, लेकिन जिस तरह से लोगों का इनसे मोहभंग हो रहा है यह चिंता की बात जरूर है। भारत में दोनों को ही सुरक्षित निवेश माना जाता था। खासकर सोने के बारे में यह धारणा थी कि गहने बनवा लो, मुसीबत के समय काम आएंगे लेकिन लगातार बढ़ती महंगाई और दोनों धातुओं के गिरते दामों ने इनकी साख को बुरी तरह प्रभावित किया।

ब्रांड मोदी भी नहीं जगा सके सोने में रुचि : प्रधानमंत्री मोदी भी सोने की गिरती साख को लेकर चिंतित हैं और उन्होंने इस साल नवंबर में स्वर्ण मौद्रीकरण योजना, सोवरेन गोल्ड बांड योजना और अशोक चक्र वाले सोने सिक्के लांच कर लोगों में इसके गिरते रुझान को थामने का प्रयास किया। सरकार ने मंदिरों और घरों में बेकार पड़े 20 हजार टन सोने को काम में लाने के उद्देश्य से यह योजनाएं शुरू की। हालांकि ये योजनाएं बुरी तरह विफल साबित हुईं। सरकारी खरीद बॉन्ड योजना के माध्यम से मात्र 150 करोड़ रुपए ही जुटाए जा सके। स्वर्ण मौद्रीकरण योजना के तहत साईं बाबा ट्रस्ट ने 200 किलो और सिद्धि विनायक मंदिर ने 40 किलो सोना बैंक में जमा करवाने की बात कही। इससे पहले वर्ष 1999 में भी इसी तरह की एक योजना लागू की गई थी, जो बुरी तरह फ्लॉप रही थी और मात्र 15 टन सोना ही जमा हो सका था।
 
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33 हजार पर पहुंच गई 75 हजारी चांदी : चांदी की चमक भी लगातार फीकी होती जा रही है। 2011 में 75 हजार रुपए प्रति किलो के भाव पर चांदी में निवेश करने वालों की तो लुटिया ही डूब गई। देखते ही देखते तीन सालों में यह 33 हजार के स्तर पर पहुंच गई। अभी भी इसमें उठाव की बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं है। साल की शुरुआत में जो चांदी 37,200 रुपए थी, दिसबंर के अंत तक घटकर 34,300 रुपए प्रति किलोग्राम पर आ गई। 
 
सोने ने भी देखा पांच साल का निम्नतम स्तर : वैश्विक स्तर पर न्यूयॉर्क में 23 नवंबर के कारोबार में सोना 1,051.60 डॉलर प्रति औंस तक गिर गया था जो फरवरी 2010 के बाद का निम्नतम स्तर था। वहीं भारतीय बाजार में इस साल जनवरी में सोने की कीमत 26700 रुपए प्रति 10 ग्राम थी, अगस्त में 24562 रुपए के सबसे निचले स्तर तक आई। साल के अंत में 25,500 रुपए प्रति दस ग्राम पर रहा। हालांकि सोना की स्थिति चांदी के मुकाबले कुछ बेहतर है लेकिन फिर भी इसमें निवेश करने वालों के लिए पांच साल बाद भी यह फायदे का सौदा साबित नहीं हुआ है। 
 
आयात : वर्ष के ज्यादातर समय में सोने के आयात पर अंकुश लगाने के उपाय जारी रहे। भारत जनवरी-सितंबर, 2015 में पहले ही 850 टन सोने का आयात कर चुका है, जबकि पिछले साल के प्रथम नौ महीनों में सोने का आयात 650 टन था। इस वर्ष यह 1000 टन पहुंचने की संभावना है। केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड ने सोने का आयात शुल्क मूल्य 354 डॉलर से 10 डॉलर घटाकर 344 डॉलर प्रति दस ग्राम कर दिया है। चांदी का आयात शुल्क मूल्य भी नौ डॉलर कम किया गया है। अब यह 470 डॉलर से घटकर 461 डॉलर प्रति किलोग्राम रह गया है। साल की शुरुआत में यह 392 डॉलर प्रति 10 ग्राम था जबकि चांदी का आयात मूल्य 519 डॉलर प्रति किलो कर दिया। 
 
हालांकि वर्तमान स्थिति भले ही सोने-चांदी के पक्ष में नहीं हो पर पूर्व इतिहास को देखते हुए उम्मीद है कि 2016 में दोनों बेशकीमती धातुओं के दिन फिरेंगे और एक बार फिर यह सबके दिलों पर राज करेगी।