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Written By WD

स्वास्थ्य पर 'हार्ड' होते हैं 'सॉफ्ट' ड्रिंक्स...

स्वास्थ्य पर ''हार्ड'' होते हैं ''सॉफ्ट'' ड्रिंक्स... -
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आजकल लोग देश में स्वास्थ्यकर पेय पदार्थ जैसे पानी और दूध के स्थान पर सॉफ्ट ड्रिंक्स लेना पसंद करते हैं। इन्हें‍ हिंदी में शीतल पेय कहा जाता है और इन्हें कई नामों से जाना जाता है। इन्हें सोडा, पॉप, कोक, सोडा पॉप, फिजी ड्रिंक, टॉनिक, सेल्जर, मिनरल, स्पार्कलिंग वाटर, लॉली वाटर या कार्बोनेटेड पेय के नाम से भी जाना जाता है।

इनमें से ज्यादातर में पानी होता है जो कि कार्बोनेटेड भी होता है, स्वीट्‍नर और आम तौर पर एक फ्लेवरिंग एजेंट भी शामिल होता है। स्वीट्‍नर के नाम पर शकर, हाई-फ्रक्टोज कॉर्न सीरप, फ्रूट जूस या शकर के विकल्प भी शामिल हो सकते हैं। इनमें कैफीन, कलरिंग्स (रंग पैदा करने वाले एजेंट), प्रिजरवेटिरव्स (इसे खराब होने से रोकने वाले तत्व) और अन्य सामग्री शामिल हो सकती है।

सॉफ्ट ड्रिंक्स को सॉफ्ट इसलिए कहा जाता है कि यह हार्ड ड्रिंक्स (अल्कोहल पेयों) से अलग होते हैं। हालांकि इनमें भी अल्कोहल की थोड़ी-सी मात्रा हो सकती है, लेकिन यह मात्रा कुल मात्रा की 0.5 फीसदी से भी कम होती है। पर जो गैर-अल्कोहलिक पेय होते हैं, उनमें फ्रूट जूस, चाय और ऐसे ही गैर-अल्कोहल वाले पेयों की गिनती होती है।

पीने में मजा आता है, लेकिन....पढ़ें अगले पेज पर...


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ये पेय पीने में तो सुखद लगते हैं, लेकिन नियमित तौर पर इनका सेवन बहुत सारी परेशानियों को जन्म देता है। इनमें से प्रमुख समस्या डिडाइड्रेशन (शरीर में पानी की कमी) है। आपके समूचे शरीर के भार का करीब 60 फीसद भाग पानी होता है। प्रतिदिन पेशाब करने, सांस लेने और पसीने के तौर हमारे शरीर का पानी बाहर निकलता है। यह शरीर को सुचारु रूप से सक्रिय बनाए रखने के लिए जरूरी होता है कि शरीर में पानी की पर्याप्त मात्रा रहे।

इसके लिए डॉक्टर्स अधिकाधिक पानी पीने की सलाह देते हैं, लेकिन अगर पानी के स्थान पर शीतल पेयों का सहायता ली जाती है तो शरीर में पानी की पर्याप्त आपूर्ति (हाइड्रेशन) नहीं होती है। इसका प्रमुख कारण यह होता है कि सॉफ्ट ड्रिंक्स में शकर और कैफीन की मात्रा अधिक होती है। यह शरीर में पानी की कमी को बढ़ाते हैं।

नियमित तौर पर सॉफ्ट ड्रिंक्स, जो कि डाइट सॉफ्ट ड्रिंक्स की तरह से नहीं बेचे जाते हैं, उनमें शकर की बहुत अधिक मात्रा होती है। विचिता स्टेट यूनिवर्सिटी का कहना है कि कोला की एक कैन में 39 ग्राम शकर होती है, जिसका अर्थ है कि यह शकर की 3.3 भरे चम्मच के बराबर होती है। इतनी अधिक मात्रा में शकर से शरीर में ब्लड ग्लूकोज का स्तर बहुत बढ़ सकता है। इससे जहां अतिरिक्त कैलोरीज मिलती हैं, वहीं पर मधुमेह (डायबिटीज) पैदा होने का भी खतरा पैदा होता है।

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अमेरिकी क‍ृषि विभाग ने अमेरिकियों को वर्ष 2005 में जो आहार संबंधी दिशानिर्देश जारी किए थे, उनमें कहा गया था कि एक औसत वयस्क आदमी प्रतिदिन 1800 से लेकर 2500 कैलोरीज का उपभोग करता है लेकिन यह उसके लिंग और काम पर भी निर्भर करता है। इसका अर्थ है कि दैनिक पोषाहरों की जरूरतों को पूरा करने के लिए आपको स्वीकार्य मात्रा में विटामिन्स और मिनरल्स लेने चाहिए। यानी आपको ऐसा आहार लेना चाहिए जिसमें कैलोरीज कम से कम हों लेकिन पोषक पदार्थ सर्वाधिक हों।

कोला की एक औसत कैन आपको 140 कैलोरीज देता है, जबकि इसकी तुलना में पानी कोई पोषाहर नहीं देता लेकिन आपकी कैलोरीज की मात्रा बढ़ा देता है। लेकिन ज्यादातर मामलों में ‍इसे निरापद माना जाता है।

पश्चिमी देशों में सत्रहवीं सदी से सॉफ्ट ड्रिंक्स का उपयोग होता रहा है, लेकिन समय के साथ-साथ इसके रूप, रंग और बनाने तथा बिक्री के तरीकों में परिवर्तन आया है। आम तौर पर सॉफ्ट ड्रिंक्स पानी के साथ सूखी सामग्रियों और या ताजी सामग्रियों जैसे नीबू, संतरों के रसों से बनाए जाते हैं। इन्हें छोटे तौर पर घर में और बड़े पैमाने पर फैक्ट्रियों में बनाया जाता है। घरों में इन्हें बनाने के लिए कार्बोनेटेड पानी के साथ सूखी सामग्रियों या सीरप मिलाया जाता है।

शीतल पेय में अल्कोहल...पढ़ें अगले पेज पर....


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कार्बोनेटेड पानी बनाने के लिए एक सोडा साइफन, होम कार्बोनेशन सिस्टम का प्रयोग किया जाता है या फिर पानी में ड्राइ आइस को डाला जाता है। सीरप या रसों का उत्पादन कं‍पनियों द्वारा किया जाता है जैसे अमेरिका में सोडा क्लब करती है। सूखी सामग्री का उत्पादन आमतौर पर छोटे थैलों (पाउचेज) में किया जाता है। लो‍कप्रिय अमेरिकी ड्रिंक मिक्स कूल-एड इसी तरह बेचा जाता है। जिंजर एली और रूट बीयर को अक्सर ही खमीर उठाकर कार्बोनेटेड बनाया जाता है। पर अब इन पेय पदार्थों में अल्कोहल की मात्रा बढ़ने लगी है।

अक्टूबर 2006 की एक रिपोर्ट के अनुसार कुछ सॉफ्ट ड्रिंक्स में अल्कोहल की मात्रा पाई गई, लेकिन इसे बहुत कम मात्रा में सीमित रखा जाता है। पुराने तरीकों का उपयोग करने पर कार्बोनेशन के लिए कुदरती फरमेंटेशन की मदद ली जाती है। अमेरिका में सॉफ्ट ड्रिंक्स में इसकी मात्रा के अनुसार केवल 0.5 फीसद तक अल्कोहल रखा जा सकता है।

आधुनिक ड्रिंक्स में कार्बोनेशन के लिए कार्बन डाईआक्साइड का उपयोग किया जाता है। इनमें अल्कोहल का इसलिए इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि इनकी मदद से फ्लेवर देने वाले सत्त जैसी वनीला सत्त बनाया जाता है।

क्या हैं सॉफ्ट ड्रिंक्स के दुष्प्रभाव....पढ़ें अगले पेज पर...


सॉफ्ट ड्रिंक्स के दुष्प्रभाव : शकर की मदद से मीठा बनाए गए सॉफ्ट ड्रिंक्स से कई बीमारियां होने का खतरा बना रहता है। वैज्ञानिक परीक्षणों के अनुसार सॉफ्ट ड्रिंक्स से मोटापा बढ़ने, टाइप टू की मधुमेह (डायबिटीज), दांतों का क्षय तो होता ही है, इसी के साथ इनके उपयोग से लोगों के शरीर में पोषक तत्वों का स्तर बहुत कम हो जाता है।

कुछेक परीक्षणों में इन निष्कर्षों को चुनौती भी दी गई है लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि शकर से मीठे बनाए गए पेयों में इस तरह के ड्रिंक्स शामिल हैं जिनमें हाई फ्रक्टोज कॉर्न सीरप का भी इस्तेमाल किया जाता है। इसके साथ ही, सुक्रोज का भी इस्तेमाल होता है।

बह‍ुत से सॉफ्ट ड्रिंक्स में कुछ ऐसे तत्व भी शामिल होते हैं जिनकी मौजूदगी चिंता का विषय है। इनमें कैफीन होती हैं जिसके अधिकता में शरीर में पहुंचने पर बेचैनी पैदा होती है और नींद में बाधा पहुंचती है। इसी सिलसिले में यूनिवर्सिटी ऑफ शेफील्ड के शोधकर्ताओं का कहना है कि इनमें सोडियम बेंजोएट पाया जाता है जोकि डीएनए को नुकसान पहुंचाने का काम कर सकता है और लोगों को अतिसक्रियता का शिकार बना सकता है। इनके अलावा कई अन्य पदार्थ भी पाए जाते हैं जोकि स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डालते हैं, लेकिन इनका तब तक असर तभी होता है ‍जब ये बहुत अधिक मात्रा में शरीर में पहुंचते हों।

वर्ष 1998 में सेंटर फॉर साइंस इन द पब्लिक इंट्रेस्ट ने एक रिपोर्ट प्रकाशित कराई थी जिसका शीर्षक था- 'लिक्विड कैंडी : हाउ सॉफ्ट ड्रिंक्स आर हार्मिंग अमेरिकन हेल्थ'। इस रिपोर्ट में उन आंकड़ों का परीक्षण किया गया जिनसे साबित होता था कि सॉफ्ट ड्रिंक उपयोग में बढ़ोतरी हो रही है और इससे स्वास्थ्य पर क्या नकारात्मक असर पड़ रहा है और कौन सी स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो रही हैं। इनमें सबसे बड़ी समस्या मोटापा और बजन से संबंधित बीमारियां रही हैं। वर्ष 1977 से 2002 के दौरान मीठे पेय पदार्थों का उपभोग दोगुना हो गया। इसी अनुपात से देश में मोटापे की समस्या बढ़ी।

सॉफ्ट ड्रिंक्स से बढ़ता है मोटापा... पढ़ें अगले पेज पर....


548 स्कूली छात्रों का 19 से अधिक महीनों तक एक अध्ययन किया और इसके दौरान पाया गया कि सॉफ्‍ट ड्रिंक उपभोग से छात्रों का बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) बढ़ गया। सॉफ्ट ड्रिंक की प्रत्येक बोतल या कैन का जिस लड़की या लड़के ने उपयोग किया, उसके बीएमआई में 0.25 /एम2 की बढ़त देखी गई।

एक ऐसा ही सर्वे 8 वर्षों तक 50 हजार महिलाओं पर किया गया। इनकी तुलना ऐसी महिलाओं से की गई जोकि एक दिन में 1 से ज्यादा कैन सॉफ्ट ड्रिंक्स पीती रहीं। जबकि कुछ महिलाओं ने किसी प्रकार का कोई सॉफ्ट ड्रिंक्स नहीं लिया। जिन महिलाओं ने अध्ययन के दौरान सॉफ्ट ड्रिंक्स के अपने उपभोग को बढ़ाया उनके बजन में आठ किलोग्राम बजन बढ़ा लेकिन जिनका उपभोग सीमित था, उनके बजन में मा‍त्र 2.8 किग्रा की बढ़त देखी गई। ऐसे अध्ययनों से यह बात साबित हुई कि प्रति दिन उपभोग की गई सॉफ्ट ड्रिंक्स की मात्रा के एक निश्चित अनुपात में लोगों का वजन बढ़ा।

बहुत सारे परीक्षणों के दौरान देखा गया कि शकर से मीठा बनाए गए सॉफ्ट ड्रिंक्स के असर से बच्चों और किशोरों में मोटापा बढ़ता है। एक शैक्षिक कार्यक्रम के दौरान बच्चों को कम से कम सॉफ्ट ड्रिंक्स लेने को प्रोत्साहित कर दिया गया। स्कूल वर्ष के दौरान बच्चों में मोटापे में 0.2 फीसद की कमी हुई जबकि जिन बच्चों में सॉफ्ट ड्रिंक्स को बहुत सीमित कर दिया गया, उनमें मोटापे में कमी 7.5 फीसद थी।

इसी तरह 2 वर्ष से 5 वर्ष के बच्चों को अगर नियमित तौर पर सॉफ्ट ड्रिंक्स को पीने दिया गया तो उनके मोटापे की संभावना 43 फीसद अधिक बढ़ गई। बच्चों की तरह वयस्कों में सॉफ्ट ड्रिंक्स के उपयोग से बजन बढ़ने की समस्या देखी गई। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन्स की एपीडर्मियोलॉजी और प्रीवेंशन, न्यूट्रीशन, फिजिकल एक्टिविटी और मेटाबॉलिज्स 2013 के वैज्ञानिक सत्रों में पेश किए गए शोध पत्रों में कहा गया है कि शकर आधारित मीठे पेय पदार्थों से प्रति वर्ष सारी दुनिया में 180,000 मौतें होती हैं।

अगले पेज पर देखिए...सॉफ्ट ड्रिंक्स से मौतों का आंकड़ा....


सॉफ्ट ड्रिंक्स से लाखों मौतें : सोडा या कोल्ड ड्रिंक कितना खतरनाक हो सकता है, इसका अंदाजा एक स्टडी के नतीजों से लगाया जा सकता है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में पता चला है कि हर साल दुनिया में लगभग एक लाख 80 हजार मौतें कोल्ड ड्रिंक्स की वजह से होती हैं।

अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के 2013 के साइंटिफिक सेशन में पेश की गई इस स्टडी में बताया गया है कि शुगर से भरपूर इन कोल्ड ड्रिंक्स को पीने से वजन बहुत ज्यादा बढ़ता है। डायबिटीज का खतरा पैदा होता है। दिल के रोगों की संभावना बढ़ती है और कुछ मामले कैंसर के भी देखे गए हैं।

स्टडी के लिए आंकड़े 2010 के ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी के तहत जमा किए गए थे। रिसर्चर्स कोल्ड ड्रिंक्स को सीधे-सीधे जिन मौतों से जोड़कर देखते हैं, उनमें डायबिटीज से एक लाख 33 हजार मौतें, हृदय रोगों से 44 हजार मौतें और कैंसर से 6 हजार मौतें हुई हैं। इनमें से 70 फीसदी मौतें इन शुगर भरपूर कोल्ड ड्रिंक्स की बहुत ज्यादा मात्रा लेने की वजह से मध्यम आयवर्ग वाले देशों में हुई हैं, न कि अमीर देशों में।

कोलेस्ट्रोल पर क्या असर होता है इसका...पढ़ें अगले पेज पर...


सबसे ज्यादा आबादी वाले 15 देशों में से कोल्ड ड्रिंक्स का पर कैपिटा उपभोग सबसे ज्यादा मेक्सिको में है और सबसे कम जापान में। इसलिए सबसे ज्यादा मौतें मेक्सिको में हुईं जबकि सबसे कम जापान में।

और जहां तक शीतल पेय यानी कि बोतल बंद कोल्ड ड्रिंक्स की बात है तो कोल्ड ड्रिंक जीवन के लिए कोई अपरिहार्य पदार्थ नहीं है। कोई अपने स्वार्थ में अंधा होकर लाख दावे करे तो भी कोल्ड ड्रिंक या पैक्ड पेय चाहे जिस रूप में भी हो, निरापद नहीं हो सकता है। कोल्ड, सॉफ्ट ड्रिंक इसके विषय में अनेक अनुसंधान किए गए हैं, जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि रोजाना सॉफ्ट ड्रिंक्स, अन्य मीठी कोल्ड ड्रिंक्स लेने वालों के शरीर में ख़तरनाक फैट और प्रोटीन्स काफ़ी बढ़ जाती है।

इससे अच्छे कॉलोस्ट्रॉल की मात्रा घट जाती है। इसके साथ एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि एक्सररसाइज़ जैसे फॅक्टर्स से भी इसमें फ़र्क नहीं पड़ता है। कुछ डॉक्टर्स का कहना है कि 50 मिलीलीटर कोल्ड ड्रिंक्स का मतलब 50 कैलोरी अतिरिक्त उर्जा, और ज़्यादा कैलोरी लेने का का मतलब मोटापा बढ़ना। यह भी बताया गया है कि अमेरिका में कोका कोला और पेप्सी को कोल्ड ड्रिंक्स का कंटेंट बदलना पड़ा है, ताकि उन्हें बोतलों पर कैन्सर की वॉर्निंग न छापनी पड़े।

...और किडनी पर क्या असर होता है... पढ़ें अगले पेज पर...







शीतल पेय से बढ़े किडनी स्टोन के मामले : ठंडे पेय को पानी का विकल्प बना देने के कारण युवाओं में किडनी स्टोन के मामलों में खतरनाक बढ़त देखी जा रही है। कम पानी पीने के अलावा फैट और कार्बोहाइड्रेट युक्त आहार प्रमुखता से लेने के कारण भी स्टोन की समस्या बढ़ी है। विशेषज्ञों के अनुसार, किडनी स्टोन के 30 प्रतिशत मरीजों की आयु 25 से 35 के बीच है। आजकल किशोरों और युवाओं में खाने के साथ सॉफ्ट ड्रिंक लेने का चलन बढ़ा है।

विशेषज्ञों के अनुसार, यह चलन स्वास्थ्य पर भारी पड़ रहा है। उनके अनुसार, इस तरह की जीवनशैली के कारण लोगों में कम उम्र में ही किडनी स्टोन की समस्या बढ़ रही है। सूखे मेवे, चॉकलेट और जंक फूड का उपयोग समस्या को और गंभीर रूप दे रहा है।

हालाकि, किडनी में स्टोन बनने का कोई स्थायी नुकसान नहीं होता है, लेकिन कुछ वक्त के लिए कार्यक्षमता पर खासा असर पड़ता है, खासतौर पर घर से दूर रहने वाले युवाओं पर। पर्याप्त पानी पीना, हरी सब्जियां और दूध लेना व जंक फूड खाने से बचना इसकी रोकथाम के उपाय हैं।

क्या है किडनी स्टोन... पढ़ें अगले पेज पर...


यह किडनी के भीतर कैल्शियम ऑक्जलेट नामक पदार्थ का कड़ा जमाव है। इसके कारण पसली के नीचे व किनारे की ओर तेज दर्द होता है। दर्द रुक-रुककर और घटता-बढ़ता रहता है। पेशाब करने में दर्द, उल्टियां या जी मिचलाना जैसे लक्षण सामान्यत: दिखाई पड़ते हैं।

वैसे तो खाने के बीच पानी भी कम से कम पीना चाहिए, जबकि युवा शीतल पेय का अधिक उपयोग कर रहे हैं। वहीं वे दिनभर में आवश्यकता से भी कम पानी का सेवन कर रहे हैं। इस वजह से शरीर के भीतर ऑक्जलेट स्टोन बनने लगा है, जो किडनी स्टोन का कारण है। इसके अलावा प्रोटीनयुक्त आहार अधिक मात्रा में लेने पर शरीर से यूरिक एसिड का स्त्राव अधिक होता है जो इसका कारण बनता है। कम पानी, ठंडा पेय, अधिकाधिक प्रोटीनयुक्त आहार, जंक फूड, सोया सॉस जैसे खानपान को अपनाने के कारण 25 से 35 के बीच के मरीज ज्यादा आ रहे हैं।

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बहुत सारे गुप्त दुश्मन : शोध के अनुसार सॉफ्ट ड्रिंक में हेल्थ के बहुत सारे गुप्त दुश्मन छुपे होते हैं। सॉफ्ट ड्रिंक या इस तरह के किसी भी शुगर वाले ड्रिंक के बहुत से साइड इफेक्ट भी हैं। इसके ज्यादा इस्तेमाल से न केवल मोटापा और डायब‍िटीज की समस्या होती है, बल्कि बहुत से लोगों में दिल की परेशानी भी शुरू हो जाती है।

ड्रिंक में मिला एक्स्ट्रा शुगर, कैफीन और कलर कई तरह से हेल्थ को नुकसान पहुंचाते हैं। एक्स्ट्रा शुगर जहां मोटापे और डायब‍िटीज की समस्या देता है, वहीं ड्रिंक में मिला कैफीन हड्डियों को कमजोर करता है। इससे इम्यून सिस्टम कमजोर होता है और इससे कई तरह के दिल के रोग भी हो रहे हैं।

हर तरह के सॉफ्ट ड्रिंक में शुगर की अतिरिक्त मात्रा मिली होती है। बार-बार इसे पीने से शरीर में शुगर की मात्रा बढ़ने लगती है। इससे पैंक्रियाज द्वारा ज्यादा इंसुलिन का स्राव ज्यादा होने लगता है। यह इंसुलिन बॉडी के लिए काफी महत्वपूर्ण रोल अदा करता है और शुगर को शरीर के दूसरे हिस्सों तक पहुंचाता है। जहां इसे एनर्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन समस्या तब होने लगती है, जब इंसुलिन का लेवल नॉर्मल से ज्यादा होने लगता है। इससे शरीर के इम्यून सिस्टम पर असर पड़ने लगता है। कभी-कभी डिप्रेशन की भी समस्या आती है।

रोगों से लड़ने की क्षमता भी कम हो जाती है। दूसरे ज्यादा शुगर से चर्बी की मात्रा बढ़ने लगती है और एनर्जी भी ज्यादा स्टोर होने लगती है। ऐसा लगातार होने पर मोटापे की समस्या शुरू हो जाती है। दूसरे ज्यादा शुगर से डायब‍िटीज भी हो सकता है। इन दोनों ही स्थितियों में बड़ी समस्या दिल संबंधी परेशानियों की शुरू हो जाती हैं।

हडिड्‍यों पर क्या असर डालता है कैफीन...पढ़ें अगले पेज पर...





सॉफ्ट ड्रिंक में कैफीन भी होती है। इसका साइड इफेक्ट यह होता है कि ज्यादा कैफीन से शरीर में कैल्शियम नष्ट होने लगता है। ड्रिंक में सोडा मिला होता है। यही कार्बोनेशन ही कैल्शियम को नष्ट करने का मुख्य कारण है। कैल्शियम का लेवल कम होने से हड्डियों और मसल्स कमजोर होने लगते हैं और यह कभी-कभी पूरी उम्र की समस्या बन जाती है।

प्रोस्टेट कैंसर का भी खतरा : प्रतिदिन कोल्ड ड्रिंक्स की सिर्फ एक बोतल का सेवन भी प्रोस्टेट कैंसर का खतरा बढ़ा सकता है। करीब 15 साल के शोध के बाद स्वीडन के शोधकर्ताओं ने यह दावा किया है। शोध में पाया गया कि प्रतिदिन 300 मिलीलीटर कोल्ड ड्रिंक्स पीने वालों में प्रोस्टेट कैंसर का खतरा उनके मुकाबले 40 फीसद बढ़ जाता है, जो इसका सेवन नहीं करते।

डेली मेल के मुताबिक सबसे ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि शुरुआती दौर में इसका पता नहीं चल पाता। क्लीनिकल न्यूट्रीशन के अमेरिकी जर्नल में प्रकाशित शोध में पहली बार कोल्ड ड्रिंक्स को प्रोस्टेट कैंसर से जोड़ा गया है। इससे पहले शोधकर्ताओं ने दिल के दौरे, मधुमेह, वजन वृद्धि, हड्डियों और नसों के कमजोर होने और पैरालाइसिस (लकवे) संबंधी खतरों के बारे में बताया गया था। 45 से 73 वर्ष के करीब 8 हजार लोगों पर यह शोध किया गया। शोध की शुरआत में तंदुरुस्त व्यक्तियों से उनके खानपान की इच्छा के बारे में पूछा गया था। करीब 15 वर्ष के बाद इसका विश्लेषण किया गया।

बच्चों को हृदयरोग का खतरा : एक नए शोध में यह बात सामने आई है कि जो बच्चे सॉफ्टड्रिंक्स का अधिक सेवन करते हैं उनको हृदय रोग होने का खतरा कहीं ज्यादा होता है।

सिडनी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक शोध किया है जिसमें 12 साल के दो हजार बच्चों ने भाग लिया है। इस अध्ययन में दावा किया गया है कि जो बच्चे एक दिन में एक या इससे अधिक सॉफ्ट ड्रिंक पीते हैं उनकी धमनियां पतली पड़ जाती हैं। धमनी पतली होने से हृदय रोग व रक्तचाप का खतरा बढ़ जाता है।

वेस्टमीड मिलेनियम संस्थान द्वारा किए गए शोध में बच्चों ने जमकर भाग लिया। संस्थान के शोधकर्ता बामिनी गोपीनाथ ने कहा कि इससे लोग स्वस्थ्य आहार पर ज्यादा जोर देंगे।

सॉफ्ट ड्रिंक्स यानी मौत का ‍बुलावा, कैसे... पढ़ें अगले पेज पर...



सॉफ्ट ड्रिंक्स यानी मौत को बुलावा : यह बात एक बार फिर साबित हुई है कि सॉफ्ट ड्रिंक्स इंसान की सेहत पर बहुत बुरा असर डालते हैं। अमेरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा द्वारा बड़े पैमाने पर कराए गए शोध से पता चला है कि हफ्ते में कार्बोनेटेड सॉफ्ट ड्रिंक्स की दो या उससे ज्यादा बोतलें पीने वालों में पैंक्रिएटिक कैंसर होने की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। सबसे खतरनाक कैंसरों में गिने जाने वाले पैंक्रिएटिक कैंसर से सिर्फ अमेरिका में ही हर साल 34 हजार से ज्यादा लोग मरते हैं।

शोध में शामिल 60 हजार से ज्यादा लोगों में से 140 इस तरह के कैंसर की चपेट में आ गए। प्रतिशत के लिहाज से कैंसर की गिरफ्त में आए लोगों का यह आंकड़ा भले ही बहुत बड़ा न लगे, पर ध्यान रखना होगा कि 14 साल के अरसे में यह शोध सिंगापुर में संपन्न कराया गया, जहां का हेल्थ केयर सिस्टम काफी मजबूत है।

अनुमान लगाया जा सकता है कि लचर स्वास्थ्य तंत्र वाले भारत जैसे देशों में सॉफ्ट ड्रिंक्स का बढ़ता चलन कितने लोगों को बीमार बना रहा होगा। भारत में शीतल पेयों का 7500 करोड़ रुपए का बाजार है जिसमें फिलहाल 54 फीसदी हिस्सा कार्बोनेटेड सॉफ्ट ड्रिंक्स का है। इन पेयों का चलन देश में तेजी से बढ़ रहा है, पर दुर्भाग्य से इस ओर किसी की नजर नहीं जा रही है और इसके कारण कैंसर और बाकी बीमारियां कितनी तेजी से बढ़ रही होंगी।

एक अमेरिकी शोध से ही यह भी साफ हुआ कि प्रतिदिन सॉफ्ट ड्रिंक की एक बोतल पीने वाले व्यक्ति का वजन साल भर में ही 12 पाउंड तक बढ़ जाता है। मोटापे, हार्ट अटैक, पक्षाघात आदि बीमारियां बढ़ाने और बच्चों में कैल्शियम की कमी के लिए भी इन्हें जिम्मेदार पाया गया है। सॉफ्ट ड्रिंक्स में मौजूद रसायनों से हड्डियों का तेज क्षरण होता है। इनकी लत लग जाने से बच्चों में दूध के प्रति अरुचि पैदा हो जाती है, जो कैल्शियम का एक बड़ा स्रोत है। इस तरह ये सॉफ्ट ड्रिंक्स दोहरा नुकसान कर रहे हैं।

अगर पता हो कि कि कोई चीज सेहत पर बहुत खराब असर डालती है तो उसके सेवन से हम भरसक बचना चाहेंगे, पर विडंबना यह है कि सॉफ्ट ड्रिंक्स के मामले में जानकारी का यह तर्क अक्सर फेल होता दिखता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने प्रचार के कारण लोगों को इसके पूरी तरह से निरापद होने का दावा आम भारतीयों के गले में उतारने में सफल हो जाती हैं। इसलिए इसके नुकसान पता होने के बावजूद शादी-ब्याह और पार्टियों जैसे अवसर पर लोग इसे पीने-पिलाने में शान समझते हैं। हमारे देश में कुछ राज्यों और कुछ स्कूलों ने सॉफ्ट ड्रिंक्स पर रोक जरूर लगाई है, पर इनके खतरों को लेकर वांछित स्तर की जागरुकता अब तक नहीं दिखाई पड़ी है। इस‍के लिए जरूरी है कि लोग खानपान को प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि सेहत की नजर से देखें।