शनिवार, 27 अप्रैल 2024
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Written By Author राकेशधर द्विवेदी

बाल कविता : बचपन

बाल कविता : बचपन - bal kavita in hindi
याद आता है मुझे


 
याद आता है मुझे
बचपन का गांव
आंगन में दौड़ना
घंटों खेलना
पेड़ों पर चढ़ना
चिड़ियों के साथ चहकना
 
याद आता है दादा-दादी का दुलार
नाना-नानी का प्यार
मां की फटकार
और मास्टर साहब की लताड़
 
याद आता है
गिल्ली और डंडा
खो-खो कबड्डी
सा‍इकिल की दौड़
दिनभर की मौज
 
याद आता है
वो गरमी की छुट्टी
वो ‍रिश्तों का जुड़ना
वो‍ दिलों का मिलना
वो खिलखिलाकर हंसना।
 
धीरे-धीरे बचपन
बदल गया
पुराने सूट की तरह
खूंटों से लटक गया।
 
बचपन दब गया भारी
बस्ते के बोझ से
वह खिसकता रहा
होमवर्क के लाड़ से।
 
कभी वह दिखाई देता
बहुमंजिली इमारत की
बालकनी से लटका हुआ
या फिर प्ले स्टेशन से
चिपका हुआ।
 
चश्मे से झांकता हुआ बचपन
आज आम बात है
क्रच में दम तोड़ता बचपन
इस नए युग की पहचान है।
 
वर्तमान के संवारने के प्रयास ने
बच्चे से बचपना छीन लिया
भौतिकता की इस अंधी दौड़ ने
उसका हंसना छीन लिया।
 
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