बाल दिवस पर हिन्दी कविता...
तांका 9
करोड़ों नन्हे हाथ
रोटी कमाते
सिसके बाल मन।
अधूरा बचपन
नन्ही उमर
चाय दुकान पर।
धुलतीं प्लेटें
शिक्षा का अधिकार
कौन सुने पुकार।
ऊंची कूदनी
लुढ़का-लुड़काई
छिपा-छिपाई।
छुक से चले रेल
बचपन के खेल
बच्चों के स्वर।
शरारत के खेल
बोलती आंखें
जीवन की सौगातें।
बचपन की बातें
मन का बच्चा
बाहर निकलता।
आज के दिन
हंसता-मुस्कुराता
गीत गुनगुनाता।