क्यों मनाया जाता है करवा चौथ?
करवा चौथ विशेष तौर पर नारियों का त्योहार है। हिन्दू धर्म में नारी शक्ति को शक्ति का रूप माना जाता है। कहते हैं कि नारी को यह वरदान है कि वो जिस भी कार्य या मनोकामना के लिए तप या व्रत करेगी तो उसका फल उसे अवश्य मिलेगा। खासकर अपने पति के लिए यदि वे कुछ भी व्रत करती है तो वह सफल होगा।
पौराणिक कथाओं में एक जोर जहां माता पार्वती अपने पति शिवजी को पाने के लिए तप और व्रत करती है और उसमें सफल हो जाती है तो दूसरी ओर सावित्री अपने मृत पति को अपने तप के बल पर यमराज से भी छुड़ाकर ले आती है। यानी स्त्री में इतनी शक्ति होती है कि वो यदि चाहे, तो कुछ भी हासिल कर सकती है। इसीलिए महिलाएं करवा चौथ के व्रत के रूप में अपने पति की लंबी उम्र के लिए एक तरह से तप करती हैं।
तप का अर्थ होता है किसी चीज को त्यागना और किसी एक दिशा में आगे बढ़ना। महिलाएं इस दिन निर्जल व्रत करती हैं। चौथ का चांद हमेशा देर से निकलता है। कई बार तो देर रात तक चांद नहीं दिखता। ये मौसम ऐसा होता है कि कई बार बादल घिर जाते हैं और चांद नजर ही नहीं आता। ऐसे में महिलाएं देर रात या अगले दिन तक अपना व्रत नहीं तोड़ती हैं। ये एक तरह से महिलाओं की परीक्षा होती है कि वो अपने पति के लिए कितना त्याग कर सकती हैं।