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Janaki jayanti 2020 : माता सीता के 4 असाधारण गुण

Janaki jayanti 2020 : माता सीता के 4 असाधारण गुण - Janaki jayanti
प्रभु श्रीराम की अर्धांगिनी माता सीता के व्यक्तित्व और गुणों के बारे में जितना लिखा जाए उतना कम है। राजा जनक के यहां एक अनाथ बालिका का पाल पपोषण हुआ। विवाह हुआ तो वनवास भी हुआ। वनवास हुआ तो अपहरण भी हुआ। अपरहण हुआ तो अग्नि परीक्षा देना पड़ी और अग्नि परीक्षा के बाद भी गृह त्याग कर आश्रम में रहकर ही दो पुत्रों को जन्म दिया। आओ जानते हैं 4 ऐसा गुण जो हर महिला को प्रेरित करते हैं।
 
 
1.असाधारण पतिव्रता- यह बहुत ही आश्चर्य है कि वनवास श्रीराम को मिला लेकिन माता सीता भी उनके साथ महलों के सारे सुख, धन और वैभव को छोड़कर चल दीं। सिर्फ इसलिए कि उन्हें अपने पतिव्रत धर्म को निभाना था। इसलिए भी कि उन्होंने 7 वचन साथ में पढ़े थे। उस काल में वन बहुत ही भयानक हुआ करता था। वहां रहना भी बहुत कठिन था लेकिन माता सीता ने राम के साथ ही रहना स्वीकार किया।
 
 
निश्‍चित ही पति को अपनी प‍त्नी के हर कदम पर साथ देना जरूरी है, उसी तरह पत्नी का भी उसके पति के हर सुख और दुख में साथ देना जरूरी है। कोई महिला यदि अपने पति के दुख में दुखी और सुखी में सुखी नहीं होती है, तो उसे सोचना चाहिए कि वह क्या है। आदर्श और उत्तम दांपत्य जीवन शिव-पार्वती और राम-सीता की तरह ही हो सकता है।
 
 
3.सिर्फ गृहिणी नहीं कामकाजी भी- माता सीता सिर्फ गृहिणी ही नहीं थीं अर्थात घर में रहकर रोटी बनाना या घर के ही कामकाज देखना। वे प्रभु श्रीराम के हर कार्य में हाथ बंटाती थीं। इस तरह वे एक कामकाजी महिला भी थीं। श्रीराम जहां रुकते थे, वहां वे 3 लोगों के रहने के लिए एक कुटिया बनाते, खुद के कपड़े बनाते, जलाने की लकड़ियां इकट्ठी करते और खाने के लिए कंद-मूल तोड़ते थे। उक्त सभी कार्यों में लक्ष्मण सहित माता सीता उनका साथ देती थीं।
 
 
3.सीता का साहस- माता सीता का जब रावण ने अपहरण कर लिया और उन्हें अशोक वाटिका में रखा तब इस कठिन परिस्थिति में उन्होंने शील, सहनशीलता, साहस और धर्म का पालन किया। इस दौरान रावण ने उन्हें साम, दाम, दंड और भेद तरह की नीति से अपनी ओर झुकाने का प्रयास किया लेकिन माता सीता नहीं झुकीं, क्योंकि उनको रावण की ताकत और वैभव के आगे अपने पति श्रीराम और उनकी शक्ति के प्रति पूरा विश्वास था।
 
 
लंकाधिपति रावण ने अपहरण करके 2 वर्ष तक माता सीता को अपनी कैद में रखा था। इस कैद में माता सीता एक वाटिका की गुफा में राक्षसनियों के पहरे में रहती थीं।
 
 
4.सीता का विश्वास- हनुमान जब लंका में अशोक वाटिका पहुंचे तो वे भगवान श्रीराम की जो अंगूठी लाए थे, वह सीता को दी। सीता माता बहुत खुश हुईं। उन्होंने अपने कष्ट को व्यक्त किया और आशंका और निराशा भी जताई कि इतना विलंब कैसे हो गया राम को आने में? नाथ कहीं भूल तो नहीं गए मुझे? सीता के मन की ऐसी स्थिति जानकर हनुमान ने कहा कि राम को आने में थोड़ा विलंब हो रहा है माता, यदि आपको लग रहा है कि वे समुद्र पार कर पाएंगे या नहीं तो मैं आज ही आपको लेकर रामजी के पास चलता हूं।
 
 
हनुमानजी ने उन्हें अपनी शक्ति का भरोसा और परिचय दिया। सीता हनुमानजी की शक्ति को देखकर आश्‍वस्त हो गईं और समझ गईं कि यह वानर तत्क्षण ही मुझे राम के पास ले जा सकता है। इसके बाद भी सीताजी ने कहा कि 'राम के प्रति मेरा जो समर्पण है, जो संपूर्ण त्याग है, मेरा पतिव्रता का धर्म है, उसको ध्यान में रखकर मैं राम के अतिरिक्त किसी अन्य का स्पर्श नहीं कर सकती। अब राम यहां आएं, रावण का वध करें। जो उसके लोग हैं, उनको मारें और हमें लेकर जाएं। रामजी ही मुझे मान-मर्यादा के साथ लेकर जाएं, यही उचित होगा।'
 
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