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Written By WD Feature Desk
Last Updated : मंगलवार, 11 जून 2024 (11:19 IST)

Jain festival 2024 : श्रुत पंचमी आज, जानें जैन धर्म में Shruti Panchami पर्व का महत्व

Jain festival 2024 : श्रुत पंचमी आज, जानें जैन धर्म में  Shruti Panchami पर्व का महत्व - Shruti Panchami 2024
Shruti Panchami 2024
 
Highlights 
 
जैन धर्म में श्रुत पंचमी का महत्व।
ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है यह पर्व। 
श्रुत पंचमी की कथा जानें। 
 
Shruti Panchami : जैन धर्म के अनुसार आज श्रुत पंचमी पर्व मनाया जा रहा है। जैन धर्मवलंबियों में प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को 'श्रुत पंचमी' अथवा  ज्ञान पंचमी का पर्व मनाया जाता है। 
 
इतिहास की नज़र में : मान्यतानुसार इस दिन भगवान महावीर के दर्शन को पहली बार लिखित ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत किया गया था। 
 
पहले भगवान महावीर केवल उपदेश देते थे और उनके प्रमुख शिष्य / गणधर उसे सभी को समझाते थे, क्योंकि तब महावीर की वाणी को लिखने की परंपरा नहीं  थी। उसे सुनकर ही स्मरण किया जाता था, इसीलिए उसका नाम 'श्रुत' था। जैन समाज में इस दिन का विशेष महत्व है। 
 
इसी दिन पहली बार जैन धर्मग्रंथ लिखा गया था। भगवान महावीर ने जो ज्ञान दिया, उसे श्रुत परंपरा के अंतर्गत अनेक आचार्यों ने जीवित रखा। गुजरात के गिरनार पर्वत की चन्द्र गुफा में धरसेनाचार्य ने पुष्पदंत एवं भूतबलि मुनियों को सैद्धांतिक देशना दी जिसे सुनने के बाद मुनियों ने एक ग्रंथ रचकर ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी को प्रस्तुत किया।
 
कथा : एक कथा के अनुसार 2,000 वर्ष पहले जैन धर्म के वयोवृद्ध आचार्यरत्न परम पूज्य 108 संत श्री धरसेनाचार्य को अचानक यह अनुभव हुआ कि उनके द्वारा अर्जित जैन धर्म का ज्ञान  केवल उनकी वाणी तक सीमित है।
 
उन्होंने सोचा कि शिष्यों की स्मरण शक्ति कम होने पर ज्ञान वाणी नहीं बचेगी, ऐसे में मेरे समाधि लेने से जैन धर्म का संपूर्ण ज्ञान खत्म हो  जाएगा। तब धरसेनाचार्य ने पुष्पदंत एवं भूतबलि की सहायता से ‘षटखंडागम’ शास्त्र की रचना की, इस शास्त्र में जैन धर्म से जुड़ी कई अहम जानकारियां हैं। इसे ज्येष्ठ शुक्ल की  पंचमी को प्रस्तुत किया गया। 
 
इस शुभ मंगलमयी अवसर पर अनेक देवी-देवताओं ने णमोकार महामंत्र से ‘षटखंडागम’ की पूजा की थी। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि इस दिन से श्रुत परंपरा को लिपिबद्ध परंपरा के रूप में प्रारंभ किया गया। उस ग्रंथ को ‘षटखंडागम’ के नाम से जाना जाता है। 
 
इस दिन से श्रुत  परंपरा को लिपिबद्ध परंपरा के रूप में प्रारंभ किया गया था इसीलिए यह दिवस श्रुत पंचमी के नाम से जाना जाता है। इसका एक अन्य नाम ‘प्राकृत भाषा दिवस’ भी है। 
 
इस दिन क्या करते हैं : श्रुत पंचमी के दिन जैन धर्मावलंबी मंदिरों में प्राकृत, संस्कृत, प्राचीन भाषाओं में हस्तलिखित प्राचीन मूल शास्त्रों को शास्त्र भंडार से बाहर निकालकर, शास्त्र-भंडारों की साफ-सफाई करके, प्राचीनतम शास्त्रों की सुरक्षा की दृष्टि से उन्हें नए वस्त्रों में लपेटकर सुरक्षित किया जाता है।  
 
इन ग्रंथों को भगवान की वेदी के समीप विराजमान करके उनकी पूजा-अर्चना करते हैं, क्योंकि इसी दिन जैन शास्त्र लिखकर उनकी पूजा की गई थी, मान्यतानुसार उससे पहले जैन ज्ञान मौखिक रूप में आचार्य परंपरा से चल रहा था।
 
इस दिन जैन धर्मावलंबी पीले वस्त्र धारण करके जिनवाणी की शोभा यात्रा निकालकर पर्व को मनाते हैं।

दिगंबर जैन पर्व श्रुत पंचमी का जैन परंपरा के अनुसार ज्ञान और आराधना का महान पर्व है, जो जैन समुदाय को संतों की वाणी सुनने, आराधना करने और प्रभावना बांटने का संदेश देता है।

और अप्रकाशित दुर्लभ ग्रंथों/  शास्त्रों को प्रकाशित करने के उद्देश्य से समाज के लोग यथाशक्ति दान देकर इस परंपरा का निर्वहन करते हैं। अतः श्रुत पंचमी दुर्लभ जैन ग्रंथ एवं शास्त्रों की रक्षा का महापर्व हैं।  
 
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