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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शनिवार, 7 सितम्बर 2024 (14:11 IST)

michhami Dukddam 2024: 'मिच्छामी दुक्कड़म्' से होगा जैन धर्म के अनुयायियों के महापर्व 'पर्युषण' का समापन

michhami Dukddam 2024: 'मिच्छामी दुक्कड़म्' से होगा जैन धर्म के अनुयायियों के महापर्व 'पर्युषण' का समापन - Samvatsari Parv 2024
michhami Dukddam
 
Highlights 
 
मिच्छामी दुक्कड़म् गलतियों के लिए क्षमा मांगने का पर्व।
जानें 2024 में कब मनाया जा रहा है मिच्छामी दुक्कड़म् पर्व।
क्यों जरूरी है संवत्सरी महापर्व।
 
महावीर स्वामी ने कहा है-
 
खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतु मे।
मित्तिमे सव्व भुएस्‌ वैरं ममझं न केणई।
 
- अर्थात सभी प्राणियों के साथ मेरी मैत्री है, किसी के साथ मेरा बैर नहीं है। यह वाक्य परंपरागत जरूर है, मगर विशेष आशय रखता है। इसके अनुसार क्षमा मांगने से ज्यादा जरूरी क्षमा करना है।
 
Samvatsari Parv 2024: श्वेताम्बर और दिगंबर जैन धर्मावलंबी भाद्रपद मास में पर्युषण पर्व मनाते हैं। इस पर्व का मूल उद्देश्य अपनी आत्मा को शुद्ध बनाने के लिए आवश्यक उपक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना होता है। जहां श्वेताम्बर संप्रदाय के पर्युषण आठ दिनों चलते हैं।

वहीं दिगंबर जैन संप्रदाय वाले दस दिनों तक पर्युषण मनाते हैं। उन्हें वे 'दसलक्षण महापर्व' के नाम से भी संबोधित करते हैं। और श्वेताम्बर जैन संवत्सरी/ क्षमावाणी पर्व पर 'मिच्छामी दुक्कड़म्' कहकर सभी से क्षमा याचना करते हैं। इस वर्ष श्वेतांबर समाज के अनुयायी 01 सितंबर से 08 सितंबर तक पर्युषण पर्व मनाएंगे और इसमें अंतिम दिन संवत्सरी महापर्व यानि क्षमापर्व मनाया जाएगा, वहीं दिगंबर समाज का महापर्व पर्युषण 08 सितंबर से शुरू होकर 17 सितंबर 2024 तक मनाए जाएंगे। 
 
जैन धर्म के अनुसार इन दिनों मंदिर, उपाश्रय, स्थानक तथा समवशरण परिसर में अधिकतम समय तक रहना जरूरी माना जाता है। पूजन, आरती, समागम, उपवास, त्याग-तपस्या में अधिक से अधिक समय व्यतीत किया जाता है और दैनिक क्रियाओं से दूर रहने का प्रयास किया जाता है। संयम और विवेक का निरंतर प्रयोग, अभ्यास चलता रहता है।

इन दिनों कल्पसूत्र, तत्वार्थ सूत्र का वाचन किया जाता है, संत-मुनि और विद्वान पंडितों के सान्निध्य में स्वाध्याय किया जाता है। तथा उपवास, बेला, तेला, अठ्ठाई, मासखमण जैसी लंबी बिना कुछ खाए, बिना कुछ पिए, निर्जला तपस्या करने वाले लोगों की अनुमोदना की जाती है। और इन्हीं आठ दिवसीय पर्व के बाद क्षमा, अहिंसा और मैत्री का पर्व 'संवत्सरी' आता है।

जैन धर्मावलंबी जाने-अनजाने हुई गलतियों के लिए संवत्सरी पर्व पर एक-दूसरे से क्षमा मांगते हैं। गौरतलब है कि श्वेतांबर जैन समाज के पर्युषण पर्व संपन्न हुए हैं और संवत्सरी महापर्व मनाया जा रहा है।
 
जैन धर्म की परंपरा के अनुसार पर्युषण पर्व के अंतिम दिन क्षमावाणी/ मैत्री दिवस पर सभी एक-दूसरे से 'मिच्छामी दुक्कड़म्' कहकर क्षमा मांगते हैं, साथ ही यह भी कहा जाता है कि मेरे मन, वचन, काया से जाने-अनजाने आप दिल दुखा या दुखाया हो तो मैं हाथ जोड़कर आपसे क्षमा मांगता/मांगती हूं।
 
जैन धर्म के अनुसार 'मिच्छामी' का भाव क्षमा करने और 'दुक्कड़म्' का अर्थ गलतियों से है, अर्थात् मेरे द्वारा जाने-अनजाने में की गईं गलतियों के लिए मुझे क्षमा कीजिए।
 
काफी जैन ग्रंथों की रचना प्राकृत भाषा में हुई है। 'मिच्छामी दुक्कड़म्' भी प्राकृत भाषा का शब्द है। पर्युषण महापर्व जैन धर्मावलंबियों में आत्मशुद्धि का पर्व है। इस तरह पर्युषण पर्व आत्मशुद्धि के साथ मनोमालिन्य दूर करने तथा सभी से क्षमा-याचना मांगने का सुअवसर प्रदान करने वाला महापर्व है।
 
आचार्य महाश्रमण कहते हैं कि- क्षमापना से चित्त में आह्लाद का भाव पैदा होता है और आह्लाद भावयुक्त व्यक्ति मैत्रीभाव उत्पन्न कर लेता है और मैत्रीभाव प्राप्त होने पर व्यक्ति भाव विशुद्धि कर निर्भय हो जाता है। जीवन में अनेक व्यक्तियों से संपर्क होता है तो कटुता भी वर्षभर के दौरान आ सकती है। व्यक्ति को कटुता आने पर उसे तुरंत ही मन में साफ कर देनी चाहिए और संवत्सरी पर तो अवश्य ही साफ कर लेना चाहिए।
 
यह पर्व भारत के अलावा दुनिया में अन्य कई जगहों, जैसे अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, जापान व अन्य अनेक देशों में भी यह पर्व धूमधाम से मनाए जाते हैं। जैन धर्म के पयुर्षण पर्व से विदेश भी अछूता नहीं है। यहां रहने वाले जैन धर्मावलंबी भी इन दिनों तप-आराधना करके 'मिच्छामी दुक्कड़म्' का पर्व मनाते हैं और अपने से दूर रहने वाले अपने सगे-संबंधी तथा परिचितों-मित्रों से माफी मांगकर संवत्सरी महापर्व को मनाते हैं। 
 
माना जाता है कि क्षमा देने से आप अन्य समस्त जीवों को अभयदान देते हैं और उनकी रक्षा करने का संकल्प लेते हैं। तब आप संयम और विवेक का अनुसरण करेंगे, आत्मिक शांति अनुभव करेंगे और सभी जीवों और पदार्थों के प्रति मैत्रीभाव रखेंगे। आत्मा तभी शुद्ध रह सकती है, जब वह अपने से बाहर हस्तक्षेप न करे और बाहरी तत्व से विचलित न हो। क्षमा भाव ही इसका मूलमंत्र है।
 
सभी को 'मिच्छामी दुक्कड़म्'।

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