Vodafone Idea Limited को सरकार नहीं चलाएगी, प्रवर्तक प्रबंधन को लेकर प्रतिबद्ध
नई दिल्ली। वोडाफोन आइडिया लिमिटेड (वीआईएल) द्वारा सरकार को चुकाए जाने वाले बकाया पर ब्याज को इक्विटी में बदलने के फैसले के 1 दिन बाद कंपनी के सीईओ ने बुधवार को कहा कि सरकार ने अपना यह रुख बिलकुल स्पष्ट कर दिया था कि वह इस दूरसंचार कंपनी का परिचालन अपने हाथों में नहीं लेना चाहती है। वीआईएल के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी रवीन्द्र टक्कर ने ऑनलाइन ब्रीफिंग में संवाददाताओं से कहा कि वर्तमान प्रवर्तक कंपनी के परिचालनों का प्रबंधन करने एवं उसे चलाने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं।
कर्ज संकट का सामना कर रही वोडाफोन आइडिया (वीआईएल) ने सरकार को चुकाए जाने वाले करीब 16,000 करोड़ रुपए के ब्याज बकाया को इक्विटी में बदलने का मंगलवार को फैसला किया था, जो कंपनी में लगभग 35.8 प्रतिशत हिस्सेदारी के बराबर होगा। अगर यह योजना पूरी हो जाती है तो सरकार कंपनी के सबसे बड़े शेयरधारकों में एक बन जाएगी। कंपनी पर इस समय करीब 1.95 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है।
टक्कर ने कहा कि बकाया पर ब्याज को इक्विटी में बदलने के विकल्प से संबंधित दूरसंचार विभाग के पत्र में ऐसी कोई शर्त शामिल नहीं है जिसमें निदेशक मंडल में सरकार को जगह देने की बात हो। उन्होंने कहा कि मौजूदा प्रवर्तक कंपनी के परिचालन का प्रबंधन संभालने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार के साथ हमारे पूरे संवाद का निचोड़ पैकेज के रूप में निकला। यहां तक कि पैकेज की घोषणा के बाद भी सरकार ने यह स्पष्ट रूप से कहा कि वह कंपनी का संचालन अपने हाथों में नहीं लेना चाहती है। कंपनी के परिचालन को अपने अधिकार में लेने की सरकार की कोई मंशा नहीं है। वह चाहती है कि बाजार में 3 निजी कंपनियां हों, सरकार एकाधिकार या केवल 2 कंपनियों का बाजार पर अधिकार नहीं चाहती।
टक्कर ने कहा कि सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह चाहती है कि कंपनी के प्रवर्तक ही इसे चलाएं और आगे ले जाएं तथा आने वाले महीनों में पूरी प्रक्रिया संपन्न होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि यह देखते हुए कि कंपनी की अधिकांश ऋणदेयता सरकार के प्रति है, यह हमारे लिए स्पष्ट था कि कुछ ऋण को इक्विटी में परिवर्तित करना कंपनी के लिए अपने ऋण बोझ को कम करने का एक अच्छा विकल्प है। कंपनी ने बताया कि इस योजना के पूरी होने पर कंपनी में सरकार की हिस्सेदारी 35.8 फीसदी के आसपास हो जाएगी जबकि प्रवर्तकों की हिस्सेदारी करीब 28.5 प्रतिशत (वोडाफोन समूह) और लगभग 17.8 प्रतिशत (आदित्य बिड़ला समूह) रह जाएगी।