इस्लामाबाद। पाकिस्तान को 1992 में क्रिकेट विश्व कप विजेता बनाने के कारण इमरान खान 'हीरो' बन गए थे, लेकिन अब उन्हें यहां हुए नेशनल असेम्बली और चार प्रांतीय विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए हुए चुनाव में 'तालिबान खान' से पुकारा जा रहा था क्योंकि वे पाकिस्तानी सेना के प्यादे बनकर राजनीति के मैदान में उतरे।
इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) को समाचार लिखे जाने तक 137 के बहुमत के आंकड़े से काफी दूर है और सरकार बनाने के लिए उन्हें दूसरी पार्टियों से हाथ मिलाना पड़ेगा, लेकिन उससे पहले राजनीतिक हलकों में इमरान के दोगलेपन के किस्से काफी चर्चा में हैं।
पाकिस्तान में इमरान खान को इसलिए 'तालिबान खान' के नाम से पुकारा जा रहा है क्योंकि वे सेना के जनरलों की कठपुतली बने हुए हैं। 65 साल के इमरान ने 2013 में भी चुनाव लड़ा था और बुरी तरह शिकस्त खाई थी। इस बार इमरान की पीठ पर पाकिस्तान की सेना का हाथ है और यही सेना पूरे चुनाव को अपने रिमोट कंट्रोल से चलाने में सफल हुई।
इमरान का दोगलापन तब सामने आया, जब वे मतदान वाले दिन भी सेना की बोली बोलते रहे और भारत को कोसते रहे। वे एक ही राग अलापते रहे कि हमें हिन्दुस्तान को शिकस्त देना है। असल में इमरान को पाकिस्तानी जनरलों ने इसलिए मोहरा बनाया क्योंकि वे नवाज शरीफ से निजात चाहते थे।
जब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पाकिस्तान में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मिलने पहुंचे, यहीं से ये बात सेना को खटकने लगी। शरीफ ने पाकिस्तान के हालात बदलने की कोशिश शुरू ही की थी कि उन्हें अपने पद से हटा दिया और हटाने के ठीक बाद जैश के सहारे पठानकोठ में आतंकी हमला करवा दिया। बाद में शरीफ को जेल तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
असल में पाकिस्तान में हो ये रहा है कि सेना अपने पालतू आंतकियों को बचाए रखना चाहती है। यहां पर जंगल कानून चल रहा है जिसमें साफ दिखाई दे रहा है कि सेना के जनरल से जो टकराएगा, उसे रौंद दिया जाएगा। अब चूंकि इमरान की पीठ पर भी सेना का हाथ है, लिहाजा ये माना जा रहा है कि वे भी तोते की तरह सेना की ही बोली बोलेंगे।