रोने का मतलब आमतौर पर ये निकाला जाता है कि रोने वाला कमजोर है। जो कुछ नहीं कर सकता वो रोने लगता है। लेकिन अध्ययन बताते हैं कि रोने के खास फायदे हैं।
नीदरलैंड की टिलबर्ग यूनिवर्सिटी में हुई रिसर्च कहती है एक महीने में महिलाएं औसतन करीब 3.5 बार रोती हैं तो पुरुष 1.9 बार। ये रिसर्च कहती है कि रोना बहुत जरूरी है। ये हेल्थ के लिए फायदेमंद है। रोने से शरीर औऱ दिमाग दोनों पर पाजिटीव असर पड़ता है।
आंसू हमारे दिल और दिमाग का हाल जाहिर करते हैं। वैसे रोने की मुकम्मल परिभाषा 1662 तक थी। किसी को अंदाज भी नहीं था कि रोने का रिश्ता आंसुओं से कैसे बन जाता है। तब डेनिस साइंटिस्ट ने पहली बार बताया कि ये आंसू दरअसल आते कहां से हैं।
हमारी दोनों आंखों के किनारे के ऊपर सिरे पर एक छोटी सी द्रव की थैली होती है, जिसे लैक्रीमल ग्लैंड कहते हैं आंसू वहीं से आते हैं।
लेक्रिमल ग्लैंड काम करती है, जो आईबॉल और आईलिड के बीच होती है। अगर आंसू बहुत तेजी से और ज्यादा देर तक आते रहें तो ग्लैंड ये दबाव बांट देती है। यही कारण है कि तेजी से रोने पर आंखों के साथ-साथ नाक भी बहने लगती है। ये भी आंसू ही होते हैं, लेकिन नाक से गुजरने पर म्यूकस के कारण चिपचिपे लगने लगते हैं।
ये द्रव आंख की सुरक्षा और आंख की अच्छी सेहत के लिए भी जरूरी है। आंख पर ऊपरी सतह पर हमेशा द्रव रहना चाहिए। अगर सूखी हो जाएगी तो कई तरह की आंख संबंधी बीमारियों को जन्म देगी। रोने से हमारे शरीर में तनाव के कारण जो टॉक्सिन जमा हो जाते हैं उन्हें रिलीज करने का भी आंसुओं के साथ होता है। वैसे रोते समय जो द्रव आंखों के आंसूओं के साथ बाहर आता है, वो लिसोजीम होता है, जिसका काम आंखों को हमेशा तर रखना है।
2011 की एक स्टडी कहती है लिसोजीम में कई एंटी बैक्टीरियल तत्व होते है जो आंखों को बैक्टीरिया से बचाते हैं। 1985 में बॉयोकेमिस्ट विलियम फ्रे ने बताया, रोने का उद्देश्य टाक्सिक तत्वों को बाहर निकालना भी होता है। रोने से आक्सीटोन और इंडोजेनियस ओपॉएड्स रिलीज होते हैं। इन्हें फीलगुड केमिकल कहा जाता है। ये हमारे स्ट्रेट मैनेजमेंट के लिए जरूरी हैं और बेहतर फील के लिए भी।
वैसे वैज्ञानिक आंसुओं को कई श्रेणियों में रखते हैं, लेकिन तीन मोटी श्रेणियां मानी जाती हैं। पहली श्रेणी है बेसल। ये नॉन-इमोशनल आंसू हैं, जो आंखों को सूखा होने से बचाते हैं और स्वस्थ रखते हैं। दूसरी श्रेणी में भी नॉन-इमोशनल आंसू ही आते हैं, जो किसी खास गंध पर प्रतिक्रिया से आते हैं। जैसे प्याज काटने या फिनाइल जैसी तेज गंध पर आने वाले आंसू।
आंसुओं की तीसरी श्रेणी ही वो है, जिस पर हमेशा चर्चा होती रही। इसे क्राइंग आंसू कहते हैं। ये भावनात्मक प्रतिक्रिया के तौर पर आते हैं। ये कैसे काम करता है।
रोने के फायदे मनोविज्ञान से भी जुड़े हैं। रोने के बाद आप हल्का महसूस करेंगे। तनाव और दबाव कुछ हद तक
खत्म हो जाएगा। दर्द कम लगने लगेगा। शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्तर अच्छा फील करते हैं। कुछ राहत महसूस करते हैं। कुछ लोग रोते हैं और कुछ नहीं।