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Tatya Tope : स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी तात्या टोपे की शौर्य गाथा जानिए

Tatya Tope : स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी तात्या टोपे की शौर्य गाथा जानिए - Biography of Tatya Tope
Tatya Tope Life Story
 
- राष्ट्रीय कवि स्व. श्रीकृष्ण 'सरल' की नजर में... 
 
'दांतों में उंगली दिए मौत भी खड़ी रही,
फौलादी सैनिक भारत के इस तरह लड़े
अंग्रेज बहादुर एक दुआ मांगा करते,
फिर किसी तात्या से पाला नहीं पड़े।'
 
स्वतंत्रता संग्राम के के अग्रणी रहे तात्या टोपे का जन्म 1814 में येवला में हुआ। उनके पिता का नाम पांडुरंग त्र्यंबक भट था तथा माता का नाम रुक्मिणी बाई था। तात्या का वास्तविक नाम रामचंद्र पांडुरंग राव था, परंतु लोग स्नेह से उन्हें तात्या के नाम से पुकारते थे। वे एक देशस्थ कुलकर्णी परिवार में जन्मे थे।
 
 
उनके पिता बाजीराव पेशवा के धर्मदाय विभाग के प्रमुख थे। उनकी विद्वत्ता एवं कर्तव्य परायणता देखकर बाजीराव ने उन्हें राज्सभा में बहुमूल्य नवरत्न जड़ित टोपी देकर उनका सम्मान किया था, तबसे उनका उपनाम 'टोपे' पड़ गया। 
 
महानायक तात्या टोपे को सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणीय वीरों में उच्च स्थान प्राप्त है। उनका जीवन अद्वितीय शौर्य गाथा से भरा हुआ है। तात्या टोपे (रामचंद्र) द्वारा गुना जिले के चंदेरी, ईसागढ़ के साथ ही शिवपुरी जिले के पोहरी, कोलारस के वनों में गुरिल्ला युद्ध करने की अनेक दंतकथाएं हैं।
 
 
तात्या टोपे की वीरता पर श्रीमती हेनरी ड्यूबले भी लिखती हैं- 'उन्होंने जो अत्याचार (अंग्रेजों पर) किए उनके लिए हम उनसे घृणा करें, किंतु उनके सेना नायकत्व के गुणों और योग्यता (देशभक्ति) के कारण हम उनका आदर किए बिना नहीं रह सकते।'
 
विदेशी इतिहास कोश में 'मालसन' ने लिखा था- 'संसार की किसी भी सेना ने कभी कहीं पर इतनी तेजी से कूच नहीं किया, जितनी तेजी से तात्या की सेना कूच करती थी। उनकी सेना की बहादुरी और हिम्मत के बल पर ही तात्या ने अपनी योजनाओं को पूरा करने का प्रयत्न किया। इसकी जितनी प्रशंसा की जाए, कम है।'

 
तात्या टोपे को शिवपुरी-गुना के जंगलों में सोते हुए धोखे से 7 अप्रैल 1859 को पकड़े गए। बाद में अंगरेजों ने शीघ्रता से मुकदमा चलाकर 18 अप्रैल 1859 को राष्ट्रद्रोह में तात्या को फांसी की सजा सुना दी। इस पर तात्या टोपे ने अपने बयान में कहा था- 'मेरे पेशवा राजा हैं। उनका कारिन्दा होने से मैंने उनके आदेशों का पालन किया। मैंने अपने राजा का हुक्म मानने से मैं राष्ट्रद्रोही नहीं हो सकता।'

 
फांसी स्थल पर आज भी तात्या टोपे की विशाल प्रतिमा हाथ में तलवार लिए खड़ी है। प्रतिवर्ष शिवपुरी में 18 अप्रैल को उस अमर शहीद को याद करते हुए श्रद्धांजलि दी जाती है। नगर की उप जेल में कोठरी नं. 4 और कलेक्टर कार्यालय के निकट एक वीरान कोठरी तात्या की याद दिलाती है। तात्या टोपे को भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख सेनानायक के रूप में जाना जाता है।