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Written By अनिरुद्ध जोशी
Last Updated : गुरुवार, 19 जनवरी 2023 (14:04 IST)

19 January : ओशो रजनीश आज भी हैं प्रासंगिक, जानिए एक संक्षिप्त परिचय

19 January : ओशो रजनीश आज भी हैं प्रासंगिक, जानिए एक संक्षिप्त परिचय - 19 january osho nirvan diwas
19 January Osho Rajneesh Nirvana Day : ओशो रजनीश का जन्म 11 दिसम्बर, 1931 को कुचवाड़ा गांव, बरेली तहसील, जिला रायसेन, राज्य मध्यप्रदेश में हुआ था। बचपन गाडरवारा में बीता और उच्च शिक्षा जबलपुर में हुई। जन्म के समय उनका नाम चंद्रमोहन जैन था। वे अपने नाना नानी के पास ही रहते थे। उनका बचपन वहीं गुजरा। 
 
ओशो ने अपनी प्रवचन माला ‘ग्लिप्सेंस ऑफड माई गोल्डन चाइल्डहुड’ उनके जन्म और बचपन के रहस्य से पर्दा उठाया है। ओशो रजनीश के तीन गुरु थे। मग्गा बाबा, पागल बाबा और मस्तो बाबा। इन तीनों ने ही रजनीश को आध्‍यात्म की ओर मोड़ा, जिसके चलते उन्हें उनके पिछले जन्म की याद भी आई।
 
उन्हें जबलपुर में 21 वर्ष की आयु में 21 मार्च 1953 मौलश्री वृक्ष के नीचे संबोधि की प्राप्ति हुई। 19 जनवरी 1990 को पूना स्थित अपने आश्रम में सायं 5 बजे के लगभग उन्होंने अपनी देह त्याग दी। देह त्यागने का कारण था अमेरिका द्वारा दिया गया जहर जिसने ओशो के शरीर को धीरे धीरे खोखला कर दिया था। उनकी समाधि पर लिखा है- ''न जन्में न मरे- सिर्फ 11 दिसंबर, 1931 और 19 जनवरी, 1990 के बीच इस ग्रह पृथ्वी का दौरा किया।'  
 
ओशो 1987 में पूना के अपने आश्रम में लौट आए। वह 10 अप्रैल 1989 तक 10,000 शिष्यों को प्रवचन देते रहे। कहा जाता है कि अमेरिका के द्वारा दिए गए जहर का असर यूं तो 6 माह में ही दिखाई देने लगा था परंतु ओशो ने अपने शरीर को लगभग 5 वर्ष तक जिंदा रखा। इस दौरान वे बहुत ही कमजोर हो गए थे। उनके सभी अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। अंतत: 19 जनवरी, वर्ष 1990 में ओशो रजनीश ने हार्ट अटैक की वजह से अपनी अंतिम सांस ली। कहा जाता है कि अमेरिकी जेल में रहते हुए उन्हें थैलिसियम का इंजेक्शन दिया गया और उन्हें रेडियोधर्मी तरंगों से लैस चटाई पर सुलाया गया जिसकी वजह से धीरे-धीरे ही सही वे मृत्यु के नजदीक जाते रहे। सुप्रसिद्ध लेखिका 'सू एपलटन' ने अपनी पुस्तक 'दिया अमृत, पाया जहर' में अमेरिका की रोनाल्ड रीगन सरकार द्वारा ओशो को थैलिसियम नामक जहर दिए जाने की घटना का शोधपूर्ण व रोमांचक विवरण प्रस्तुत किया है।
 
ओशो ने मृत्यु के कुछ दिनों पूर्व ही कहा था कि मेरा कार्य पूरा हो चुका है। मैं दुनिया को जो करके दिखाना चाहता था, वह मैंने दिखा दिया है। मेरे विचार और मेरे संदेश को दूर दूर तक फैलना है। मेरे स्वप्न अब मैं तुम्हें सौपता हूं....। देखना सपना कहीं सपना ही ना रह जाए।
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