मंगलवार, 19 मार्च 2024
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स्मृति शेष : नामवर जी एक मजबूत वटवृक्ष थे

स्मृति शेष : नामवर जी एक मजबूत वटवृक्ष थे - namvar singh smriti shesh
मनीषा कुलश्रेष्ठ 
जिसने सुना यही कहा नामवर जी के साथ एक युग का अवसान हो गया। हांलांकि वे गत सात-आठ वर्षों से स्वास्थ्य के कारण निष्क्रिय ही थे किंतु उनका होना मात्र एक मजबूत वटवृक्ष का होना था। 
 
हिन्दी आलोचना में वे डॉ.नगेंद्र के शिष्य रहे और उनके छूटे काम को अभूतपूर्व विस्तार दिया था। हिन्दी आलोचना का एक मुकम्मल स्केलेटन उन्होंने तैयार किया था कि जिस पर हिन्दी आलोचना रीढ़ सीधी कर खड़ी हो सके। हिन्दी भाषा की आलोचना संस्कृत काव्यशास्त्र और पाश्चात्य आलोचना और हिन्दी वांगमय की अपनी प्रवृत्तियों के मिश्रण से गढ़ी गई और यह काम आसान न था। 
 
नामवर जी का सरल व्यक्तित्व...दूर से ही धाक जमा लेता था। लंबा चेहरा, उन्नत भाल, मुंह में पान, करीने से पहना गया कुर्ता और चुन्नटदार कलफ़ लगी धोती और सधी हुई चाल उनकी अभूतपूर्व विद्वता को उत्सर्जित करते थे। 
 
एक युग पुरुष, जिनकी किताबें रट कर एम.ए. में गोल्ड मैडल लिया था। स्वयं लेखक बन जाने के बाद भी दिल्ली में या साहित्य के आयोजनों में उनसे मिलना संकोच से भर देता था किंतु वे इतने विनम्र थे कि वे आपको सहज कर देते थे।
 
मैं यह नहीं कहूंगी कि उनके निधन से हिन्दी आलोचना का मजबूत स्तंभ ढह गया है। वे अपनी सैद्धांतिकी में सदैव जीवित और मुखर रहेंगे। इसी स्तंभ पर आगे आलोचना अपने नये आयामों में विकसित होगी। 
 
नामवर सिंह जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।