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Written By WD Feature Desk
Last Updated : सोमवार, 21 अक्टूबर 2024 (16:51 IST)

'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा', नेताजी सुभाष चंद्र बोस का 'आजाद हिंद फौज' के जवानों को संदेश

जानिए 21 अक्टूबर को क्यों मनाया जाता है आजाद हिंद सेना दिवस

Azad Hind Fauj
Azad Hind Fauj
Azad Hind Fauj : 21 अक्टूबर का दिन भारतीय इतिहास में एक गौरवपूर्ण अध्याय के रूप में अंकित है। यह दिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्थापित 'आजाद हिंद सेना' के गठन का प्रतीक है, जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह दिन उन वीर योद्धाओं को सलाम करने का है जिन्होंने देश को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी और हमें प्रेरणा दी कि स्वतंत्रता कोई उपहार नहीं, बल्कि संघर्ष और बलिदान से प्राप्त की जाती है।
 
आजाद हिंद फौज का गठन 1943 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने किया था। इसका उद्देश्य भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराना था। इस सेना ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अदम्य साहस और वीरता के साथ संघर्ष किया। सुभाष चंद्र बोस का नारा "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" हर भारतीय के दिल में ज्वाला की तरह जलने लगा और इसने लाखों युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
 
नेताजी ने जापान और जर्मनी जैसे देशों से समर्थन प्राप्त कर इस सेना को खड़ा किया और इसे भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष में एक महत्वपूर्ण शक्ति बनाया। आजाद हिंद सेना ने भारतीयों के मन में आत्मविश्वास और स्वतंत्रता की भावना को मजबूत किया। इस सेना के गठन ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय स्वतंत्रता का संघर्ष केवल एक विचार नहीं, बल्कि एक सशस्त्र क्रांति है। आजाद हिंद सेना के जवानों ने अंग्रेजों के खिलाफ बर्मा और भारत की सीमाओं पर लड़ाई लड़ी। उनके अदम्य साहस और अनुशासन ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष को नए आयाम दिए। 
 
भले ही यह सेना सैन्य रूप से सफल न हो पाई, लेकिन इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसने भारतीय जनमानस में यह विश्वास जगाया कि यदि संगठित होकर संघर्ष किया जाए, तो स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है। इस फौज में करीब 8500 सैनिक शामिल थे. इसमे एक महिला यूनिट भी थी। 21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर में सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज के सेनापति के रूप में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई थी। जिसे जापान ने 23 अक्टूबर 1943 को मान्यता दी।