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Written By WD

यह है मेरे गाँव की होली

यह है मेरे गाँव की होली - यह है मेरे गाँव की होली
- अखिलेश श्रीराम बिल्लौरे
 
वैसे तो पूरे देश में होली का पर्व पूरे हर्षोल्लास से मनाया जाता है, लेकिन मेरे गाँव की होली का कुछ अलग ही उत्साह है। हो भी क्यों न, आखिर अपनी माटी से सबको प्यार होता है। मेरा गाँव मेरा देश सबको प्यारा लगता है। कहते हैं होली पूर्णिमा की रात को जब होली जलती है तो कहीं-कहीं परंपरानुसार गाँव पटेल या वहाँ का पुराना जागीरदार होलिका-पूजन करके होली को अग्नि दिखाता है। अब आरक्षण के युग में चाहे सरपंच कोई भी हो, परंपरा अपनी जगह पर है। मेरे गाँव में भी कुछ ऐसा ही है।
 
ग्राम पटेल का वंशज यह क्रिया पूर्ण करता है। इस क्रिया को पूर्ण करने के दौरान परंपरा यह है कि वहाँ एकत्रित लोग पटेल को पुरानी अभद्र कहावतें, दोहे सुनाते हैं। प्रत्येक दोहा या कहावत खत्म होने के बाद ‘बोम कूटते’ (मुँह पर हाथ रखकर जोर-जोर से चिल्लाना) हैं।
 
कहते हैं कि ऐसा करना शुभ माना जाता है। अभद्र भाषा को उस रोज पटेल भी बुरा नहीं मानता। पुरोहित के मार्गदर्शन में पूजन व अग्नि प्रज्वलन के पश्चात श्रद्धालु विकराल आग में नारियल चढ़ाते हैं, जिसे निकालने के लिए लोग अपनी जान जोखिम में डाल देते हैं। यह दृश्य रोमांच पैदा करता है। लोग अपनी श्रद्धानुसार होली की परिक्रमा करते हैं। दूसरे दिन धुलेंडी पर रिवाज के अनुसार जहाँ बीते वर्ष की होली के बाद कहीं कोई गमी हो गई हो तो सारे लोग इकट्ठा होकर उस घर में जाते हैं।
 
कहते हैं होली पूर्णिमा की रात को जब होली जलती है तो कहीं-कहीं परंपरानुसार गाँव पटेल या वहाँ का पुराना जागीरदार होलिका-पूजन करके होली को अग्नि दिखाता है। अब आरक्षण के युग में चाहे सरपंच कोई भी हो, परंपरा अपनी जगह पर है।      
 
सारे भेदभाव, राग-द्वेषता भूलकर सब लोग एक होकर उस परिवार को सांत्वना देते हैं और उसके सदस्यों को गुलाल लगाते हैं। इस त्योहार की यह सबसे बड़ी विशेषता है यह कि यह हमें प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश देता है। इसके बाद महिलाओं का क्रम आता है। महिलाएँ भी एकत्रित होकर उसी गमगीन परिवार के घर की महिलाओं को सांत्वना देती हैं और रंग-गुलाल लगाती हैं।
 
इस प्रकार गमी वाले सारे घरों में जाने के बाद महिला-पुरुषों की अलग-अलग टोली एक-दूसरे के साथ रंग खेलती है। इस वक्त दृश्य बड़ा मनोरंजक होता है। कोई भाग रहा है, कोई पकड़ रहा है। चार-छ: का समूह किसी एक को रंग लगा रहा है। कोई ‍घर में कैद है तो उसके घर के सामने पहुँचकर उसे घर से निकालने के लिए तरह-तरह के यत्न किए जाते हैं। आखिर हारकर उसे निकलना ही पड़ता है। जब वह निकलता है तो हर कोई उसे रंग लगाने के लिए बेताब दिखता है और देखते ही देखते उसे ‘भेरू’ बना दिया जाता है।
 
गाँव में एक-एक को रंगने के बाद युवाओं की टोली छोटे-छोटे समूह में बँट जाती है। ये समूह गाँव के बाहर अलग-अलग खेतों में पहुँच जाते हैं। वहाँ खूब मस्ती में स्नान वगैरा के बाद व्यंजन बनाए जाते हैं और मजे ले-लेकर खाते हैं। करीब चार बजे ये समूह गाँव में लौटते हैं।उधर बुजुर्ग शाम के उल्लास का इंतजाम करते हैं। सारे लोग मिलकर मंदिर चौक पर चार-पाँच बड़े-बड़े कड़ाहों को पानी से भरते हैं और उनमें रंग घोलते हैं। भाँग-शकर का प्रसाद बनाया जाता है और भगवान को अर्पित किया जाता है।
 
मंदिर चौक के आगे स्थित बाजार चौक में एक बड़ा सा ऊँचा खंभ गाड़ा जाता है। यह खंभ तेल-गेरू से पुता होता है। इसके ऊपरी सिरे पर लाल कपड़े में कुछ रुपए आदि रखकर बाँध दिया जाता है। अब शुरू होता है शाम का उत्सव। सारे लोग बाजार चौक में इकट्ठा होते हैं। उत्साही युवा उस खंभे पर चढ़ने की कोशिश करते हैं। उस खंभे के आसपास ग्राम की महिलाएँ हाथों में लकड़ी लिए खड़ी रहती हैं। जो कोई भी खंभे के पास जाता है, उसे महिलाएँ लकड़ी से पीटती हैं।
 
उत्साहित युवा इनसे बेखबर हो अपना मिशन पूरा करने के लिए खंभे पर चढ़ता है। यह दृश्य भी बहुत रोमांचित करता है। कुछ हताश होकर मार खाकर वापस लौटते हैं तो कुछ खंभे की चिकनाई के कारण आधे रास्ते से नीचे आ जाते हैं। बड़ी मशक्कत के बाद कोई बहादुर युवा आखिर खंभे के सिरे पर पहुँच ही जाता है और अपना पुरस्कार पाता है।
 
इसके बाद सभी महिलाएँ उपस्थित नागरिकों को मारने दौड़ती हैं। सभी भागते हैं। कोई किसी को मार खिलाने के लिए पकड़कर रखता है तो स्वयं भी मार खाता है। बड़ा मजा आता है इस प्रकार का दृश्य देखने में। यह संध्या उत्सव इतना रोमांचकारी होता है कि आसपास के कई ग्रामों से ग्रामीण इसे देखने आते हैं। इसके बाद सभी मंदिर की तरफ जाते हैं। वहाँ भी रोमांच आपका इंतजार कर रहा होता है क्यों रंगों के कड़ाव जो भरे होते हैं।
 
बस फिर क्या है, जो भी वहाँ से निकलता उसे पकड़कर उस कड़ाव में डाल दिया जाता है। जब वह निकलता है तो पूरा लाल यानी एलियन बन जाता है। कड़ाहों से बचकर या भीगकर निकलने पर मंदिर परिसर में बँट रही भाँग-प्रसादी आपका स्वागत करती है। सभी को यह प्रसाद दिया जाता है। ...और इसी प्रकार यह रोमांचकारी उत्सव समाप्त होता है। तो यह है मेरे गाँव की होली जो पूरे दिन चलती है।